करोड़ों खर्च के बावजूद नहीं सुधर रही स्कूलों की गुणवत्ता नहीं, हाल जस के तस

करोड़ों खर्च के बावजूद नहीं सुधर रही स्कूलों की गुणवत्ता नहीं, हाल जस के तस

Anita Peddulwar
Update: 2019-11-18 08:07 GMT
करोड़ों खर्च के बावजूद नहीं सुधर रही स्कूलों की गुणवत्ता नहीं, हाल जस के तस

डिजिटल डेस्क, नागपुर । जिला परिषद स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए दो प्रशिक्षण संस्था जिला शैक्षणिक सातत्यपूर्ण व्यावसायिक संस्था यानी डायट और प्रादेशिक विद्या प्राधिकरण की नियुक्ति की गई है। जिला परिषद शिक्षकों को प्रशिक्षण देना उसकी जिम्मेदारी है। इन संस्थाओं के अधिकारियाें का अपनी ही गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित रहने से जिला परिषद स्कूलों की गुणवत्ता सिफर रही है। करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी जिला परिषद स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होने से डायट और प्रादेशिक विद्या प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठने लगे हैं। 

जिला परिषद स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कार्यरत डायट और प्रादेशिक विद्या प्राधिकरण संस्था में राज्य सरकार के प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिव्याख्याता नियुक्त किए गए हैं। जिप स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विविध शैक्षणिक उपक्रम चलाने, स्कूलों को भेंट देकर शिक्षकों का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी है, ताकि स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ा जा सके। कार्यालय में बैठकर हीअधिकारी कागजी घोड़े दौड़ा रहे हैं। स्कूलों का दौरा कर उनकी समस्याओं को जानने और उसका हल निकालने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

घट रही विद्यार्थी संख्या
जिला परिषद के 1535 स्कूल हैं। इन स्कूलों में चालू शैक्षणिक वर्ष में 70 विद्यार्थी हैं। हर वर्ष सैकड़ों में विद्यार्थी संख्या घट रही है। स्कूलों के शैक्षणिक गुणवत्ता में पिछड़ने से पालकों का रुझान िनजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। 
पीएचडी में अधिकारियों की रुचि

डायट और प्रादेशिक विद्या प्राधिकरण के अधिकांश अधिकारियों ने सेवा में रहते पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। जो बचे हैं, उनकी पीएचडी चल रही है। पदोन्नति के  लिए पीएचडी करने में अधिकारियों की अधिक रुचि है। अधिकारियों ने अपनी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जिप स्कूलों की गुणवत्ता को दरकिनार कर दिया है।

जिप के शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति
जिला परिषद स्कूलों में शिक्षकों के अनेक पद रिक्त हैं। बावजूद प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने वाली इन संस्थाओं में अनेक शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है। जिन संस्थाओं पर शिक्षकों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी है, उसी संस्था में शिक्षकों की गैरशैक्षणिक कार्यों के लिए नियुक्ति किए जाने से स्कूलों में अध्यापन कार्य प्रभावित हो रहा है। जहां ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल आवश्यक सुविधाओं से जूझ रहे हैं, वहीं प्रशिक्षण के नाम पर इन संस्थाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने से ग्रामीण शिक्षा सुधरने की जगह अधिक बिगड़ने की भावना शिक्षा क्षेत्र में बढ़ रही है। 

Tags:    

Similar News