चित्रकूट: फिरौती मिलने के बाद भी इसलिए किडनैपर्स ने बच्चों को मारा

चित्रकूट: फिरौती मिलने के बाद भी इसलिए किडनैपर्स ने बच्चों को मारा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-25 08:58 GMT
चित्रकूट: फिरौती मिलने के बाद भी इसलिए किडनैपर्स ने बच्चों को मारा
हाईलाइट
  • आरोपियों को पुलिस का था डर
  • किडनैपर्स ने बताया बच्चों को मारने का कारण
  • बच्चों ने पहचान लिया था आरोपियों का चेहरा

डिजिटल डेस्क, चित्रकूट। क्या तुम दोनों पुलिस के सामने हमें पहचान सकते हो, जैसे ही बच्चों ने बोला "हां"... किडनैपर्स ने उन्हें नदी में फेंक दिया। चित्रकूट अपहरण कांड में बच्चों के पिता से 20 लाख रुपये की फिरौती मिलने के बाद किडनैपर्स उन्हें छोड़ने का मन बना चुके थे। बच्चों को छोड़ने से पहले उन्होंने उनसे सवाल किया कि क्या वे पुलिस के सामने उन्हें पहचान लेंगे। इस पर बच्चों ने हां बोल दिया और किडनैपर्स ने उनकी हत्या कर दी। इस बात खुलासा खुद किडनैपर्स ने पुलिस पूछताछ में किया है। 


बच्चों को ऐसे किया किडनैप
किडनैपर्स ने पुलिस को बताया कि हम लोगों ने 10 दिन तक रावत परिवार के प्रत्येक सदस्य और बच्चों की रेकी की। उनके स्कूल से आने-जाने पर हमारी नजर रहती थी। हमने बस नम्बर को भी नोट कर लिया था। स्कूल परिसर में सुरक्षित जगह और भागने के रास्ते का कई बार चक्कर लगाया, उसके बाद 11 फरवरी को बच्चों को किडनैप करने का प्लान बनाया, लेकिन उस दिन हमारी किस्मत ने साथ नहीं दिया। दअरसल 18 नंबर की जिस स्कूल बस में श्रेयांश और प्रियांश सवार थे उसके साथ दो और बसें भी चल रही थीं। लिहाजा हमनें प्लान बदल दिया। 12 फरवरी को फिर से स्कूल की छुट़्टी के बाद बस के निकलने के समय पर हम वहां पहुंच गए और जब बस कॉलोनी के बच्चों को उतारकर आगे बढ़ी तो हमनें बस ड्रायवर को पिस्टल दिखाकर बस को रोक लिया और उसमें चढ़कर पिस्टल के दम पर दोनों बच्चों को किडनैप कर लिया। 

दो दिन एमपी में रखा फिर यूपी ले गए
किडनैपर्स ने रीवा जोन के आईजी चंचल शेखर को बताया कि "उन्होंने पहले बच्चों को आरोपी लकी के चित्रकूट स्थित किराये के घर में दो दिन के लिए रखा था। यह किराये का कमरा एक सुनसान जगह पर था और आरोपी कमरे के बाहर ताला लगवाकर खुद को अंदर बंद रखते थे ताकि किसी को यहां छिपे होने का संदेह न हो। बाद में वे जुड़वा भाइयों को यूपी के बांदा के अटर्रा में एक दूसरे किराये के घर में ले गए थे, जहां उन्होंने हत्या से पहले तक बच्चों को छिपाए रखा था। आईजी ने यह भी बताया कि गैंग के सदस्य काफी होशियार थे। फिरौती मांगने के लिए अपने सेलफोन का इस्तेमाल नहीं करते थे बल्कि अजनबियों और राहगीरों से अर्जेंट कॉल की बात कहकर फोन मांगते थे और तब कॉल करते थे। आईजी ने बताया कि टेक सेवी इंजीनियरिंग स्टूडेंट स्पूफिंग ऐप के जरिए नंबर छिपाते थे। 

यूं मांग रहे थे फिरौती
आरोपियों ने पुलिस को बताया कि फिरौती के लिए पहला फोन 14 फरवरी को किया था, जिसमें 2 करोड़ की फिरौती बच्चों के पिता बृजेश रावत से मांगी गई। यह फोन आते ही साइबर सेल सक्रिय हो गई और मोबाइल धारक का पता लगा लिया, जिस पर पुलिस टीम ने बांदा में दबिश देकर बसंता वर्मन नाम के व्यक्ति को पकड़कर पूछताछ की जिसके आधार पर पुलिस आगे की कार्रवाई करने लगी। अगले 6 दिनों तक कोई फोन नहीं आया, फिर 19 फरवरी को दूसरे नम्बर से बृजेश रावत के पास फोन आया, आरोपी ने फिर 2 करोड़ की मांग की, लेकिन 20 लाख रुपये पर बात बनी। आरोपियों ने बंदौसा से ओहन की तरफ जाने वाले रास्ते पर चौसरा के समीप पुल पर रुपयों से भरा बैग छोड़ देने के लिए कहा। उनके कहे अनुसार जुड़वा बच्चों के पिता ने उसी रात 20 लाख रुपए का बैग पहुंचा दिया। तब अपहरणकर्ताओं ने एसएमएस कर सीतापुर के पास एक गली में बच्चों को छोड़ने की खबर दी, तो परिजन के साथ पुलिस भी सक्रिय हो गई। 

20 लाख मिलने के बाद बदल गया इरादा
आरोपियों ने पुलिस को बताया कि हमें बच्चों के पिता से बड़ी आसानी से बीस लाख रुपये मिल गए। हमने बच्चों को छोड़ने का मन भी बनाया लिया था, लेकिन आसानी से रुपए मिल जाने पर हमारा लालच बढ़ गया, लिहाजा हमने तेल व्यवसायी बृजेश से और रुपए ऐंठने का प्लान बनाया और बच्चों को छोड़ने का इरादा बदलकर उन्हें साथ में वापस ले गए। इस बार 21 फरवरी को इंटरनेट के जरिए फोन कर 1 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी तो पिता ने अपनी मजबूरी की दुहाई देते हुए बच्चों को मुक्त कर देने की गुहार लगाई, जिसके बाद फोन कट गया। 

"हां" सुनते ही बच्चों का मार दिया
दूसरी बार फिरौती मांगे जाने के बाद जब किडनैपर्स ने मासूम बच्चों से सवाल किया कि क्या तुम दोनों हमें पुलिस के सामने पहचान सकते हैं। बच्चों ने हां बोल दिया। इतना सुनते ही आरोपियों ने पुलिस के डर से बच्चों को बेसुध करने के बाद एक जंजीर से हाथ-पैर बांधे तो दूसरी जंजरी में बड़ा सा पत्थर बांधकर किनारे पर ही पानी में फेंक दिया। घटना को अंजाम देने के बाद घाट पर ही शराबखोरी करते रहे और फिर चित्रकूट लौट आए।

 

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