नोटबंदी सभी समस्याओं का समाधान नहीं, इसे लूट कहना गलत : जेटली

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले साल भारत में लागू हुई नोटबंदी बुधवार 8 नवंबर को पूरे एक साल की हो जाएगी। एक साल पूरा होने पर इस दिन सत्ताधारी भाजपा सरकार ने "काला धन विरोधी दिवस" मनाने का ऐलान कर दिया है, तो वहीं विपक्षी पार्टियां इस दिन "काला दिवस" मनाएंगी। इस पूरे मामले में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सामने आकर कहा कि नोटबंदी के लिए सरकार पूरी तरह से तैयार थी। नोटबंदी को लूट कहना गलत है और सभी समस्याओं का समाधान एक अकेली नोटबंदी नहीं हो सकती है।
"काला धन विरोधी दिवस" की पूर्व संध्या पर अरुण जेटली ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए नोटबंदी का फैसला एक जरूरी कदम था। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का मकसद देश को कैशलेस और फॉर्मल इकोनॉमी की तरफ ले जाना है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के परिणाम से सरकार खुश है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान कालेधन के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठाया।
जेटली ने कहा कि पिछले एक वर्ष में रिसोर्स अवेलिबिलिटी बढ़ी है। बैंकों में, बाजारों में पैसा बढ़ा है। यह अर्थव्यवस्था के लिए ठीक है। नोटबंदी से लैशकैश इकॉनमी की ओर बढ़ने का प्रयास है। टैक्स देने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी. डिजिटल ट्रांसजेक्सन बढ़ा है। आतंकियों की फंडिंग पर भी अंकुश लगा है। इसीलिए जब से एनडीए की सरकार बनी इस पर रोक के लिए कदम उठाए। एसआईटी का गठन, विदेशों से बदले नियम आदि चीजों पर काम किया गया। खर्चों पर नजर रखना, बेनामी कानून लाना, अप्रत्यक्ष कर के सिस्टम को बदलना आदि काम कर सरकार ने कदम उठाए। इसका परिणाम पिछले सालों में देखा गया।
वित्तमंत्री ने कहा कि इस लोकतांत्रिक देश में इसकी आलोचना करने वाले भी होंगे। एक तर्क ये कि लोगों ने बैंकों में सारा पैसा डिपोजिट कर दिया। यह अच्छा है. बैंक में आने से यह पता चलता है कि इसकी मलकियत किसकी है। 1.8 मिलियन लोगों ने पैसा ऐसा दिया है जो उनकी आय से ज्यादा है। इन्हें आईटी में जवाब देना पड़ रहा है। शेल कंपनियों का पता चला। जेटली ने कहा कि जिस गति के साथ रीमोनेटाइजेशन किया गया वह अपने आप में एक उदाहरण था। पूरे विश्व में इतनी सरलता से इतनी बड़ी रकम को बदला गया।
जेटली का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था और देश के व्यापक हित के लिए देश में स्टेटस को बदलना जरूरी था। पूरे GDP का पूरा 12 प्रतिशत का हिस्सा कैश हो और इसका भी 86 फीसदी बड़ी करेंसी थी। उन्होंने कहा कि जो टैक्स देता है उस पर बोझ ज्यादा रहता है। जो नहीं दे रहा उसका भी खर्चा उसे उठाना पड़ता है, क्योंकि देश के चलाने के लिए पैसा तो चाहिए. ऐसे में यह एक प्रकार का अन्याय है। जो साधन गरीब के कल्याण के लिए खर्च होना है वह साधन संपन्न व्यक्ति अपनी जेब में रख लेता है. कैश पर आधारित अर्थव्यवस्था में यह भ्रष्टाचार का एक केंद्र और कारण भी होता है।
Created On :   7 Nov 2017 5:12 PM IST