उत्तरा ने भी रखा था 'हलषष्ठी' व्रत, आज पूजन में अपनाएं ये विधि

उत्तरा ने भी रखा था 'हलषष्ठी' व्रत, आज पूजन में अपनाएं ये विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-13 04:56 GMT
उत्तरा ने भी रखा था 'हलषष्ठी' व्रत, आज पूजन में अपनाएं ये विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी (बलदाऊ) के जन्मोत्सव को हलषष्ठी के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। इस वर्ष यह 13 अगस्त रविवार को मनाया जा रहा है।

यह व्रत माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु की कामना से रखती हैं। हलषष्ठी व्रत से मुति दुर्वासा व उत्तरा की कथा भी जुड़ी है। मुनि दुर्वासा ने भी इस व्रत को सामूहिक रूप से करने की बात कही है। मुनि दुर्वासा ने स्वयं हस्तिनापुर में उपस्थित होकर युधिष्ठिर को हलछठ व्रत के बारे में बताया था। जिसके बाद उत्तरा ने इस व्रत को धारण किया, जिसके प्रताप से भगवान वासुदेव ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा का वचन दिया और उसे पूर्ण किया। आज हम यहां पूजन विधि की कुछ महत्वपूर्ण बातें आपको यहां बताने जा रहे हैं...

पूजन विधि

-प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।

-इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं।

-इसके बाद पृथ्वी को लीपकर एक छोटा-सा तालाब बनाएं।  

-इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। तपश्चात इसकी पूजा करें।

-हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें।

-पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।  

-पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें। इसके कथा कहें अथवा सुनें।

-पूजन के उपरांत इसका प्रसाद कन्याओं में बांट दें।

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