यहां त्रिनेत्र गणेश की पूजा करने हर बुधवार आते थे विक्रमादित्य

यहां त्रिनेत्र गणेश की पूजा करने हर बुधवार आते थे विक्रमादित्य

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-17 07:27 GMT
यहां त्रिनेत्र गणेश की पूजा करने हर बुधवार आते थे विक्रमादित्य

 

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क। राजस्थान रणथंभौर किले के अंदर भगवान गणेश का एक अति अद्भुत मंदिर स्थापित है। यहां भगवान गणपति की चार मूर्तियां जो कि स्वयं भू मानी जाती हैं, किंतु एक मुख्य मूर्ति है जो कि त्रिनेत्रधारी है। इसके बारे में कहा जाता है कि गणपति का ऐसा स्वरुप पूरे भारत में सिर्फ यहीं देखने मिलता है। विशेष अवसरों पर यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।  भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें राजस्थान रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है।


मिलीं शिव की शक्तियां 
त्रिनेत्रधारी गणेश मूर्ति के संबंध में कहा जाता है कि भगवान शिव का पुत्र होने की वजह से उन्हें भगवान शंकर की शक्तियां प्राप्त हुई हैं। जिसकीवजह से ही उनका यह स्वरूप है। किले के अंदर स्थित मंदिर को बाद में निर्मित कराया गया, लेकिन उसके अंदर जो मूर्ति विद्यमान है वह स्वयं ही पृथ्वी से प्रकट हुई थी। 


स्वयं आते थे चलकर
इस मंदिर के संबंध मंे यह भी मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य स्वयं उज्जैन से प्रति बुधवार चलकर यहां त्रिनेत्र गणेश के दर्शन करने आते थे। जिसकी वजह से ही बाद में गणपति बप्पा ने उन्हें स्वप्न देकर मध्यप्रदेश के सीहोर में मूर्ति स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। 


अत्यंत ही अलौकिक स्वरूप
त्रिनेत्र गणेश की पूजा-आरती का दृश्य अत्यंत ही अलौकिक होता हैं किले के अंदर स्थापित होने की वजह से यह विदेशियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के संबंध मंे यह भी मान्यता है कि यहां  आकर बप्पा से जो भी कामना की जाए वह अवश्य ही पूर्ण होती है। वे स्वयं की व भगवान शिव की से प्राप्त शक्तियों से भी भक्तों के कष्टों और मनोकामनाओं को अवश्य ही पूर्ण करते हैं। राजस्थान में स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर के समान ही इस मंदिर की भी मान्यता है। हर बुधवार यहां मन्नत मांगने वालों की भीड़ हाेती है।

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