ईडी जांच से पता चलता है कि राणा कपूर कैसे बना यस बैंक का रसूखदार सीईओ

ED investigation reveals how Rana Kapoor became the powerful CEO of Yes Bank
ईडी जांच से पता चलता है कि राणा कपूर कैसे बना यस बैंक का रसूखदार सीईओ
ईडी जांच से पता चलता है कि राणा कपूर कैसे बना यस बैंक का रसूखदार सीईओ

नई दिल्ली, 12 मई (आईएएनएस)। यस बैंक के पूर्व सीईओ राणा कपूर और उसके परिवार के कारोबारी डीलिंग्स की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की जा रही जांच से संदिग्ध लेनदेन का एक बड़ा जाल सामने आया है, जो सैकड़ों बैंक खातों, निवेश कंपनियों से जुड़ा हुआ है।

ईडी की जांच से पता चलता है कि इस परिवार के पास 168 बैंक खाते औैर 101 निवेश कंपनियां हैं, जिनके जरिए कपूर ने एक पेशेवर बैंकर बनने की शुरुआत की और एक शानदार जीवनशैली के साथ भारत का एक सबसे हाईप्रोफाइल प्रमोटर बन गया। कपूर इस समय जेल में है और उसके ऊपर वित्तीय गड़बड़ियों के कई सारे आरोप हैं।

आलीशान जिंदगी जीने का शौकीन कपूर मुंबई के वर्ली इलाके में स्थित समुद्र महल कॉम्प्लेक्स में भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वामित्व वाले एक डुप्लेक्स को किराए पर ले रखा था। इस डुप्लेक्स में कपूर नियमित तौर पर पार्टियां आयोजित करता रहता था।

ईडी के अनुसार, कपूर और उसके परिवार ने अपनी होल्डिंग कंपनियों -मोर्गन क्रेडिट्स (एमसीपीएल), यस कैपिटल इंडिया (वाइसीपीएल) और आरएबी एंटरप्राइजेज के जरिए 101 निवेश कर रखे थे।

राणा कपूर, उसकी पत्नी बिंदू कपूर और उसकी बेटियों, रोशनी और राखी कपूर के विभिन्न बैंकों में कुल 168 बैंक खाते रहे हैं।

परिवार की कंपनियों ने 15 मुचुअल फंड्स में निवेश कर रखे थे और उनके पास चार करोड़ रुपये मूल्य की 59 पेटिंग्स के संग्रह थे। समुद्र महल में इन पेंटिग्स के लिए अलग से एक कमरा था। इन पेंटिग्स में दिवंगत राजीव गांधी का एक पोट्रेट भी था, जिसे सुप्रसिद्ध चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने बनाया था।

ईडी जांच के अनुसार, कपूर परिवार ने इन निवेश कंपनियों की शुरुआत सबसे पहले 1991 में की। उसी साल एमसीपीएल का गठन किया गया था।

वाईसीपीएल का नाम पहले डीओआईटी कैपिटल था, और मई 2003 में इसे निगमीकृत किया गया था। उसके बाद 2004 में यस बैंक की स्थापना हुई। इन दोनों कंपनियों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने निवेश कंपनी के रूप में मंजूरी दी थी।

यस बैंक में निवेश का मुख्य स्रोत कपूर को संयुक्त उद्यम कंपनी राबो इंडिया फायनेंस में राबो बैंक हॉलैंड को शेयरों की बिक्री से प्राप्त हुआ फंड था।

2002-2003 में राणा कपूर और साझेदार अशोक कापुर व हरकीरत सिंह राबो बैंक को हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकल गए। उसके बाद 2004 में कपूर और कापुर ने यस बैंक की शुरुआत की।

जांच एजेंसियां कपूर परिवार और डीएचएफएल के वधावन बंधुओं के बीच हुए लेन-देन की भी जांच कर रही हैं।

डीएचएल, दिवाला प्रक्रिया का सामना कर रही है और उसके ऊपर क्रेडिटर्स के लगभग 36,000 करोड़ रुपये की देनदारी है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने कहा है कि उसकी आर्थिक अपराध शाखा ने 5,050 करोड़ रुपये की कथित डीलिंग्स की जांच में पाया है कि कपूर परिवार ने वधावन की डीएचएफएल को यस बैंक से नियमों का उल्लंघन कर लोन दिलाने के बदले विभिन्न माध्यमों से रिश्वत प्राप्त की थी।

सीबीआई के अनुसार, कपूर ने यस बैंक से डीएचएफएल और वधावन की अन्य कंपनियों को नियमों का उल्लंघन करते हुए लोन दिलाने के बाद उससे अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए कथित तौैर पर निवेश कंपनियों का इस्तेमाल किया।

ईडी अधिकारियों के अनुसार, यस बैंक ने अप्रैल 2018 में शॉर्ट-टर्म डिबेंचर्स में वधावन की डीएचएफएल को 3,700 करोड़ रुपये का एक ऋण दिया। यह पैसा आजतक यस बैंक को वापस नहीं मिला।

यस बैंक ने डीएचएफएल के प्रमोटरों कपिल वधावन और धीरज वधावन और उनके पारिवारिक सदस्यों के स्वामित्व वाली एक कंपनी, बिलीफ रियलटी (बीआरपीएल) को 750 करोड़ रुपये का एक और ऋण मंजूूर किया था।

कथित तौर पर इस पैसे को कपिल वधावन और धीरज वधावन ने शेल कंपनियों के जरिए ठिकाने लगा दिया।

ईडी अधिकारियों के अनुसार, जिस बांद्रा रिक्लेमेशन परियोजना के लिए ऋण स्वीकृत किया गया था, उसमें कोई निवेश किए बगैर पूरी राशि डीएचएफएल को हस्तांतरित कर दी गई थी।

ईडी का आरोप है, राणा कपूर को अच्छी तरह पता था कि बिलीफ रियलटर्स को बांद्रा रिक्लेमेशन परियोजना के लिए स्वीकृत 750 करोड़ रुपये की राशि घोषित उद्देश्य में खर्च नहीं होने जा रही है।

जांचकर्ताओं का कहना है कि यह सौदा यस बैंक से धन का गबन करने के लिए था।

एक दूसरा आरोप यह है कि वधावन ने राणा कपूर औैर उसके परिवार को डीएचएफएल से ऋण के बहाने 600 करोड़ रुपये की रिश्वत दी।

यह धनराशि डीएचएफएल ने डीओअाईटी अर्बन वेंचर्स को दी थी, जो राणा कपूर के परिवार की स्वामित्व वाली एक निवेश कंपनी है। कंपूर की बेटियों का एमसीपीएल के जरिए डीओआईटी में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

इस 600 करोड़ रुपये में से 300 करोड़ रुपये का इस्तेमाल डीओआईटी ने एक पहले के ऋण का पुनर्भुगतान करने में किया। कंपनी ने कहा कि बाकी धनराशि जनरल कॉरपोरेट उद्देश्यों के लिए है।

इस ऋण के एवज में डीएचएफएल को पांच संपत्तियां जमानत के रूप में दी गईं। वधावन के निर्देश पर डीएचएफएल ने इन संपत्तियों का मूल्यांकन भविष्य में इनके व्यावसायिक भूमि बनने के आधार पर किया था।

ईडी के दस्तावेजों के अनुसार, ऋण देते समय इस जमीन का खरीदी मूल्य मात्र 39.66 करोड़ रुपये था, जबकि डीएचएफएल ने इसका मूल्यांकन 735 करोड़ रुपये किया था।

Created On :   12 May 2020 7:30 PM IST

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