देवताओं का दिन, जानिए क्या है 'उत्तरायण' का महत्व

देवताओं का दिन, जानिए क्या है 'उत्तरायण' का महत्व

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-13 03:11 GMT
देवताओं का दिन, जानिए क्या है 'उत्तरायण' का महत्व

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू कैलेंडर या पंचांग में पांच अर्थात अंगों यथा वर्ष, मास, पक्ष, तिथि तथा घटिका को ध्यान में रखा जाता है। इसी के अनुसार तिथि, त्योहार आदि निर्धारित होते हैं। मकर संक्रांति भी एक ऐसा ही त्योहार जिसका संबंध सीधे सूर्य से होता है या यूं भी कहा जा सकता है कि सूर्य की गति और दिशा ही इस दिन और तिथि का निर्धारण करती है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होते हैं, जिसकी वजह से इस दिन को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। यहां हम आपको उत्तरायण और दक्षिणायन के बारे में बताने जा रहे है। 

 

28 नक्षत्र या तारामंडल

एक वर्ष में सूरज जिन 12 स्थानाें या क्रांति वृत्त या राशियों से होकर गुजरता है, उन्हें नक्षत्र कहे जाने वाले तारों के नाम पर नामित किया जाता है। कुल 28 नक्षत्र या तारामंडल होते हैं। नक्षत्रों का आकार एक समान नही होता है। उनमें तारों की एक-सी संख्या भी नही होती। कुछ में तो एक या दो भी होते हैं। प्रत्येक राशि में दो से तीन नक्षत्र होते हैं। 

 

 

ऐसी भी मिलता है उल्लेख

सूर्य के उत्तरायण होने का पुराणों में अत्यधिक महत्व है। इसका उल्लेख सर्वाधिक भीष्म पितामह की इच्छामृत्यु के वरदान में मिलता है। जिसके संबंध में बताया जाता है कि भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्यदेव के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। क्योंकि जब उन्हें अर्जुन ने तीर मारे वह प्राण त्यागने के लिए उत्तम माह नही था। जिसकी वजह से उन्होंने 52 दिन तक प्रतीक्षा की थी।

 

 

उत्तरायणः मकर संक्रांति से कर्क संक्रांति तक के पहले 6 माह अर्थात पौष जनवरी, से आषाढ़ जून। इसे देवताओं के दिन के रूप में भी जाना जाता है। 

 

दक्षिणायनः जुलाई से दिसंबर तक अंतिम 6 माह माह देवताओं की रात्रि कही जाती है। इस प्रकार एक सौर वर्ष, देवताओं के एक दिन तथा एक रात के बराबर होता है। 

Similar News