अकबर ने भेंट किया था ये कढ़ाहा, अजमेर दरगाह के बारे में जानें रोचक FACTS

अकबर ने भेंट किया था ये कढ़ाहा, अजमेर दरगाह के बारे में जानें रोचक FACTS

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-30 06:19 GMT
अकबर ने भेंट किया था ये कढ़ाहा, अजमेर दरगाह के बारे में जानें रोचक FACTS

डिजिटल डेस्क, अजमेर। अजमेर शरीफ या दरगाह  भारत में राजस्थान स्टेट के अजमेर में स्थित प्रसिद्ध सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जिसमें उनका मकबरा स्थित है। यह एक ऐसा स्थान है जहां हर धर्म के लोग अपनी मुराद लेकर माथा टेकने आते हैं। यहां देशी-विदेशी अकीतमंदों की कमी नही रहती। कहा जाता है कि इस दरगाह पर एक बार जो भी सच्चे मन से आता है वह कभी भी खाली हाथ नही जाता। 2 दिसंबर को ईद-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर हम आपको दरगाहर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं...

 

-यहां पैगम्बर मोहम्मद के दाढ़ी के बाल जिन्हें मू-ए-मुबारक भी कहा जाता है इसी स्थान पर सहेज कर रखे गए हैं

 

-दरगाह ख्वाजा साहब अजमेर में प्रतिदिन जो रौशनी की दुआ पढ़ी जाती है वह खुद ख्वाजा हुसैन अजमेरी द्वारा लिखी गई थी

 

-ये भी बताया जाता है कि मुगल सम्राट अकबर दरगाह तक पुत्र की मुराद लेकर नंगे पैर चलकर गया था। उसके साथ पूरा लश्कर था लेकिन वह पैदल यहां जियारत के लिए पहुंचा। जिसके बाद उसे जहांगीर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।

 

-बाॅलीवुड सितारों से लेकर बड़े-बड़े नेता और अधिकारी भी यहां जियारत के लिए पहुंचते हैं। चादर चढ़ाकर ये अपनी मुराद मांगते हैं। 

 

-रोजाना नमाज के बाद सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अजमेर शरीफ के हॉल महफ़िल.ए.समां में अल्लाह की महिमा का बखान करते हुए कव्वालियां गाई जाती हैं

 

-हर रोज नमाज के बाद सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अजमेर शरीफ के हॉल में महफिल-ए-समां में कव्वालियां गाई जाती हैं। जिनमें अल्लाह की नेमत का बखान होता है।

 

-यहां आने वाला कभी भी कोई भी भूखा नही जाता। दरगाह के अंदर ही दो बड़े कढ़ाहे में प्रसाद बनाया जाता है। जिनमें बतौर निआज चावल, केेसर, घी, बादाम, चीनी, मेवा शामिल होता है। इन सभी को मिलाकर इस प्रसाद को बनाया जाता है। ये रात में तैयार होता है सुबह बांट दिया जाता है।

 

-बड़ा कढ़ाहा करीब 10 फीट गोलाकार लिए हुए है। छोटे और बड़े दोनों कढ़ाहे में करीब 44 किलो चावल विभिन्न मेवे आदि से मिलाकर बनाया जाता है। बड़े कढ़ाहे के बारे में कहा जाता है कि इसे बादशाह अकबर ने दरगाह में भेंट किया था जबकि छोटा स्वयं जहांगीर ने यहां चढ़ाया था। 

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