नागपुर : चीन में बने कोच उपराजधानी पहुंचे, ढोल की थाप पर हुआ स्वागत

नागपुर : चीन में बने कोच उपराजधानी पहुंचे, ढोल की थाप पर हुआ स्वागत

Tejinder Singh
Update: 2019-01-15 10:10 GMT
नागपुर : चीन में बने कोच उपराजधानी पहुंचे, ढोल की थाप पर हुआ स्वागत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। लंबे इंतजार के बाद मंगलवार सुबह पहली मेट्रो रेल शहर में दाखिल हुई है। साथ ही केसरिया साफा पहले युवा टोलियों ने लेजिंम और ढोल की धुन पर स्वागत किया। मिहान के पुल पर मेट्राे के डिब्बों को उतारा गया, जहां मेट्रो रेल का स्वागत किया गया। इस गाड़ी को रीच-1 में चलाया जाएगा। इसके बाद चीन से दूसरी गाड़ी नागपुर के लिए रवाना होगी। जुलाई माह तक लगभग पूरे कोच नागपुर पहुंच जाएंगे। इस साल मेट्रो को चलाया जाना है। सबसे पहले रीच-1 व रीच-3 के बीच कुछ सेक्शन में मार्च के आखिर तक मेट्रो रेल दौड़ाई जाएगी।

फिलहाल जॉय राइड के लिए हैदराबाद से लाई गई मेट्रो को चलाया जा रहा है, लेकिन आने वाले समय में चीन से 69 कोच लाए जाएंगे। उक्त रीच-1 में मेट्रो चलाने के लिए 6 कोच तैयार हैं, जिसे नागपुर के लिए दिसंबर माह में भेजा गया था। ऐसे में गत 5 दिन पहले ही यह गाड़ी समुद्री जहाज से चेन्नई पहुंची थी। जहां से सड़क मार्ग से इसे नागपुर लाया गया। कुछ ही दिनों में और 3 कोच लाने की उम्मीद है। इन कोचों को दिसंबर माह में ही नागपुर पहुंचना था, लेकिन जहाज नहीं मिलने से विलंब हुआ है। देश की सारी मेट्रो, दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर करती हैं निर्माण, मगर नागपुर ने बनाया अपना अलग ‘वायडक्ट’, अब पेटेंट करवा रहे हैं।

दिल्ली मेट्रो बहुत पुरानी है, इसलिए उसके वायडक्ट के साइज को स्टैंडर्ड साइज माना जाता है। नागपुर मेट्रो ने अपना खुद का वायडक्ट डिजाइन किया है। दूसरे वायडक्ट 10.5 मीटर के हैं, जबकि नागपुर मेट्रो के वायडक्ट 8.5 मीटर है। इससे एक तरफ काम जल्दी हो रहा है, तो दूसरी तरफ अन्य मेट्रो की तरह इसमें कम लागत लग रही है। यह यहां के काबिल इंजीनियरों का कमाल है। अपने इस वायडक्ट को नागपुर मेट्रो जल्द ही पेटेंट कराने जा रही है, ताकि आने वाले समय में कोई अन्य शहर बिना रॉयल्टी दिए, इस वायडक्ट को कॉपी न कर पाए। 

क्या होता है वायडक्ट?
वायडक्ट पिलरों पर खड़ा एक प्रकार का पुल है। वायडक्ट एक ऐसा पुल है, जो कि आर्द्रभूमि को पार करने हेतु या फ्लाईओवर बनाने के लिए कई छोटे-छोटे स्पैन से बनाया गया है। यह शब्द एक रेल फ्लाईओवर के लिए पारंपरिक रूप से उपयोग में आता है। मेट्रो के गेट अन्य मेट्रो की तरह साइड में न खुलकर सामने की ओर खुलेंगे, जिससे लोग सीधे वायडक्ट पर उतरेंगे। वॉक-वे को हटाने से पिलर्स पर 20 प्रतिशत भार कम हो गया और इससे नींव को मजबूती मिली है। नींव पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा। नागपुर मेट्रो का वायडक्ट 8.5 मी. का है और पैरापड को वायडक्ट के साथ ही जोड़ दिया गया, जिससे मेट्रो को जल्दी काम करने में भी आसानी हो रही है। ज्यादा कॉन्क्रीट का इस्तेमाल भी नहीं हो रहा और खर्च भी नियंत्रण में है।

ऐसे हैं अन्य शहरों के मेट्रो वायडक्ट
दिल्ली एवं अन्य शहरों के मेट्रो वायडक्ट, जो कि दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर बने हैं, उनके वायडक्ट की साइज 10.5 मी. है। वॉक-वे उन्हीं से जुड़े हुए हैं, जिससे की नींव पर दबाव पड़ता है। सीमेंट का भी ज्यादा उपयोग होता है और समय के साथ राशि भी ज्यादा खर्च हो जाती है।

नागपुर की तर्ज पर काम होगा
डॉयरेक्टर प्रोजेक्ट मेट्रो महेश कुमार के मुताबिक मेट्रो ने वायडक्ट के लिए अपना खुद का डिजाइन तैयार किया है, जो कि भविष्य में काफी उपयोगी साबित होगा। अभी से इसके फायदे नज़र आ रहे हैं। हमारी मेट्रो की नींव बहुत मजबूत है, क्योेंकि उस पर ज़्यादा भार नहीं है। आने वाले समय में अन्य शहरों की मेट्रो नागपुर मेट्रो की उत्कृष्टता को देखते हुए इसकी तर्ज पर अवश्य काम करेगी, इसलिए हम इसका पेटेंट कराने जा रहे हैं।

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