नवरात्रि में महानिशा पूजा का है विशेष विधान, करें देवी जागरण

नवरात्रि में महानिशा पूजा का है विशेष विधान, करें देवी जागरण

Manmohan Prajapati
Update: 2019-04-11 12:08 GMT
नवरात्रि में महानिशा पूजा का है विशेष विधान, करें देवी जागरण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 6 अप्रैल से वासंतिक नवरात्रि प्रारम्भ हो गई है। इस समय लोग माता रानी के व्रत रखकर साधना कर रहे हैं। जिससे उन्हें आने वाले समय में धन-सम्पदा और वैभव की प्राप्ति होगी। बसंत ऋतु के साथ हिन्दू नव वर्ष का आगमन माता दुर्गा की शक्ति के साथ आता है। माता सभी प्रकार के कष्टों का हरण करके अपने पुत्रों को सुखी करती है। बसंत ऋतु मानो माता की कृपा का प्रतीक बनकर हर्ष और मधु युक्त वातावरण प्रदान कर एक नई ऊर्जा का जनमानस में संचार करता है।

चैत्र शुक्ल पक्ष से प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नवमी तक माता के नवरूपों की भक्तों द्वारा आराधना की जाती है। माता का अष्टम रूप महागौरी का है एवं नवां रूप सिद्धिदात्री का है। महानिशा में हीं भवानी की उत्पत्ति होती है,और अपने नवें स्वरूप से अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करती हैं।

कैसे करें पूजा
किन्तु अधिकतम देवी भक्तों को यह नहीं पता होता है कि दुर्गा मां की पूजा कैसे करें। जिससे वह प्रसन्न हो सके और अपना आशीर्वाद प्रदान करें। किसी भी नवरात्रि में महानिशा की पूजा का विशेष विधान होता है। जिसके द्वारा भक्त मां दुर्गा की मन से साधना कर उन्हें प्रसन्न करते है मांगी हुई मुरादें पूरी होती है।

करें देवी जागरण
इस बार 12 अप्रैल को महानिशा पूजा करने की विशेष तिथि है। सप्तमी तिथि की रात और अष्टमी की सुबह तक के वक्त को महानिशा कहते हैं जो सप्तमी मध्य रात्रि से आरम्भ होती है। इस दिन देवी भक्त रातभर जागरण करते हैं और देर रात तक मां जगदम्बे की विशेष पूजा अर्चना विधि विधान से करते हैं। इसके साथ कई धार्मिक अनुष्ठान कर देवी मां को प्रसन्न किया जाता है। इसलिए देवी भक्तों को चाहिए कि वह 12 अप्रैल को अवश्य देवी जागरण में भाग लें और रातभर जागकर माता की पूजा-साधना करें।

कभी नहीं रहती धन की कमी
महानिशा काल (मध्य रात्रि) में देवी महागौरी के पूजन का विशेष महत्व है। महानिशा काल को महानिशीथ काल भी कहते हैं। वाम मार्ग में इस रात को बलि का विधान है। बलि अर्थात अपने प्रिय से प्रिय वस्तु का समर्पण। शास्त्रों के अनुसार अष्टमी जिस दिन मध्य रात्रि में प्राप्त हो उसी दिन रात को महानिशा पूजा की जाती है। माता महागौरी भगवान शंकर की अर्धागिनी होने के नाते समस्त कामनाओं को पूर्ण करती हैं। ये सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसी दिन मां महागौरी की उत्पत्ति भी मानी गयी है। इस दिन अन्नपूर्णा के पूजन से घर में कभी धन धान्य की कमी नहीं रहती है।

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