CAG का खुलासा, 'नमामि गंगे' के 2600 करोड़ खर्च नहीं कर सकी सरकार
CAG का खुलासा, 'नमामि गंगे' के 2600 करोड़ खर्च नहीं कर सकी सरकार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गंगा नदी के कायाकल्प किए जाने के लिए सरकार की शुरू की गई नमामी गंगे परियोजना को लेकर कैग की रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें खुलासा हुआ है कि स्वच्छ गंगा मिशन के लिए आवंटित किए गए 2600 करोड़ से अधिक रुपयों का सरकार पूरा उपयोग ही नहीं कर सकी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स, इंटरसेप्शन एंड डायवर्सन प्रोजेक्ट्स और नहर परियोजनाओं की लागत करीब 5,111.36 करोड़ रुपए थी। जिसमें से 2,710 करोड़ रुपए की लागत वाली 26 परियोजनाओं में देरी की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसकी वजह भूमि नहीं होना और ठेकेदारों का धीमी गति से काम करना है।
समय पर नहीं खर्च हुई राशि
मोदी सरकार की महत्वपूर्ण योजना ‘नमामि गंगे’ के लिए आवंटित राशि खर्च नहीं करने पर सरकार की खिंचाई की गई है। कैग की रिपोर्ट को संसद में पेश की गई, जिसमें कहा गया कि कि वर्ष 2014-15 से 2016-17 के बीच नमामि गंगे के लिए आवंटित कुल राशि का 8 से 63 फीसदी हिस्सा ही खर्च किया गया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के क्रमश 2133.76 करोड, 422.23 और 59.28 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं हुए। इसमें विभिन्न राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूह और एग्जीक्यूटिंग एजेंसियां/केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ 31 मार्च 2017 तक ये रकम खर्च की जानी थी।
कैग ने दिया ये सुझाव
जानकारी के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया है कि मिशन के तहत बजट समीक्षा समिति का गठन नहीं किया गया, जिस कारण आवंटित राशि के खर्चों की निगरानी नहीं की जा सकी। कैग ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को नदी संरक्षण क्षेत्रों की पहचान कर उनकी प्राथमिकता तय करनी चाहिए। जिससे गंगा के तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण की गतिविधियों को रोका जा सके। कैग ने गंगा नदी बेसिन के लिए दीर्घकालीन प्रबंधन योजना को तय अविध में पूरा करने का भी सुझाव दिया है।
हालांकि इससे पहले आरटीआई में खुलासा हुआ था कि सरकार ने बीते तीन सालों में 12 हजार करोड़ रुपये का बजट देने की बात कही, जिसमें से वास्तव में केवल 5378 करोड़ रुपए का ही बजट दिया गया। आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के अनुसार, इस योजना में वित्तीय वर्ष 2014-15 में गंगा सफाई के लिए 2053 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया, जिसमें से महज 326 करोड़ रुपए जारी किए गए। इसमें से केवल 170 करोड़ 99 लाख रुपये ही खर्च हो पाए।
मूल्यांकन और निगरानी तंत्र कारगर नहीं
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सख्त निर्देशों के बावजूद गंगा और सहायक नदियों में 75% अशोधित सीवेज फेंका जा रहा है। इससे गंगा जल की गुणवत्ता गिरी है। प्रोजेक्ट का निगरानी तंत्र लचर होने पर कैग ने केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई है। कैग ने कहा कि गंगा मॉनीटरिंग सेंटर की स्थापना सिर्फ योजना में है। रिमोट सेंसिंग डाटा और मोबाइल एप का उपयोग शुरुआती चरण में ही है। डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) में देरी, स्टाफ की कमी, परियोजना की धीमी गति से जाहिर होता है कि मूल्यांकन और निगरानी तंत्र कारगर नहीं है।
कैग के अनुसार, नमामि गंगे में बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिमी बंगाल में स्टाफ की भारी कमी दिखाई है। तकनीकी स्तर पर 76%, प्रशासनिक स्तर पर 33% और सहायक स्टाफ स्तर पर 20% पद खाली हैं।