कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, बेसमेंट में दी गई गालियां अपराध नहीं हो सकती, जातिवादी दुर्व्यवहार सार्वजनिक स्थल पर होना चाहिए

कर्नाटक हाई कोर्ट कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, बेसमेंट में दी गई गालियां अपराध नहीं हो सकती, जातिवादी दुर्व्यवहार सार्वजनिक स्थल पर होना चाहिए

Manuj Bhardwaj
Update: 2022-06-23 14:39 GMT
कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, बेसमेंट में दी गई गालियां अपराध नहीं हो सकती, जातिवादी दुर्व्यवहार सार्वजनिक स्थल पर होना चाहिए
हाईलाइट
  • कोर्ट ने एससी- एसटी ऐक्ट के तहत कार्यवाही रद्द कर दी है

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बेसमेंट में दी गई गालियां अपराध नहीं हो सकती। कोर्ट ने एससी- एसटी ऐक्ट के तहत कार्यवाही रद्द कर दी है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत जातिवादी दुर्व्यवहार सार्वजनिक स्थल पर होना चाहिए।

इस फैसले के साथ ही अदालत ने 2 साल से लंबित मामले को खारिज कर दिया है। बता दें कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि सहकर्मी के मौजूदगी में बिल्ड़िंग के बेसमेंट में उसके साथ जातिवादी दुर्व्यवहार किया गया था। फैसले में अदालत ने कहा कि बेसमेंट सार्वजनिक स्थल नही हो सकता।

कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने 10 जून को अपने फैसले में कहा, "उपरोक्त बयानों को पढ़ने से दो कारक सामने आएं- एक यह है कि इमारत का तहखाना सार्वजनिक स्थल नहीं था और दूसरा केवल वे लोग इसका दावा कर रहे हैं जो कि शिकायतकर्ता मोहन, भवन स्वामी जयकुमार आर नायर और शिकायतकर्ता के सहकर्मी हैं।" अदालत ने कहा," अपशब्दों का प्रयोग स्पष्ट रूप से सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया गया है, इसलिए इसमें सजा का प्रावधान नहीं है।" 

क्या था मामला ?

शिकायतकर्ता मोहन के मुताबिक, घटना साल 2020 की है। जब कथित तौर पर इमारत के कंस्ट्रक्शन के दौरान रितेश पियास ने मोहन के लिए जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल किया। उस वक्त पीड़ित और उसके सहकर्मी मौजूद थे। बता दें कि सभी मजदूरों को बिल्डिंग मालिक जयकुमार नायर ने ठेके पर काम दे रखा था।  

वहीं हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि शिकायतकर्ता ने रितेश पर उसे चोट पहुंचाने के आरोप में धारा 323 के तहत कारवाई की मांग की है। हाई कोर्ट ने यह मांग भी कहते हुए खारिज कर दी कि मोहन के शरीर पर चोट के निशान साधारण खरोंच के दिखते हैं और इसमें रक्तस्राव के संकेत नहीं मिले हैं। इसलिए, साधारण खरोंच के निशान आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध नहीं हो सकते हैं। 

साथ ही निचली अदालत के समक्ष लंबित मामले को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, " उपरोक्त तथ्यों के आधार पर जब अपराध के मूल तत्व ही गायब हैं, तो इस तरह की कार्यवाही को जारी रखने और याचिकाकर्ता पर आपराधिक मुकदमा पूरी तरह से अनुचित होगा, जिससे कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा।"
 

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