जानिए क्या है श्रावण में गुरु प्रदोष व्रत का महत्व ?

जानिए क्या है श्रावण में गुरु प्रदोष व्रत का महत्व ?

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-02 02:49 GMT
जानिए क्या है श्रावण में गुरु प्रदोष व्रत का महत्व ?

 

डिजिटल डेस्क। सनातन धर्म में प्रदोष व्रत प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत का हर दिन अलग महत्व होता है आज हम आपको बता रहे हैं कि श्रावण में गुरु प्रदोष का महत्व क्या है। इस बार श्रावण में दोनों पक्षों में अर्थात कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में संयोग से गुरु प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इस व्रत में स्वाभाविक रूप से भगवान शिव जी की पूजा की जाती है। इस बार गुरु प्रदोष व्रत 9 अगस्त 2018 और 23 अगस्त 2018 को आ रहा है जो कि गुरू प्रदोष व्रत है।

श्री सूतजी के कहे अनुसार गुरू प्रदोष व्रत का पालन करने वाले की सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि आप श्रावण में गुरु प्रदोष व्रत रख रहे है तो किसी योग्य पंडित से पूजा कराएं, जो कि यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। धर्म शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस अवधि के बीच भगवान शिव कैलाश पर्वत में प्रसन्न होकर नृत्य करते है। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं इसकी पूजा विधि, कथा और महत्व के बारे में।

 

 

गुरु प्रदोष व्रत का महत्व

शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि प्रदोष व्रत को रखने से आपको दो गायों को दान देने के समान पुण्य मिलता है। इस दिन व्रत रखने और शिव की आराधना करने पर भगवान शिव की कृपा आप पर सदा बनी रहती है। जिसके कारण आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

 

इस व्रत को करने से आप और आपका परिवार में आरोग्यता रहती है। साथ ही आप की सर्वकामनाएं पूर्ण होती है। श्रावण में गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के नाश के लिए किया जाता है।श्रावण में गुरुवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के  साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है।

 

 

ऐसे करें श्रावण में प्रदोष व्रत में पूजा

सबसे पहले इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर सभी नित्य कार्यों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें।संध्या काल सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद अपने घर के ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करलें।

 

इसके पश्चात आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ॐ नम: शिवाय: का जाप करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें।

 

 

गुरुप्रदोष व्रत कथा 

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या काल को लौट कर आती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी हो गई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

 

 

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। तब ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को गुरु प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी गुरु प्रदोष व्रत करना प्रारम्भ किया।

 

 

एक दिन दोनों बालक वन में भ्रमण रहे थे उसी समय उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई।  ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की एक गंधर्व कन्या से बात करने लगे। 

 

 

गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया।

 

 

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के गुरु प्रदोष व्रत करने का फल था। गुरुप्रदोष व्रत तो वेसे ही अनेक फल देने वाला होता हे किन्तु इसका श्रावण महीने में सौ गुना फल प्राप्त होता है। स्कंदपुराण के अनुसार जो जातक गुरु प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर गुरु प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी भी दरिद्रता नहीं सताती है।

 

 

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