नवरात्रि: अष्टमी पर नवदुर्गा के आठवें स्वरुप 'महागौरी' की ऐसे करें पूजा

नवरात्रि: अष्टमी पर नवदुर्गा के आठवें स्वरुप 'महागौरी' की ऐसे करें पूजा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-10-06 04:08 GMT
नवरात्रि: अष्टमी पर नवदुर्गा के आठवें स्वरुप 'महागौरी' की ऐसे करें पूजा

डिजिटल डेस्क। नवरात्रि के आठवें दिन यानी आज (रविवार) नवदुर्गा के आठवें स्वरुप "महागौरी" की पूजा की जाती है। भगवान शिव की प्राप्ति के लिए इन्होंने कठोर पूजा की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव भक्ति से प्रसन्न होकर माता महागौरी को दर्शन दिए। साथ ही उनका काला शरीर देखकर उन्हें गौरी श्वेत वर्ण होने का आर्शीवाद दिया। तब ही से इनका नाम माता महागौरी हो गया।

रामायण के अनुसार माता सीता ने श्री राम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी। मां गौरी श्वेत वर्ण की हैं और श्वेत रंग मैं इनका ध्यान करना अत्यंत लाभकारी होता है। विवाह सम्बन्धी तमाम बाधाओं के निवारण मैं इनकी पूजा अचूक होती है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार देवी महागौरी की पूजा का विधान बताया गया है। ज्योतिष में इनका सम्बन्ध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है। इस बार मां महागौरी की पूजा 06 अक्टूबर यानी आज होगी। 

क्या है मां गौरी की पूजा विधि?

  • पीले वस्त्र धारण करके पूजा आरम्भ करें
  • मां के समक्ष दीपक जलाएँ और उनका ध्यान करें
  • पूजा मैं मां को श्वेत या पीले फूल अर्पित करें 
  • उसके बाद इनके मन्त्रों का जाप करें
  • अगर पूजा मध्य रात्रि मैं की जाय तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे

किस प्रकार मां गौरी की पूजा से करें शुक्र को मजबूत ?

  • मां की उपासना सफेद वस्त्र धारण करके करें
  • मां को सफेद फूल , और सफेद मिठाई अर्पित करें
  • फिर शुक्र के मूल मंत्र "ॐ शुं शुक्राय नमः" का जाप करें
  • शुक्र की समस्याओं के समाप्ति की प्रार्थना करें

मां महागौरी को क्या विशेष प्रसाद अर्पित करें?

  • आज मां को नारियल का भोग लगायें
  • इसे सर पर से फिरा कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें
  • आपकी कोई एक ख़ास मनोकामना पूर्ण होगी

अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने का महत्व और नियम

  • नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है।
  • यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है।
  • इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है।
  • नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, परन्तु अष्टमी और नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है।
  • 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है।
  • अलग अलग उम्र की कन्या देवी के अलग अलग रूप को बताती है।
 

 

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