मरने के बाद भी पुलिस के लिए मुश्किल बना हुआ है अतीक अहमद, अब दफ्तर से मिले छुरी और खून से सने दुपट्टे ने बढ़ाया टेंशन, पुलिस पर उठे कई सवाल

अतीक के दफ्तर के 'राज' मरने के बाद भी पुलिस के लिए मुश्किल बना हुआ है अतीक अहमद, अब दफ्तर से मिले छुरी और खून से सने दुपट्टे ने बढ़ाया टेंशन, पुलिस पर उठे कई सवाल

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-24 09:42 GMT
मरने के बाद भी पुलिस के लिए मुश्किल बना हुआ है अतीक अहमद, अब दफ्तर से मिले छुरी और खून से सने दुपट्टे ने बढ़ाया टेंशन, पुलिस पर उठे कई सवाल

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। आज सुबह-सुबह कुछ ऐसी ही खबरें आई जिसने सबको अंदर से हिला कर रख दिया। दरअसल, प्रयागराज के चकिया स्थित उसके दफ्तर में खून के धब्बे अलग-अलग हिस्सों में पाए गए हैं। सारा सामान अस्त व्यस्त पड़ा हुआ है। जगह-जगह चूड़िया टूटी हुई पड़ी हैं। इसके अलावा सब्जी काटने वाली एक छुरी और खून से लथपथ एक सफेद रंग का दुपट्टा भी मिला है। वहीं इस खबर के आने के बाद एक बार फिर अतीक अहमद की माफियागिरी की याद ताजा हो गई है। 

बता दें कि, जानकारी मिलने के बाद प्रयागराज पुलिस तुरंत उसके दफ्तर पहुंची और मामले की छानबीन करने में जुट गई है। पुलिस मथापच्ची करने में लगी हुई है कि तमाम चौकसी के बाद ये खून के निशान कैसे आएं। इस पूरे मामले पर पुलिस ने आधिकारिक तौर पर बयान भी जारी किया है। पुलिस का कहना है कि, हम इस मामले की जांच कर रहे हैं और जल्द ही इसके अंजाम तक पहुंचेंगे।

पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल

जानकर हैरानी होगी कि, इस दफ्तर पर यूपी पुलिस ने अब तक दो बार अपना बुलडोजर चलाया है फिर भी खून के निशान कई सवाल खड़े कर रहे हैं। पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं कि जब बुलडोजर चला तो पुलिस ने ताला क्यों नहीं लटकाया। आपको बताते चलें कि प्रशासन पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि 21 मार्च को यहां छापेमारी हुई थी। जहां पर पुलिस ने 72 लाख 37 हजार कैश, विदेशी पिस्टल, 112 कारतूस और 6 मोबाइल बरामद किए थे। इतना अवैध सामान मिलने पर पुलिस ने दफ्तर को सील क्यों नहीं किया। अब पुलिस की इसी ढुलमुल रवैये पर सवाल उठ रहे हैं।

बसपा सरकार में पसरा सन्नाटा

अतीक के इस दफ्तर को लेकर कहा जा रहा है कि, साल 2007 तक यहां खूब चहल पहल हुआ करती थेी। लेकिन जैसे ही बसपा की सरकार प्रदेश में बनी यहां सन्नाटा सा रहने लगा। न किसी का आना ना किसी का जाना, बस खामोशी ही पसरी रहती थी। हालांकि, चकिया के दफ्तर को लेकर ये भी दावा है कि, साल 2012 में जैसे ही समाजवादी पार्टी की सरकार आई एक बार फिर से पहले की तरह ही चहल पहल शुरू हो गई। 

वसुली इसी दफ्तर में करता था अतीक

दरअसल, दफ्तर में खून मिलने पर अंदेशा यह जताया जा रहा है कि यहां किसी का खून हो सकता है या किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया गया होगा। बता दें कि, यह दफ्तर वही है जहां अतीक अपने गुर्गों के साथ लोगों को किडनैप करके उन्हें मारता पीटता था। इस दफ्तर को लेकर ये भी चर्चाएं हैं कि, यह उसका ठिकाना था अगर उसकी नजर में कोई भी आता तो वो यहीं बुलाकर मारता और मोटी रकम वसूला करता था।

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