कीटनाशक छिड़काव से मौत को लेकर SIT का रुख सख्त

कीटनाशक छिड़काव से मौत को लेकर SIT का रुख सख्त

Anita Peddulwar
Update: 2018-01-24 05:27 GMT
कीटनाशक छिड़काव से मौत को लेकर SIT का रुख सख्त

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कीटनाशक छिड़काव से किसानों -मजदूरों की मौत के मुद्दे पर राज्य सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में SIT की रिपोर्ट पेश की गई है जिसमें  SIT ने सख्त रूख अपनाया है।  SIT ने अपने रिपोर्ट में सिफारिश की है कि आगे से इस तरह के प्रकरण में छिड़काव करवाने वाले खेत के मालिकों के खिलाफ सदोष मनुष्यवध के लिए भादवि 304 के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। साथ ही छिड़काव करने वाले किसानों के खिलाफ आत्महत्या करने के प्रयास के लिए भादवि धारा 309 के तहत मामला दर्ज किया जाए। इसी तरह किट के बगैर छिड़काव करवाने वाले किसानों के खिलाफ भी SIT की सिफारिश है कि  आगे से गांव स्तर पर कीटनाशक का छिड़काव करने वाले किसानों का पंजीयन किया जाएगा। उनके स्वास्थ्य की जांच करके ही उन्हें छिड़काव की अनुमति दी जाए। इसी तरह छिड़काव करने के लिए विशेष किट के इस्तेमाल के बगैर छिड़काव की अनुमति न दी जाए। 

ढेरों है खामियां
एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों को विषबाधा होने के बाद उनके इलाज के पर्याप्त प्रबंध उपलब्ध नहीं थे। कालिनस्ट्रेस टेस्ट की सुविधा नहीं थी और न  ही कोई अत्याधुनिक चिकित्सा सेवा थी। ऐसे में करीब 120 किमी दूर वणी, पुसद, उमरखेडे मारेगांव, झरी जैसे तहसीलों में से सभी मरीजों को चिकित्सा महाविद्यालय भेजा गया। अस्पताल जाते वक्त कुछ किसानों की मृत्यु भी हो गई। मामले में सामाजिक कार्यकर्ता जम्मू आनंद ने हाईकोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से एड.अरविंद वाघमारे ने पक्ष रखा। 

टल सकता था हादसा
रिपोर्ट के मुताबिक बीते दिनों हुई विषबाधा कोई पहला मामला नहीं थी। यवतमाल जिले में वर्ष 2016 में भी इस तरह के मामले में 434 लोगों को विषबाधा हुई थी। कीटनाशक अधिनियम के तहत 16 मई 1980 के परिपत्रक के अनुसार कीटनाशक से होने वाली मौतों पर कृषि अधिकारी ने अगर हर साल रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी होती तो यह हादसा टाला जा सकता था। नियम के मुताबिक समिति गठित नहीं की गई। रिपोर्ट के अनुसार इस हादसे के बाद प्रदेश के 227 कृषि केंद्रों की जांच की गई। इसके बाद 2 कीटनाशक कंपनियों और 10 कृषि केंद्रों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया। पांच कृषि केंद्रों के लाइसेंस रद्द किए गए। इसके पूर्व यवतमाल के गुणवत्ता नियंत्रण निरीक्षक ने किसी प्रकार की जांच नहीं की, बल्कि औपचारिकता ही निभाई। 

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