दुर्गाअष्टमी को 'महागौरी', इनके पूजन से प्राप्त होती हैं अलौकिक सिद्धियां, योग्य वर
दुर्गाअष्टमी को 'महागौरी', इनके पूजन से प्राप्त होती हैं अलौकिक सिद्धियां, योग्य वर
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र के आठवें दिन अर्थात अष्टमी को महागौरी की पूजा की जाती है। जो कि इस बार 28 सितंबर गुरुवार को की जाएगी। इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी मुद्रा बेहद शांत है।
4 भुजाएं और वृषभ वाहन
4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है होने की वजह से इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है। ""अष्टवर्षा भवेद् गौरी"" यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है।
अभय मुद्रा में हाथ
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। मां गौरी ने ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनके पूजन से भक्तों के पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना,आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
शिव को पाने किया कठिन तप
पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने कठिन तप किया था। कंदराओं में रहने और बेलपत्र खाने से इनका शरीर काला और कांतिहीन हो गया था, लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। जिसकी वजह से वे महागौरी कहराईं। मनभावन पति की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं महागौरी का पूजन करती हैं।
कन्या भोज का विधान
अष्टमी के दिन ही कन्या पूजन व भोज का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या भोज करते हैं, लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ बताया गया है। इस पूजन में 9 कन्याओं को भोजन कराया जाता है। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। भगवती महागौरी को प्रसन्न करने के लिए ये श्रेष्ठ विधान बताया गया है।
मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।