अनोखा मंदिर ! यहां भगवान शिव को 100 साल से चढ़ती है झाड़ू

अनोखा मंदिर ! यहां भगवान शिव को 100 साल से चढ़ती है झाड़ू

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-22 04:41 GMT
अनोखा मंदिर ! यहां भगवान शिव को 100 साल से चढ़ती है झाड़ू

डिजिटल डेस्क, मुरादाबाद। वैसे तो आडंबरों से दूर औघड़दानी की पूजा में सदैव ही वही चीजें शामिल की जाती हैं, जिन्हें किसी अन्य देव को नहीं चढ़ाया जा सकता है। श्मशान में निवास करने वाले भगवान शिव को एक बेलपत्र भी प्रसन्न कर देता है, लेकिन आज जिस ओर हम आपको ले जा रहे हैं वह स्थान शिव के अनेक मंदिरों में सबसे अलग है। यहां लोग भक्तिभाव से झाड़ू अर्पित करते हैं...

मुरादाबाद-आगरा राजमार्ग पर सदत्बदी गांव में स्थित अतिप्राचीन पातालेश्वर मंदिर (pataleshwar mahadev) के बारे में मान्यता है कि यहां शिवलिंग पर झाडू चढ़ाने से जटिल से जटिल त्वचा रोग का समाधान हो जाता है। यूं तो यहां सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, मगर पवित्र श्रावण मास में बड़ी तादाद में लोग अपनी मन्नत पूरी करने के लिए यहां कतारबद्ध दिखाई दे रहे हैं।

मंदिर परिसर में लगी दुकानों पर प्रसाद की सामग्री के साथ झाड़ू भी बिकती है। महाशिवरात्री पर मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है। जिसके लिए कई दिन पूर्व ही तैयारिया शुरू हो जाती है। खास बात यह है कि इस अनूठे शिव मंदिर की प्रबंधन व्यवस्था के लिए कोई कमेटी या ट्रस्ट नहीं है। महाशिवरात्री पर आने वाले लाखों शिवभक्तों के लिए इलाके के शिवभक्त आपसी सहयोग से ही व्यवस्थाएं देखते हैं।

 

मान्यता है कि सदियों पहले एक व्यापारी भिखारी दास काफी धनवान होने के बावजूद चर्म रोग से पीड़ित थे। चर्म रोग से पीड़ित व्यापारी किसी वैद्य से अपना इलाज करवाने के लिए जा रहे थे कि तभी रास्ते में उन्हें जोरों की प्यास लगी तो वे पास दिख रहे एक आश्रम में पानी की खातिर गए। जाते-जाते भिखारी दास आश्रम में रखे एक झाड़ू से टकरा गए। कहते हैं कि उस झाड़ू के स्पर्श मात्र से ही उनका त्वचा रोग ठीक हो गया।

 

व्यापारी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने आश्रम में रहने वाले संत को हीरे-जवाहरात देने की इच्छा प्रकट की, मगर संत ने इसे नकारते हुए कहा कि वे इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करा दें। व्यापारी ने आश्रम के निकट ही शिव मंदिर बनवा दिया, जो आज पातालेश्वर मंदिर (pataleshwar mahadev) के नाम से विख्यात है। मंदिर को लेकर 100 साल से पहले जंगल में पशु चराने वाले चरावाह बालक और शिवलिंग पर घास काटने बाली दरांती की कथा भी यहां काफी प्रचलित है।

 

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