श्रीलंका में राजनीतिक घमासान, संसद में जमकर चले लात-घूसे
श्रीलंका में राजनीतिक घमासान, संसद में जमकर चले लात-घूसे
- सांसदों ने एक दूसरे पर लात-घूसे तक चलाए।
- करीब आधे घंटे तक चले इस ड्रामे के बाद स्पीकर कारू जयसूर्या को संसद बर्खास्त करनी पड़ी।
- श्रीलंका की संसद में गुरुवार को जबरदस्त हंगामा देखने को मिला।
डिजिटल डेस्क, कोलंबो। श्रीलंका की संसद में गुरुवार को जबरदस्त हंगामा देखने को मिला। सांसदों ने एक दूसरे पर लात-घूसे तक चलाए। मारपीट के दौरान कुछ सांसद जमीन पर गिर गए। महिंद्रा राजपक्षे का समर्थन करने वाले सांसदों ने स्पीकर की ओर पानी की बोतलें, किताबें और खाली कैन फेंकी। करीब आधे घंटे तक चले इस ड्रामे के बाद स्पीकर कारू जयसूर्या को संसद बर्खास्त करनी पड़ी।
राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के संसद भंग करने के फैसले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद बुधवार को संसद ने महिंदा राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित किया गया था और इसकी घोषणा स्पीकर कारु जयसूर्या ने की थी। लेकिन गुरुवार को जब एक बार फिर संसद का सत्र शुरू हुआ तो इस पर जमकर हंगामा हुआ। इस दौरान स्पीकर कारू जयसूर्या ने कहा कि इस वक्त देश में कोई भी प्रधानमंत्री नहीं है चाहे वे राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त किए गए राजपक्षे हों या उनके प्रतिद्वंद्वी विक्रमसिंघे।
स्पीकर की इस बात से राजपक्षे और उनके समर्थक भड़क गए। राजपक्षे ने दावा किया कि स्पीकर को ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित कर नियुक्त प्रधानमंत्री को पद से हटाने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा स्पीकर के पास कैबिनेट मंत्रियों को नियुक्त करने या हटाने का भी अधिकार नहीं है। राजपक्षे ने स्पीकर पर पक्षपात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि स्पीकर अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसका नेतृत्व बेदखल किए गए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे कर रहे हैं। राजपक्षे ने कहा कि श्रीलंका के राजनीतिक संकट को दूर करने के लिए दोबारा चुनाव कराना ही एक मात्र रास्ता है।
राजपक्षे के इस बयान पर विरोधियों ने वोट कराने की मांग की। इसके बाद सदन में नारेबाजी शुरू हो गई। देखते ही देखते करीब 35-36 सांसद अपनी सीट से उठकर बीच सदन में आ गए और एक दूसरे पर लात-घूसे चलाने लगे। आखिरकर जयसूर्या को संसद भंग करना पड़ी।
बता दें कि श्रीलंका में राजनीतिक उथल-पुथल की शुरुआत 26 अक्टूबर को हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री रणिल विक्रमसिंघे को हटाकर प्रेसिडेंट मैत्रिपाला सिरिसेना ने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी। श्रीलंका की राजनीति में अचानक इस तरह का बदलाव इसलिए आया था क्योंकि सिरिसेना की पार्टी यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम (UPFA) ने रणिल विक्रमेसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।
इसके बाद मैत्रिपाला सिरिसेना ने 225 सदस्यीय संसद को भंग कर दिया था। संसद भंग होने के बाद श्रीलंका में तयशुदा कार्यक्रम से दो साल पहले 5 जनवरी को चुनाव की घोषणा की गई थी। इसके लिए 19 नवंबर से 26 नवंबर के बीच नामांकन किए जाने थे। विक्रमसिंघे ने संसद भंग करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद संसद भंग के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं अदालत ने चुनाव की तैयारियों पर भी रोक लगा दी थी। चीफ जस्टिस नलिन परेरा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।