जानें गुड़ी पड़वा का महत्व ? इसलिए मनाया जाता है यह पर्व

जानें गुड़ी पड़वा का महत्व ? इसलिए मनाया जाता है यह पर्व

Manmohan Prajapati
Update: 2019-03-27 09:48 GMT
जानें गुड़ी पड़वा का महत्व ? इसलिए मनाया जाता है यह पर्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। यह पर्व 6 अप्रैल 2019 यानी आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुड़ी पड़वा (मराठी-पाडवा) के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। "गुड़ी" का अर्थ "विजय पताका" होता है। कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की सहायता से शत्रुओं को पराजित किया था। तब से इसे विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ।

इन प्रदेशों में ऐसे मनाते हैं ये त्यौहार
युग और आदि शब्दों की संधि से बना है युगादि। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादि और महाराष्ट्र में यह पर्व "गुड़ी पड़वा" के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं-गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन छत पर गुड़ी लगाने की भी परम्परा है। 

इस दिन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सभी घरों को आम की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी।

आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया। इसी अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है और कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं।

मान्यता
कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरु होता है। इसलिए इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है।

कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ियां) फहराए। इस दिन को औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है,इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।  

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