बिहार के 'पटवा टोली' ने गढ़े 300 इंजीनियर्स, नाम 'अभियंता विहार' रखने की मांग

बिहार के 'पटवा टोली' ने गढ़े 300 इंजीनियर्स, नाम 'अभियंता विहार' रखने की मांग

Bhaskar Hindi
Update: 2017-06-27 12:32 GMT
बिहार के 'पटवा टोली' ने गढ़े 300 इंजीनियर्स, नाम 'अभियंता विहार' रखने की मांग

टीम डिजिटल, बिहार। बिहार के गया जिले के बुनकरों के गांव 'पटवा टोली' गांव अब तक 300 इंजीनियर्स गढ़ चुका है. इनमें से एक तिहाई इंजिनियर आईआईटी से पढ़ कर निकले हैं, बाकी एनआईटी और राज्य के अन्य इंजिनियरिंग कॉलेजों से पढ़ कर निकले हैं। 2017 में गांव के 15 छात्रों ने आईआईटी परीक्षा पास की है। 2016 में भी इस गांव के 11 बच्चों ने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम में सफलता हासिल की थी।  आलम यह है कि अब गांव के सरपंच गांव का नाम ही बदलकर 'अभियंता विहार' रखना चाहते हैं. 

खबरों की मानें तो इससे पहले 2015 में भी यहां के 12 छात्रों ने आईआईटी एंट्रें निकाला था, जिसमें एक लड़की दीपा कुमारी भी शामिल थी। हालांकि इसके बाद से यहां आईआईटी जाने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या न के बराबर हो गई।

रंग लाई जितेन्द्र की मेहनत
गांव की 90 प्रतिशत आबादी पटवा समुदाय से है। साल 1991 में सबसे पहले इस गांव के बुनकर के बेटे जितेन्द्र कुमार ने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम को पास किया था। इसके बाद जितेंद्र यहां के बच्चों को आईआईटी के लिए ट्रेनिंग देने लगे। जितेन्द्र पटवा टोली के छात्रों का रोल मॉडल बन गए। उन्होंने आईआईटी की तैयारी के लिए एक स्टडी मॉडल भी तैयार किया और इसे 'नव-प्रयास' नाम दिया था। इसके बाद जितेन्द्र के पढ़ाए बच्चों में से 3 लड़कों ने आईआईटी का एंट्रेंस निकाला। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती चली गई और इसके बाद 'पटवा टोली' के बच्चों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि जितेंद्र अब अमेरिका में रहते हैं।

गांव का नाम ही 'अभियंता विहार' रखने की मांग
'पटवा टोली' के पूर्व नगर निगम पार्षद लालजी प्रसाद इस गांव का नाम बदल कर इंजीनियरों के नाम पर 'अभियंता विहार' रखना चाहते हैं।

अब सीनियर्स नहीं देते ध्यान
गांव के निवासी प्रेम कुमार बताते हैं कि पहले जो छात्र इंजिनियर बनते थे, वे अपने गांव के बच्चों को भी इसके लिए तैयार करते थे। हाल के कुछ सालों में अब छात्र इंजिनियरिंग के अलावा दूसरे करियर ऑप्शन को भी चुनने लगे हैं। लगभग आधा दर्जन लोगों ने बैंकिंग जॉब्स को अपना करियर चुन लिया है। अब जो छात्र सफल हो चुके हैं, वे अपने सीनियर्स की तरह दूसरे छात्रों पर ध्यान नहीं देते।

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