सरकार की निष्क्रियता पर हाईकोर्ट की फटकार, निचली अदालत ने 2014 में सुनाई थी फांसी

सरकार की निष्क्रियता पर हाईकोर्ट की फटकार, निचली अदालत ने 2014 में सुनाई थी फांसी

Tejinder Singh
Update: 2019-01-25 13:45 GMT
सरकार की निष्क्रियता पर हाईकोर्ट की फटकार, निचली अदालत ने 2014 में सुनाई थी फांसी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने शक्ति मिल सामूहिक दुष्कर्म मामले में फांसी की सजा पाने वाले मुजरिमों की अपील पर तेजी से सुनवाई को लेकर राज्य सरकार की निष्क्रियता को देखते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यह सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। जस्टिस अभय ओक व जस्टिस अजय गडकरी की बेंच ने कहा कि निचली अदालत ने मामले की सुनवाई को तेजी से पूरा करते हुए आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इस सजा की पुष्टि के लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। दिसंबर 2014 में पहली बार यह मामला हाईकोर्ट के सामने सुनवाई के लिए आया था। चार साल बाद बीते 3 जनवरी को इस मामले की फिर सुनवाई हुई थी।

बेंच ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है। यदि सरकार ऐसे मामलों को लेकर असंवेदनशीलता दिखाएगी तो हमे समझ में नहीं आता कि हम क्या कहें। बेंच ने कहा कि क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह इस तरह की मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए आग्रह करें।

शुरुआत में 3 जनवरी 2019 को इस मामले की सुनवाई रखी गई थी, लेकिन इस मामले में दोषी पाए गए आरोपियों ने कानून की उस धारा को चुनौती दी है। जिसके तहत उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है। बेंच ने कहा कि यह मामला पिछले चार साल से सुनवाई के लिए प्रलंबित है। 5 दिसंबर 2014 को यह मामला पहली बार सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इसके बाद 3 जनवरी को यह मामला सुनवाई के लिए आया। बेंच ने कहा कि इस बीच सरकार ने मामले की तेजी से सुनवाई को लेकर कोई प्रयास नहीं किया। बेंच ने फिलहाल राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह मुख्य न्यायाधीश के सामने आवेदन कर आरोपियों की ओर से दायर याचिका व सरकार की याचिका पर एक साथ सुनवाई के लिए आग्रह करें। ताकि भविष्य में सुनवाई में देरी न हो। 

गौरतलब है कि मुंबई सत्र न्यायालय ने अप्रैल 2014 में विजय जाधव, मोहम्मद कासिम बंगाली, मोहम्मद सलीम अंसारी, सिराज खान को मुबंई के शक्ति मिल परिसर में फोटोग्राफी के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराया था। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ई के तहत जाधव, बंगाली व अंसारी को फांसी की सजा सुनाई थी। जबकि सिराज को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। फांसी की सजा पानेवाले आरोपियों ने 376ई की वैधानिकता को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जबकि सरकार राज्य सरकार ने इनकी फांसी की सजा को पुष्ट करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में अपील की है। 
 

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