तबाही के बाद अपने गांव वापस नहीं जाना चाहते ग्रामीण

तबाही के बाद अपने गांव वापस नहीं जाना चाहते ग्रामीण

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-30 17:58 GMT
तबाही के बाद अपने गांव वापस नहीं जाना चाहते ग्रामीण


डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/चौरई। एक माह पहले पेंच नदी किनारे बसे गांव बंधी के 44 मकान बाढ़ के पानी में ढह गए। चौरई और चांद के गांवों में अतिवृष्टि और बाढ़ से प्रभावित गांवों में अभी जनजीवन पटरी पर नहीं लौटा है। प्रभावित लोग गांव की उस जमीन पर दोबारा बसना नहीं चाहते, जहां पेंच नदी के पानी ने तबाही मचा दी थी। प्रशासन उन्हें एक किलोमीटर दूर पहाड़ी पर प्लाट काटकर बसा रहा है, इस पहाड़ी पर 50 प्लाट काटे गए हैं, यहां बाढ़ प्रभावित 44 परिवारों को प्लाट आवंटित किए गए हैं।
गौरतलब हैं कि 28 और 29 अगस्त को पेंच नदी की बाढ़ और अतिवृष्टि से चौरई और चांद के आधा दर्जन गांवों में जमकर नुकसान हुआ था। पाल्हरी पंचायत के बंधी गांव के 44 मकान ढह गए थे। गांव के सुखमन बताते हैं कि अपनी आंखों से बर्बादी देखने के बाद अब वे दोबारा उस जगह में नहीं जाना चाहते हैं। उनका परिवार नदी से दूर बसना चाहता है। पीडि़तों की मांग पर प्रशासन ने पाल्हरी और बंधी गांव के बीच में माता दाई की पहाड़ी पर मकानों के लिए भूमि का चयन किया है। पंचायत सचिव राजकुमार शर्मा ने बताया कि यहां पर 12 सौ वर्गफिट के 50 प्लाट काटे गए हैं, इनमें से 44 प्लाट बाढ़ प्रभावित परिवारों को दे दिए गए हैं। पहाड़ी को समतल कर उसे ग्रेवल रोड से जोड़ा जा रहा हैं। ग्रामीणों के मुताबिक प्रशासन ने उन्हें कुछ मुआवजा तो दे दिया है, लेकिन नया आशियाना बनने तक उन्हें शेल्टर होम में ही समय बिताना पड़ेगा।
हर परिवार को मकान के लिए 95 हजार
एसडीएम सीपी पटेल और तहसीलदार रायसिंह कुशराम के मुताबिक प्रशासन की प्राथमिकता बाढ़ पीडि़त परिवारों के लिए मकान बनाना है। जिनके मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें 95 हजार रुपए मकान बनाने के लिए दिए गए हैं। यह राशि पीडि़त परिवारों के खाते में जमा की गई है। पशु नुकसान और अन्य नुकसानी के लिए भी अलग से राशि प्रदान की गई हैं।
अब तक सदमे से नहीं उबरे लोग
बंधी गांव के लोग अब भी बाढ़ का मंजर नहीं भूल पाए हैं। गांव के लोगों ने बताया कि उनके मकान पूरे डूब गए थे, वे घरों से मवेशी और खाने पीने का सामान भी नहीं निकाल पाए थे। नदी का जल स्तर कम होने के बाद प्रभावित परिवारों के सदस्य धराशायी मकानों के मलबे से गृहस्थी का टूटा फूटा सामान समेटकर जीवन को पटरी पर लाने की कवायद कर रहे हैं। सभी लोग चाहते हैं कि जल्द से जल्द मकान बन जाए ताकि वे उनका परिवार सुरक्षित हो जाए। अधिकांश ग्रामीण मकान बनाने के लिए मिली राशि को बेहद कम बता रहे हैं।

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