गुजरात की वो 'सीट' जो तय करती है किसकी बनेगी सरकार
गुजरात की वो 'सीट' जो तय करती है किसकी बनेगी सरकार
डिजिटल डेस्क, दिल्ली। गुजरात में 182 सीटों के लिए चुनाव हो चुके हैं। सभी पार्टियों के प्रत्याशियों की किस्मत EVM में कैद हो गई है। ज्यादातर एक्जिट पोल की मानें तो गुजरात में बीजेपी का परचम लहराता दिखाई दे रहा है। खैर, एग्जिट पोल बीजेपी को जीत दिला रहे है, लेकिन गुजरात में किसकी सरकार बनेगी इस बात का फैसला "वलसाड सीट" से होता है।
गौरतलब है कि गुजरात कि 182 सीटों में वलसाड सीट को सबसे अहम माना जाता है। इस सीट के साथ एक अजीब सा विश्वास जुड़ा है। कहा जाता है कि जिस पार्टी का प्रत्याशी वलसाड सीट पर जीत हासिल करता है उसी पार्टी का झंडा पूरे राज्य में लहराता है। 1975 के बाद से ही ये अजीब सा विश्वास किया जाता रहा है।
1975 के बाद 3 बार कांग्रेस सरकार
बता दें 1975 में कांग्रेस के केशव रतनजी पटेल ने वलसाड में जीत हासिल की थी। उस समय कांग्रेस ने भारतीय जनसंघ के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई थी। इसके बाद 1980 में फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार दौलतभाई नाथुभाई देसाई ने इस सीट पर जीत हासिल की और कांग्रेस ने गुजरात में सरकार बनाई। 1985 तक कांग्रेस के उम्मीदवार बरजोरजी कावासजी पार्दीवाला ने जीत हासिल कर कांग्रेस का विजयी अभियान जारी रखा।
1990 से बीजेपी की लहर
साल 1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के दौलतभाई देसाई ने जीत हासिल कर गुजरात में भाजपा और जनता दल गुजरात की गठबंधन सरकार बनवाई। 1995 में दौलतभाई ने दोबारा इस सीट पर जीत हासिल की और पहली बार बीजेपी ने केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में सरकार बनाई। 1998 में दौलतभाई देसाई ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की और फिर केशुभाई ने बीजेपी का नेतृत्व किया। 2002 फिर 2007 में दौलतभाई देसाई लगातार पांचवी बार इस सीट से विधायक चुने गए। 2012 में बीजेपी के भरतभाई कीकूभाई पटेल ने हाथ आजमाया। पटेल ने कांग्रेस के धर्मेश पटेल को 35,999 के बड़े अंतर से हराया था।
टूटेगा सीट का तिलिस्म !
फिलहाल गुजरात के चुनाव में जीत के अपने अपने दावे किए जा रहरे हैं और दोनों ही पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस बहुमत से जीत का दावा कर रही है। बीजेपी के भरतभाई पटेल के सामने नरेंद्र टंडेल हैं। कांग्रेस ने 2012 में हार का सामना करने वाले धर्मेश पटेल की जगह टंडेल से जीत की आस लगाई है। अब इस बात का खुलासा तो 18 दिसंबर को ही होगा कि क्या सालों से चला आ रहा ये अजीब सा विश्वास का तिलिस्म कायम रहता है या फिर ये मिथक टूटता है।