मप्र में मतदाता को लुभाने के लिए सौगातों की बरसात

मप्र में मतदाता को लुभाने के लिए सौगातों की बरसात

IANS News
Update: 2020-09-27 09:01 GMT
मप्र में मतदाता को लुभाने के लिए सौगातों की बरसात
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भोपाल, 27 सितंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान की सरकार मतदाताओं को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। यही कारण है कि हर तरफ शिलान्यास और भूमि पूजन के कार्यक्रम तो हो ही रहे हैं साथ ही विभिन्न वगोर्ं के लिए सौगातों की बरसात की जा रही है।

राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप-चुनाव होना है और यह सरकार के भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण है। दोनों दल मतदाताओं को लुभाने में हर दांव चालें चले जा रहे हैं।

राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार हर वर्ग के मतदाताओं को लुभाने के लिए लगातार घोषणाएं कर रही हैं। बीते कुछ दिनों में देखें तो शिवराज सरकार ने किसानों को केंद्र सरकार की ही तरह हर साल चार हजार रूपये सम्मान निधि देने का ऐलान किया है। प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान के लिए मुआवजा दिया है तो वहीं बीमा की राशि किसानों के खाते में पहुंचाई गई है। इसके अलावा स्व सहायता समूह की मजबूती के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, छात्रों को लैपटप बांटे गए हैं और आगामी समय में होने वाली सरकारी नौकरियां राज्य के युवाओं के लिए होने के वादे के साथ 25 हजार नई भर्तियों का ऐलान भी किया गया है।

मुख्यमंत्री चौहान पूर्ववर्ती सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि कमल नाथ के काल में बल्लभ भवन भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया था। कांग्रेस जो वादे करके सत्ता में आई थी उन्हें पूरा नहीं किया। यही कारण था कि जनता से वादाखिलाफी करने वाली कांग्रेस की सरकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों ने गिरा दिया।

शिवराज सरकार की लोकलुभावन घोषणाओं पर पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ लगातार तंज कस रहे हैं। उनका कहना है कि शिवराज सिंह सरकार किसानों से मजाक कर रही है, पहले खराब हुई फ सलों का मुआवजा अब तक नहीं मिला और फ सल बीमा योजना में किसानों को जो बीमा राशि के रूप में मिली है वह एक और दो रुपए है। सरकार के दावे बड़े-बड़े, समारोह बड़े-बड़े, लेकिन धरातल पर वास्तविकता कुछ और है।

राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का कहना है कि राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादे करना शगल बन गया है, वर्तमान के उप-चुनाव से पहले भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। राजनीतिक दलों की पिछली घोषणाओं पर गौर करें तो हजारों ऐसे शिलालेख मिल जाएंगे जो वषों पहले लगे मगर योजनाएं मूर्त रूप नहीं ले पाईं। चुनाव में की गई घोषणाएं सत्ता में आने के बाद पूरी हो, इसके लिए राजनीतिक दलों के लिए यह बाध्यता होना चाहिए कि वे चुनाव से पहले जो वादे कर रहे हैं उन्हें सत्ता में आने पर प्राथमिकता से पूरा करेंगे, अगर ऐसा हो जाता है तो राजनीतिक दल चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे और घोषणाएं करने से हिचकेगे जरुर।

एसएनपी-एसकेपी

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