नंगे पैरों का आसरा बन रहे ये युवक, 50 हजार बच्चों के लिए बने मसीहा

नंगे पैरों का आसरा बन रहे ये युवक, 50 हजार बच्चों के लिए बने मसीहा

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-03 15:43 GMT
नंगे पैरों का आसरा बन रहे ये युवक, 50 हजार बच्चों के लिए बने मसीहा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अक्सर लोग जूते-चप्पल पुराने होने पर फेंक देते हैं। लेकिन उदयपुर के श्रीयंस भंडारी और गढ़वाल के रमेश धामी पुराने जूते-चप्पलों को नया लुक देकर उन मासूमों को पहना रहे हैं, जो नंगे पांव स्कूल जाने को मजबूर हैं। वे बेकार पड़े जूते और चप्पलों को पहले रिसाइकिल कर चप्पल बनाते हैं। फिर स्कूल, कॉलेज, झुग्गी बस्तियों और गांवों में बच्चों को बांटते हैं। ऐसा वो पिछले तीन साल से कर रहे हैं। अब तक महाराष्ट्र समेत चार राज्यों में 50 हजार से ज्यादा बच्चों को चप्पल पहना चुके हैं।

मसीहा बने युवक

दोनों का लक्ष्य 2017 में इस आंकड़े को एक लाख तक पहुंचाना है। इस काम के लिए उन्होंने ‘ग्रीन सोल’ नाम की कंपनी भी बनाई है, जिसका हेड ऑफिस मुंबई में है। कंपनी के वॉलंटियर्स देश के 15 राज्यों के 50 बड़े शहरों में पुराने जूते-चप्पलों का कलेक्शन करने का काम कर रहे हैं। ग्रीन सोल के को-फाउंडर श्रीयंस भंडारी ने बताया कि हमने 2014 में पुराने और बेकार जूते-चप्पलों को दोबारा नया लुक देकर ऑनलाइन बेचने का स्टार्टअप शुरू किया था। इसी दौरान एक दिन आइडिया आया कि क्यूं न उन बच्चों को चप्पल मुहैया कराएं, जो नंगे पांव स्कूल जाते हैं। इससे न केवल जरूरतमंद बच्चों की मदद होगी, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा।

जरूरतमंद बच्चों  की मदद

रिसाइकिल के दौरान जूते और चप्पलों के सोल को निकालकर री-डिजाइन किया जाता है। फिलहाल ये चप्पलें गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और असम में जरूरतमंद बच्चों को दी जा रही हैं। हर महीने औसत एक हजार चप्पल बच्चों को दी जा रही हैं। देश के करीब 80% हिस्से में लोग इनके वॉलंटिंयर्स को पुराने जूते-चप्पल भेजते हैं।

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