आर्मी चीफ बिपिन रावत बोले - सेना में ‘गे सेक्स’ की अनुमति नहीं देंगे
आर्मी चीफ बिपिन रावत बोले - सेना में ‘गे सेक्स’ की अनुमति नहीं देंगे
- गुरुवार को दिल्ली में वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आर्मी चीफ ने ये बात कही है।
- आर्मी चीफ ने कहा कि गे सेक्स को अपराध से बाहर करने के SC के फैसले को सेना में लागू नहीं किया जा सकता।
- इस तरह के एक्शन सेना में वर्जित है और वो इसकी अनुमति नहीं देंगे।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि गे सेक्स को अपराध से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सेना में लागू नहीं किया जा सकता। इस तरह के एक्शन सेना में वर्जित है और वो इसकी अनुमति नहीं देंगे। गुरुवार को दिल्ली में वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आर्मी चीफ ने ये बात कही है। आर्मी चीफ ने इस दौरान ये भी कहा कि सेना कानून से ऊपर नहीं है। बलों के भीतर LGBT (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) से संबंधित मामलों को सेना अधिनियम के तहत निपटाया जाएगा।
बता दें कि पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा था। CJI दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने कहा था, देश में सबको समानता का अधिकार है। समाज की सोच बदलने की जरूरत है। CJI दीपक मिश्रा ने कहा था, कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है और समाज हर किसी के लिए बेहतर है।
Army Chief General Bipin Rawat addressing an annual press conference in Delhi: For LGBT (lesbian, gay, bisexual and trans) issues, in the Army these are not acceptable. We will still be dealing with them under various sections of the Army Act. pic.twitter.com/CKegft94in
— ANI (@ANI) January 10, 2019
कोर्ट के अडल्टरी को लेकर दिए गए फैसले को लेकर रावत ने कहा कि सेना रूढ़िवादी है। उन्होंने कहा, "हम इसे सेना में लागू करने की इजाज़त नहीं दे सकते हैं।" गौरतलब हे कि 27 सितंबर को CJI दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की बेंच ने एडल्टरी को अपराध करार देने वाली IPC की धारा 497 को रद्द करने का फैसला सुनाया था। बेंच ने सर्वसम्मति से 158 साल पुराने कानून को खत्म कर दिया था। कोर्ट ने विवाहेत्तर संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा था। CJI दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि शादी के विघटन सहित नागरिक मुद्दों के लिए व्यभिचार आधार हो सकता है, लेकिन यह आपराधिक कृत्य नहीं हो सकता।