हत्या के प्रयास मामले में नाबालिग आरोपियों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं - HC

हत्या के प्रयास मामले में नाबालिग आरोपियों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं - HC

Tejinder Singh
Update: 2018-12-24 14:25 GMT
हत्या के प्रयास मामले में नाबालिग आरोपियों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं - HC

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि हत्या के प्रयास के मामले में आरोपी नाबालिग के खिलाफ बाल न्याय व संरक्षण कानून 2015(जेजे एक्ट) के तहत वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। कोर्ट ने तीन आरोपियों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया है। तीनों ने याचिका में सांगली के ज्युनाइल जस्टिस बोर्ड(जेजे बोर्ड) के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके तहत उनके खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था। 

जेजे बोर्ड ने मामले में आरोपी सौरभ ननगरे,कुणाल ननगरे व विजय ननगरे को मनोचिकित्सक के पास उनकी मानसिक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए भेजा था। इन तीनों को जब आरोपी बनाया गया था तो इनकी उम्र 17 साल थी। मनोचिकित्सक की रिपोर्ट के आधार पर तीनों आरोपियों के खिलाफ बाल न्यायालय को वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। 

जेजे बोर्ड के इस आदेश के खिलाफ तीनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में तीनों आरोपियों ने दावा किया था कि उन्होंने कोई जघन्य अपराध नहीं किया है। इसलिए उनके मामले की सुनवाई बाल न्यायालय की बजाय जेजे बोर्ड में हो। जस्टिस मृदुला भाटकर के सामने तीनों आरोपियों की याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस ने कहा कि जेजे एक्ट के तहत हत्या का प्रयास जघन्य अपराध के दायरे में नहीं आता है। इसलिए बोर्ड के आदेश को खारिज किया जाता है। जेजे एक्ट में हत्या के प्रयास के लिए सात साल की सजा का प्रावधान है। जबकि भारतीय दंड संहिता में सजा को लेकर अलग प्रावधान है। इसलिए जेजे कानून के तहत हत्या के प्रयास को जघन्य अपराध नहीं माना जा सकता है।

इस तरह से हाईकोर्ट ने तीनों आरोपियों को राहत प्रदान की। गौरतलब है कि बोर्ड के आदेश के बाद बाल न्यायालय भी आरोपियों का मूल्याकन करता है। यदि न्यायालय को प्रतीत होता है कि आरोपियों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाना चाहिए तो  दोषी पाए जाने के बाद आरोपियों को 21 साल की उम्र तक बाल सुधार गृह में रखा जाता है बाद में उन्हें आगे की सजा भुगतने के लिए जेल में भेज दिया जाता है। 

 

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