भटकने को विवश बिछड़े मासूम, अपनों तक पहुंचाने पुलिस के पास नहीं स्क्वॉड
भटकने को विवश बिछड़े मासूम, अपनों तक पहुंचाने पुलिस के पास नहीं स्क्वॉड
डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत में एक बड़ी संख्या उन लावारिस बच्चों की है जो या तो अनाथ हैं, किसी न किसी कारणवश घर से भागे हुए हैं। दोनों ही तरह के बच्चों के लिए सरकार ने बालगृह या बाल निरीक्षण गृह बनाए हैं। नागपुर के पाटणकर चौक में बालगृह और बाल निरीक्षण गृह हैं। बालगृह में मौजूदा समय में करीब 350 बच्चों की देखरेख की जा रही है। बालगृह में हर साल 500 से ज्यादा लावारिस बच्चे आते हैं। यह संख्या कम ज्यादा भी होते रहती है। बालगृह के अधिकारियों की मानें, तो यहां रहने वाले बच्चों को उनके माता-पिता का पता मिलने के बाद भी कई बार मिलवाने में देरी होती है। इसका कारण है कि पुलिस स्क्वाड समय पर नहीं मिल पाता। यही कारण है कि कई बार बालगृह के बच्चे परेशान होकर पलायन कर जाते हैं। पुलिस स्क्वाड मिलने में कई बार महीनों लग जाते हैं। इस विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अगर पुलिस स्क्वॉड समय पर मिल जाए, तो बच्चों के पलायन करने का सिलसिला काफी हद तक रुक सकता है। जिला व महिला बाल विकास अधिकारी विजय परदेसी भी इस बात को लेकर काफी गंभीर हैं। उनका कहना है कि पुलिस मुख्यालय से समय पर पुलिस स्क्वाड मिल जाए, तो बालगृह के अधिकारियों के लिए सोने पर सुहागा वाली बात हो जाएगी।
निजी संगठनों ने उठा रखी है जिम्मेदारी
नागपुर शहर में कई निजी संगठन समाजसेवा की भावना से घर से बेघर हुए बच्चों की परवरिश कर उन्हें एक नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं। इस संस्था में उन बच्चों को आश्रय दिया जाता है जिनके माता या पिता नहीं हैं या उनका अन्य कोई अभिभावक नहीं है। बालगृहों में रह रहे इन बच्चों के बारे में एक यह अत्यंत दु:खद सच सामने आता है कि यह सभी लावारिस या अनाथ नहीं होते हैं, बल्कि किसी न किसी कारण से घर से भागे होते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो परिवार से दुत्कारे गए हैं या पारिवारिक दुर्व्यवहार का शिकार हैं और घर जाना ही नहीं चाहते। घर से बाहर सुकून की जिंदगी तलाश करते इन बच्चों की यह तलाश क्या कभी पूरी हो पाती है? बच्चों की स्थिति बेहतर बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, लेकिन यह एक सुखद संदेश है कि भारत में इस दिशा में कारगर कदम उठाए गए हैं।
पद हैं पर खाली पड़े
जानकारी के अनुसार नागपुर में पाटणकर चौक स्थित शासकीय बालगृह में हर साल 100 से अधिक बच्चों को उनके परिजनों का पता खोजकर उनके बिछड़े बच्चों को उन तक पहुंचाने का कार्य किया जाता है, लेकिन कई बार पुलिस स्क्वाॅड नहीं मिल पाने के कारण बालगृह में ही उन बच्चों को रहना पड़ता है तब इस बात का उनके मन पर काफी गहरा असर पड़ता है। उन्हें लगने लगता है कि वह अपने घर जा पाएंगे या नहीं। इससे उनकी मानसिकता बदलने लगती है और वह भागने की रणनीति बनाने लगते हैं। साथी तैयार हो जाने पर वह भाग निकलते हैं। इस शासकीय बालगृह में 65 पद मंजूर हैं, लेकिन करीब 35 पद रिक्त पड़े हैं। आधे कर्मचारियों के भरोसे पर सैकड़ों बच्चों की जिम्मेदारी का निवर्हन करना पड़ रहा है। यह रिक्त पद तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के हैं। यह पद करीब 5-6 वर्ष से रिक्त पड़े हैं।
दुविधा हो जाएगी दूर
शासकीय बालगृह के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें समय पर पुलिस स्क्वाॅड नहीं मिल पाता है। अगर उन्हें समय पर पुलिस स्क्वाॅड चाहिए, तो इसके लिए उन्हें 7-8 दिन पहले बताना चाहिए। पुलिस स्क्वाॅड की समस्या का निराकरण हो सकता है। इसके लिए उन्हें एक पत्र व्यवहार करने की जरूरत है। बालगृह के अधिकारी शहर पुलिस आयुक्त के नाम पर पत्र भेजकर अपनी इस दुविधा को दूर कर सकते हैं। उनकी इस समस्या का निराकरण किए जाने के बारे में एक आर्डर ही पुलिस आयुक्त पास करवा देंगे, जिससे बालगृह के अधिकारियों की पुलिस स्क्वाॅड की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
- डॉ. भूषणकुमार उपाध्याय, पुलिस आयुक्त नागपुर शहर
शुरू होने वाला है "ऑपरेशन मुस्कान"
जल्द ही ऑपरेशन मुस्कान फिर शुरू किया जा रहा है। बालगृह में रहने वाले बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है। ऑपरेशन मुस्कान बड़ा मददगार साबित होता है। हर साल 100 से अधिक बच्चे अपनों से बिछड़ने के बाद मिल पाते हैं, जो बालगृह में आ जाते हैं। इन बच्चों को उनके अपनों से मिलवाने के लिए कई बार पुलिस स्क्वाॅड नहीं मिल पाता है। यह इस बालगृह के अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी समस्या है। अगर इस दिशा में पुलिस महकमे के वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से कोई पहल हो जाए और उन्हें समय पर पुलिस स्क्वाॅड मिले तो संभवत: बच्चों के पलायन करने पर काफी हद तक रोक लग सकेगी।
- विजय परदेसी, जिला महिला बाल विकास अधिकारी, नागपुर