ये हैं वो नौ नदियां जो यवतमाल को देती हैं जीवन

ये हैं वो नौ नदियां जो यवतमाल को देती हैं जीवन

Anita Peddulwar
Update: 2018-02-09 05:24 GMT
ये हैं वो नौ नदियां जो यवतमाल को देती हैं जीवन

डिजिटल डेस्क, यवतमाल।  कहते हैं जल ही जीवन है और जल के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ताल-तलैया, जलाशय, बांध, नदियां जैसे जलस्त्रोत हैं इसलिए जीवन हैं। यवतमाल जिले से करीब नौ नदियां बहती हैं जो इसे सुजलाम सुफलाम बनाये रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं से जूझते यवतमाल जिले में यदि हरियाली है तो वह इन जीवनदायिनी नदियों के कारण ही है।

ये हैं वे नदियां
जिले से बहनेवाली नौ नदियों के कारण हजारों हेक्टेयर क्षेत्र की खेती को पानी मिल पा रहा है।  इन नदियों के कारण ही किसान एक वर्ष में 3 से 4 फसलों का उत्पादन कर पा रहे हैं। इन नौ नदियों में अरुणावती, पुस, बेंबला, अड़ाण, वर्धा, निर्गुड़ा, खूनी व  वाघाड़ी नदी का समावेश है। जब यह नदियां बारिश से लबालब होकर बहती हैं तो उसके रौद्र रूप के भी दर्शन होते हैं। ऐसे समय कोपरा, नांदुरा, संत सावंगी, इसापुर, वाटखेड़, पिंपलखुटी, पुसद शहर, वनकार्ला, रंभा, मुंगसी, सावंगी, लिंगा, चिकनी, आमनी, काठोडा, कलंब, रालेगांव, वड़की, शिरपुर, जुगाद आदि गांव बाढ़ से घिर जाते हैं लेकिन कुछ दिन या घंटों में ही स्थिति संभल जाती है और फिर से यह नदियां कलकल करती हुर्इं पूर्ववत बहने लगती हैं।

नदियों से फसलों का जीवन
इन नदियों के कारण जिले में कपास, तुअर, ज्वार, इन मुख्य फसलों के साथ ही गन्ना, हलदी, मूंगफल्ली, चना, गेहूं, फल और फूलों की भी खेती हो रही है। इन नदियों पर बने बांध के कारण फसलोत्पादन में वृध्दि संभव हो पायी है। अरुणावती नदी की उगमस्थली वाशिम है और यह नदी आर्णी तहसील से होकर गुजरती है। वहीं पर अरुणावती बांध का निर्माण किया गया है। इस बांध से आर्णी की सैकड़ों हे. क्षेत्र की खेती की सिंचाई होती है। बाद में यह नदी यवतमाल जिले के पैनगंगा नदी में जाकर मिल जाती है। पुस नदी को पैनगंगा नदी की उपनदी माना जाता है। उसकी भी उगमस्थली वाशिम जिला ही है। इसी नदी के नाम पर शहर का नाम  पुसद पड़ा, ऐसा लोगों का कहना है।  यह नदी माहुर के पास हिवरा संगम में जाकर पैनगंगा से मिल जाती है। पैनगंगा नदी बुलढाणा, वाशिम, यवतमाल, नांदेड़, हिंगोली, इन 5 जिलों से बहनेवाली नदी है। बुलढाणा के जाईचा देव में इस नदी का उगम स्थल है। यह नदी वाशिम के रिसोड के मध्य भाग से बहते हुए यवतमाल जिले के कई गांवों से गुजरती है। जिससे अलौकिक वनसंपदा मिली है। हरियाली से सजे पैनगंगा अभयारण्य को 3 तरफ से पैनगंगा नदी स्पर्श करके  निकलती है। नदी के दूसरे तट पर नांदेड़ जिला है जिसमें किनवट अभयारण्य है। इसी नदी पर प्रख्यात सहस्त्रकुंड जलप्रपात है। नदी का प्रवाह यहां की बड़ी-बड़ी चट्टानों के कारण विभाजित हो गया है। इस कारण पानी नीचे गिरता हुआ दो धाराओं में नजर आता है। सोनधाबी व सहस्त्रकुंड जलप्रपात यह पैनगंगा अभयारण्य का मुख्य आकर्षण हैं। साथ ही पर्यटकों के पसंदीदा स्थल भी है।

पैनगंगा नदीं के तट पर है नागनाथ का मंदिर
पैनगंगा यवतमाल की पूर्व सरहद से बहते हुए बल्लारपुर में वर्धा नदी से जाकर मिलती है। इस नदी को वाशिम और यवतमाल जिले की दक्षिण सीमा भी कहा जाता है। नांदेड़ के किनवट तहसील अंतर्गत ग्राम पेंदा नागदौव में पैनगंगा नदी के तट पर नागनाथ का मंदिर है। यहां बड़ी संख्या में श्रध्दालु आते हैं। बेंबला नदी अमरावती जिले से आकर वर्धा नदी में समाहित होकर यवतमाल से गुजरती है। बाभुलगांव में बेंबला नदी पर बड़े बांध का भी निर्माण किया गया है जिसकी नहर कलंब, रालेगांव तक गई हुई है। अब अमृत योजना के तहत इसी बांध से यवतमाल वासियों की प्यास बुझाई जानेवाली है। अड़ाण नदी की भी उगम स्थली वाशिम ही है।  वह आगे चलकर पैनगंगा और अरुणावती नदी में मिल जाती है। अरुणावती नदी पर दो बांधों का निर्माण किया गया है। एक बांध ग्राम सोनाला के पास तथा दूसरा कारंजा लाड के पास बनाया गया हैै।

निर्गुणा नदी वर्धा नदी में हो जाती है विलीन
निर्गुड़ा नदी अमरावती होते हुए वणी से निकलकर वर्धा नदी में मिल जाती है। इसी प्रकार खूनी नदी यवतमाल जिले की केलापुर तहसील की नदी है। वाघाड़ी नदी पर निलोना बांध का निर्माण किया गया है जिससे पूरे यवतमाल शहर को जलापूर्ति होती है। यह नदी गोधनी होते हुए निलोणा पहुंचती है। इन सभी नदियों के कारण प्रचुर मात्रा में वनसंपदा, फसल, वनऔषधि आदि की सौगात यवतमाल वासियों को मिली है। जब यह नदियां रौद्र रूप धारण कर लेती हैं तब यवतमाल से उमरखेड़, नागपुर, माहुर, वणी, पुसद मार्ग बंद हो जाते हैं।  दिग्रस की धावंडा नदी दिग्रस वासियों की बरसों से प्यास बुझाती आ रही है। 
 

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