आज भी जंगल पर निर्भर हैं आदिवासी , वनोपज केन्द्र शुरू होने से सुधर सकेगी दशा

आज भी जंगल पर निर्भर हैं आदिवासी , वनोपज केन्द्र शुरू होने से सुधर सकेगी दशा

Anita Peddulwar
Update: 2019-12-24 08:05 GMT
आज भी जंगल पर निर्भर हैं आदिवासी , वनोपज केन्द्र शुरू होने से सुधर सकेगी दशा

डिजिटल डेस्क, गड़चिराली। आम तौर पर देखा जाता है कि, प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन जीने अथवा  रोजगार समेत अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बाहरी दुनिया से रू-ब-रू होना पड़ता है लेकिन गड़चिरोली जिले में एक समुदाय ऐसा भी है, जिनके लिए उनका गांव ही उनकी दुनिया है। विशेषत: उनका जीवन जंगल से मिलनेवाले वनोपज के आधार पर बीत जाता है।

राज्य के आखरी छोर पर बसे गड़चिरोली जिले में आदिवासी समुदाय  बड़ी संख्या में है। यह समुदाय दुर्गम और अतिदुर्गम परिसर में बसा है। इस क्षेत्र में अब तक आवश्यकता अनुसार बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पायी है, जिसके कारण क्षेत्र के लोग आज भी सुविधाओं के लिए तरसते दिखाई दे रहे हैं। दुर्गम क्षेत्र के अनेक गांवों तक पहुंचने के लिए अब तक पक्की सड़कें  नहीं बन पायी है। वहीं नदी, नालों पर पुलिया का निर्माण भी नहीं किया गया है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी इस समुदाय के लोग अपना जीवनयापन करते नजर आ रहे हैं।

बता दें कि, वर्तमान स्थिति में आदिवासी समुदाय में सुशिक्षित पीढ़़ी तैयार हो रही है। लेकिन अब भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनका संपूर्ण जीवन केवल जंगल से मिलनेवाले वनोपज के आधार ही व्यतीत होता है।  जिले के जंगल में बांस, तेंदू फल, महुआ, हिरडा समेत विभिन्न तरह के वनोपज बड़े पैमाने पर है। जिनका संकलन कर इस समुदाय के लोग अपना जीवनयापन करते हैं। बताया जा रहा है कि, इस समाज के अधिकतर लोग सुबह ही अपने घर से जंगल के लिए रवाना होते हैं।

दिन भर   वनोपज संकलन करने के बाद शाम को घर वापस लौटते हैं। परिसर के बड़े गांव में साप्ताहिक बाजार आयोजित होता है, तब ही ये लोग अपने गांव से बाहर निकलते हैं। आदिवासी समाज के लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती होकर खेती करने के साथ ही वनोपज संकलन करने की ओर इनका अधिकतर ध्यान लगा रहता है, जिसके माध्यम से उनका गुजरबसर हो रहा है। सरकार वनोपज से अपना जीवनयापन करनेवाले इस समुदाय के लोगों को राहत दिलाने के लिए प्रशासन के माध्यम से वनोपज खरीदी केेंद्र शुरू करने की मांग अब जोर पकड़ रही है। 

वनोपज खरीदने के लिए केंद्र शुरू करना जरूरी
अधिकतर आदिवासी समाज के लोगों का जीवन वनोपज पर निर्भर होने के कारण वहे वनोपज का संकलन कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा वनोपज खरीदने संदर्भ में कोई प्रक्रिया नहीं चलाए जाने के कारण आदिवासियों द्वारा संकलन किया गया वनोपज निजी व्यापारियों को कम दाम में बेचना पड़ रहा है, जिसमें उनकी वित्तीय लूट हो रही है। पिछले अनेक वर्ष से वनविभाग द्वारा वनोपज खरीदने संदर्भ में प्रक्रिया शुरू करने की मांग स्थानीय नागरिकों द्वारा की जा रही है।  लेकिन अब तक जिले में कहीं पर भी खरीदी केंद्र शुरू नहीं किए जाने के कारण आदिवासियों को वनोपज कम  दाम में निजी व्यापारियों को बेचने की नौबत आन पड़ी है। वनविभाग से इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर वनोपज खरीदने के लिए केंद्र शुरू करने की मांग नागरिकों द्वारा की जा रही है। 

तेंदूपत्ता संकलन पर विशेष ध्यान 
खेती कार्य समाप्त होने के बाद इस समाज के लोगों के पास रोजगार का कोई अवसर नहीं रहता है। इस कारण ये लोग ग्रीष्मकाल के दिनों में शुरू होनेवाले तेंदूपत्ता संकलन पर विशेष ध्यान देते हैं। बता दें कि, 10 से 15 दिनों तक चलनेवाले इस सत्र से दो-तीन माह तक गुजर-बसर होने तक की आमदनी होती है, जिसके कारण परिवार के सभी सदस्य तेंदूपत्ता संकलन के कार्य में जुट जाते हैं। यह सिलसिला अनेक वर्षों से चला आ रहा है।  

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