अफसरों को बचाने वाला बिल पेश, बीजेपी विधायकों ने भी किया विरोध

अफसरों को बचाने वाला बिल पेश, बीजेपी विधायकों ने भी किया विरोध

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-23 07:36 GMT
अफसरों को बचाने वाला बिल पेश, बीजेपी विधायकों ने भी किया विरोध

डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान में नेताओं और अफसरों के खिलाफ शिकायत और कार्रवाई के लिए इजाजत लेने वाले अध्यादेश को सोमवार को वसुंधरा सरकार ने इतने विवादों के बाद भी सोमवार विधानसभा में पेश कर दिया। इस अध्यादेश के तहत राजस्थान में अब पूर्व व वर्तमान जजों, अफसरों, सरकारी कर्मचारियों और बाबुओं के खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा। इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए सरकार की इजाजत अनिवार्य होगी।

बीजेपी विधायकों ने भी किया विरोध
बीजेपी के इस विधेयक का विरोध ना केवल विपक्षी कांग्रेस बल्कि सत्तारूढ़ बीजेपी के भी दो विधायक कर रहे हैं। आज बिल के विधानसभा में पेश किए जाने के बाद जोरदार हंगामा शुरू हो गया जिसके बाद विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। 

गौरतलब है कि इस अध्यादेश के विरोध में कांग्रेसी विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांध हाथ में बैनर लेकर विधानसभा के बाहर बहुत विरोध किया है। विधायकों ने हाथ में लिए हुए बैनर पर लिख रखा है- लोकतंत्र की हत्या बंद करो, काला कानून वापस लो, सरकार चाहे मुखबंद देश चाहे आवाज बुलंद...। इस बीच वरिष्ठ वकील एके जैन ने वसुंधरा सरकार के इस अध्यादेश के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की है। 

दरअसल राजस्थान सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर पीनल कोड व इंडियल पीनल कोड में संशोधन किया है। जिसमें राज्य सरकार की मंजूरी के बिना जांच के आदेश देने और जिसके खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। अध्यादेश के अनुसार, राज्य सरकार की मंजूरी नहीं मिलने तक जिसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाना है, उसकी तस्वीर, नाम, पता और परिवार की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी। इसकी अनदेखी करने पर 2 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 7 सितम्बर को जारी अध्यादेश के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत अदालत शिकायत पर सीधे जांच का आदेश नहीं दे पाएगी। अदालत, राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही जांच के आदेश दे सकेगी। 

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