बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का तानाबाना है दशकों पुराना

मुंबई बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का तानाबाना है दशकों पुराना

IANS News
Update: 2022-06-12 10:00 GMT
बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का तानाबाना है दशकों पुराना

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के आपसी रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं। हर रिश्ते की तरह यह संबंध भी कई उतार-चढ़ाव से गुजर चुका है। इन रिश्तों में जब कड़वाहट आती है तो कभी-कभी इसकी परिणति बहुत ही घातक और जानलेवा साबित होती है। बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के इस रिश्ते को दो चरणों में बांटकर अच्छी तरह समझा जा सकता है।

पहला चरण है साल 2000 से पहले का दौर और दूसरा चरण में साल 2000 के बाद का दौर। फ्लैशबैक- 2000 से पहले का दौर भारतीय सिनेता जगत के पितामह कहे जाने वाले धुंडिराज गोविंद फाल्के ने जब 1913 में राजा हरिश्चंद्र बनाई थी, उस वक्त नया -नया अंकुरित होता फिल्म उद्योग जैसे-तैसे अपने अस्तित्व को बचा रहा था।

इसके 40 दशक बाद या यूं कहें कि 1960 के बाद, फिल्म जगत में माफिया का पैसा आने लगा और पूरे फिल्म उद्योग में एक तरह से अमीरी छा गई। माफिया के फंड से प्रोड्यूसर अचानक पैसों की खान बन गए और ये फिल्म के साथ टीवी की दुनिया में भी कदम रखने लगे। हालांकि, फिल्म जगत पर अब भी पुरानी फिल्म कंपनियों का दबदबा था लेकिन 1960-1970 के बीच कई फिल्म निर्माताओं ने इंडस्ट्री में एंट्री ली। कई ने तो अपने प्रोडक्शन हाउस शुरू कर दिये और कमाऊ फिल्में बनाने लगें। इनकी अधिकतर फिल्में कर्मिशियल रूप से सफल रहती थीं।

बॉलीवुड के एक प्रख्यात प्रोड्यूसर ने कहा कि अब चूंकि फंड कहीं और से मैनेज होता था और फंडिंग करने वाले अलग-अलग गैंग के थे। इसी कारण गैंगवार ने एक तरह से बॉलीवुड में दस्तक दे दी। गैंगस्टर्स अपने हितों की रक्षा के लिए धमकी , वसूली, शूटआउट और हत्या पर उतर आये। साल 2000 के बाद का दौर साल 2000 के पहले कई प्रोड्यूसर, निर्देशक, अभिनेता, फाइनेंसर या संगीतकार अंडरवर्ल्ड के संबंधों के कारण जब ऊंची उड़ान भर रहे थे और कई उसके भय में जी रहे थे, तब बॉलीवुड में क्लीन मनी की बात होने लगी।

उदारवाद के साथ बड़ी तेजी से बैंक भी फिल्मों की फाइनेंशिंग में शामिल होने लगे, विदेशी प्रोडक्शन हाउस ने भी यहां डेरा डालना शुरू कर दिया और बड़ी कंपनियां भी लाभ को देखते हुए अपना टीवी चैनल, म्युजिक कंपनी और सिनेमा चेन खोलने लगीं। इसके साथ ही बॉलीवुड में बड़ी संख्या में विदेशी काम करने आने लगे और यहां के एक्टर विदेशी फिल्मों में अपनी पहचान बनाने लगे। इससे क्षेत्रीय सिनेमा जगत को भी बढ़ावा मिला। मराठी, गुजराती और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री भी तेजी से बढ़ने लगी। दक्षिण भारतीय इंडस्ट्री जल्द ही बॉलीवुड को टक्कर देने लगी।

साल 2000 के बाद फिल्म इंडस्ट्री की काया पलट गई लेकिन अपराध से इसका पीछा नहीं छूटा। बॉलीवुड के एक निर्देश ने कहा, ड्रग्स शुरू से ग्लैमर इंडस्ट्री का हिस्सा रहा है लेकिन अधिकतर को यह महसूस हुआ है कि 2000 के बाद इसका प्रभाव बहुत बढ़ गया। डिजिटलीकरण और कई प्रतिबंधों के कारण नगदी का संकट गहराने लगा जबकि यहां दैनिक आधार पर भारी मात्रा में कैश चाहिए होता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इसे कहां से पाया जाए?

बॉलीवुड के कई अभिनेताओं का नाम ड्रग्स के मामले में आया। फरदीन खान और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उठा ड्रग्स का मामला। अभी हाल में शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान का नाम भी गांजा के मामले में उठा लेकिन बाद में वह बरी हो गये। एनसीबी ने बॉलीवुड से ड्रग्स माफिया की जड़ें उखाड़ने के लिए भरपूर कोशिश की लेकिन उनके हाथ हमेशा कुछ छोटे प्यादे ही आये और बड़े मगरमच्छ अपने-अपने घरों में अपनी सफलता का जश्न मनाते रहे।

एक अन्य फिल्म फाइनेंसर ने बताया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म ने पूरा समीकरण ही बदल दिया है। अब फिल्म बनाना और उसका वितरण पहले जैसा नहीं रहा। अब फिल्में कहीं भी बनाई जा सकती हैं और उन्हें कहीं से भी प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जा सकता है। इससे फिल्म इंडस्ट्री में पैसों का टोटा पड़ गया है।

उन्होंने कहा कि बैंकों में अच्छा-खासा पैसा होना फिल्म इंडस्ट्री में धमाकेदार एंट्री करने के लिए काफी नहीं होता है। इसके पीछे बहुत से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारक काम करते हैं। उन्होंने कहा कि अब के निवेशक अपने निवेश पर तुरंत रिटर्न चाहते हैं। अब वे लाभ कमाने के लिए महीनों या वर्षो तक इंतजार नहीं कर सकते हैं। इसके कारण वे स्टॉक मार्केट को तरजीह देते हैं।

सोर्स- आईएएनएस

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