‘ऐसे स्मार्ट कार्ड का क्या फायदा, जिसके लिए कार्ड रीडर ही न हो?’

‘ऐसे स्मार्ट कार्ड का क्या फायदा, जिसके लिए कार्ड रीडर ही न हो?’

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-24 10:00 GMT
‘ऐसे स्मार्ट कार्ड का क्या फायदा, जिसके लिए कार्ड रीडर ही न हो?’

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। जबलपुर शहर की यातायात व्यवस्था में बाधक बन रहे ऑटो को चुनौती देने वाली जनहित याचिका में बुधवार को नया मोड़ आया है। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डबल बेंच के सामने याचिकाकर्ता सतीश वर्मा ने आरोप लगाया कि परिवहन विभाग ड्रायविंग लाईसेन्स को स्मार्ट कार्ड के रूप में बना रहा, लेकिन उनके लिए सरकार के पास स्मार्ट कार्ड रीडर ही नहीं है। इससे स्मार्ट कार्ड वाले ड्रायविंग लाईसेन्स का मकसद ही पूरा नहीं हो रहा। डबल बेंच ने मामले को संजीदगी से लेते हुए सरकार को इस बारे में आ रही समस्या का पता लगाने तीन सप्ताह की मोहलत दी है।

गौरतलब है कि वकील सतीश वर्मा ने यह जनहित याचिका वर्ष 2013 में दायर करके शहर की सड़कों पर नियम विरुद्ध तरीके से धमाचौकड़ी मचा रहे ऑटो के संचालन को चुनौती दी थी। याचिका में आरोप है कि ऐसे ऑटो न सिर्फ शहर की यातायात व्यवस्था चौपट करते हैं, बल्कि इस हद तक सवारियों को बैठाते हैं कि हमेशा उनकी जान का खतरा बना रहता है। ऐसे ऑटो शहर की सड़कों को हाई स्पीड पर चलते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं, जिन्हें सड़क पर चलने वाले लोगों की जान की परवाह ही नहीं होती। आवेदक का आरोप है कि शहर की सड़कों पर धमाचौकड़ी मचाने वाले ऑटो के संचालन को लेकर कई बार सवाल उठे, लेकिन जिला प्रशासन अब तक उनके खिलाफ कोई ठोस कदम उठा पाने में नाकाम रहा, जिसपर यह याचिका दायर की गई थी।

मामले पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से  शासकीय वकील अमित सेठ हाजिर हुए। सेठ ने डबल बेंच को बताया कि परिवहन सचिव ने जबलपुर शहर के लिए स्मार्ट कार्ड रीडर खरीदने तीन बार टेंडर बुलाए थे, लेकिन वे असफल रहे। इस पर याचिकाकर्ता द्वारा स्मार्ट कार्ड रूपी ड्रायविंग लाईसेन्स पर आपत्ति की गई। साथ ही कहा गया कि सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वो पूरे प्रदेश में स्मार्ट कार्ड रीडर उपलब्ध कराए, पर ऐसा हो नहीं पा रहा। याचिकाकर्ता के बयानोंको संजीदगी से लेते हुए डबल बेंच ने सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश दिए। 

याचिका में मांगी गई राहत

  •  जो भी ऑटो चालक परमिट का उल्लंघन कर रहे, उन्हें मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 192-ए1 के तहत दण्डित किया जाए। इस धारा में 6 माह की सजा तक का प्रावधान है।
  • ऑटो में कंपनी ड्रायवर के लिए सिर्फ एक सीट लगाकर देती है, लेकिन बाद में यह सीट हटाकर पटिया लगाया जाता है, जिससे अधिक सवारियां बैठाई जा सकें। ऐसे पटिए तुरंत ने के निर्देश दिए जाएं।
  • सभी ऑटो में मीटर लगाने के निर्देश दिए जाएं, जिसमें यात्रियों से अनावश्यक किराया न वसूला जा सके। यात्री भाड़े की पूरी जानकारी ड्रायवर के पास हो और उसका जिक्र भी ऑटो में चस्पा होना चाहिए।
  • जो भी ऑटो कॉन्ट्रेक्ट कैरिज का उल्लंघन करके स्टेज कैरिज का उपयोग करते पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई के निर्देश दिए जाएं।

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