सुप्रीम कोर्ट ने इरडा सदस्य के खिलाफ उसकी टिप्पणी को हटाया
- एटकिंस ने कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया
डिजिटल डेस्क, चेन्नई। उच्चत्तम न्यायालय ने प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) को झटका देते हुए भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा)के पूर्व सदस्य पीजे जोसेफ के खिलाफ पहले की गई उसकी अनावश्यक टिप्पणी को हटा दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने एटकिंस स्पेशल रिस्क्स लिमिटेड और अन्य के खिलाफ इरडा द्वारा दायर एक अपील पर अपने एक आदेश में कहा: पक्षकारों के अधिवक्ताओं को सुनने और रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद हमारी राय है कि न्यायाधिकरण ने जोसेफ के खिलाफ 16 मार्च, 2018 के आदेश के पैरा 8 और 9 और उक्त आदेश के पैराग्राफ एक में जो टिप्पणियां की थीं वे अनुचित और रद्द किए जाने योग्य हैं।
जोसेफ ने आईएएनएस को बताया मुझे खुशी है कि सैट की गैर जरूरी टिप्पणी को उच्चतम न्यायालय ने हटा दिया गया है।
दरअसल सैट ने 16 मार्च, 2018 को इरडा के एक आदेश को रद्द करते हुए कहा था हम यह नही समझ सके है कि कैसे सदस्य आक्षेपित आदेश में इस तरह के झूठे बयान दे सकते हैं। हमारी राय में, पीजे जोसेफ द्वारा पारित आक्षेपित आदेश वास्तव में नियामक द्वारा बीमा व्यवसाय में भ्रष्टाचार को सहायता और बढ़ावा देने के समान है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
सैट ने इरडा को वरीयता के आधार पर एटकिंस की शिकायत पर नए आदेश के लिए मामले को जोसेफ के अलावा किसी अन्य सक्षम अधिकारी को सौंपने का निर्देश दिया था। इस आदेश पर कानूनी जानकारों ने तब सवाल उठाया था।
कंपनी/प्रतिस्पर्धा/बीमा कानूनों के विशेषज्ञ और उच्चतम न्यायालय के वकील डी. वरदराजन ने आईएएनएस को बताया था सदस्य के खिलाफ सैट की तीखी टिप्पणी, काफी दुर्भाग्यपूर्ण है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक संयम बरते जाने की बार-बार दी गई सलाह से ऐसे मामलों में तलवारें खिंचती प्रतीत हो रही हैं।
वरदराजन ने कहा कि 16 मार्च के सैट के आदेश के अनुसार संबंधित इरडा अधिकारी को एक पक्ष के रूप में पेश भी नहीं किया गया था।
गौरतलब है कि इरडा ने 9 जनवरी, 2018 को लंदन स्थित पुनर्बीमा ब्रोकर एटकिंस स्पेशल रिस्क लिमिटेड की शिकायत का निपटारा किया था जिसमें उसने प्रतिद्वंद्वी मार्श इंडिया इंश्योरेंस ब्रोकर्स प्राइवेट लिमिटेड पर आरोप लगाया था कि वह उसके मुवक्किल जगदीश प्रसाद गुप्ता, चेयरमैन, जैग्सन इंटरनेशनल लिमिटेड को अवैध भुगतान कर उसके हितों का नुकसान किया था।
एटकिंस ने अपनी शिकायत में कहा था कि उसने वर्ष 2002 से 2012 के दौराना जैग्सन को अंतराष्ट्रीय पुनर्बीमा कवर प्रदान किया था और वर्ष 2010 के बाद से जैग्सन प्रमुख गुप्ता ने एक ईमेल भेजकर एटकिंस के कमीशन में हिस्सेदारी की मांग की थी। इसके बाद जैग्सन का पुनर्बीमा कारोबार मार्श कंपनी के पास चला गया था।
एटकिंस ने मार्श की तरफ से गुप्ता को रिश्वत के किसी भी भुगतान का पता लगाने के लिए एक निजी जांच फर्म को यह मामला सौंपा था।
सैट के आदेश के अनुसार, जांच फर्म ने इस बात की पुष्टि की थी कि एटकिंस को पुनर्बीमा कारोबार को हटाने के लिए से मार्श की तरफ से गुप्ता को रिश्वत दी गई थी। एटकिंस ने आरोप लगाया कि टेलीफोन पर गुप्ता ने कहा था कि मार्श ने जैग्सन का कारोबार हासिल करने के लिए उसे 4,00,000 डालर का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी।
सैट ने अपने आदेश में कहा कि एटकिन्स ने इस तर्क के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य पर भरोसा किया था कि गुप्ता ने रिश्वत मांगी थी और मार्श के अधिकारियों ने उसे पुनर्बीमा व्यवसाय को हटाने के लिए रिश्वत दी थी।
सैट ने कहा कि इरडा का यह कहना कि एटकिंस ने कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया, झूठा है।
इरडा के एक अधिकारी ने तब आईएएनएस को बताया था कि एटकिंस द्वारा दिया गया सबूत पुख्ता नहीं था और इसलिए मार्श पर केंद्रित जांच नहीं की गई थी।
गौरतलब है कि पुनर्बीमा दलाल को नियुक्त करने या बदलने का अधिकार प्राथमिक बीमाकर्ता के पास निहित है। दिलचस्प बात यह है कि न इरडा के आदेश और न ही सैट के आदेश में जैग्सन के लिए प्राथमिक बीमाकर्ता के नाम या पुनर्बीमा दलाल में बदलाव के कारणों का उल्लेख है।
बड़े जोखिमों का बीमा करने में पुनर्बीमा एक प्रमुख भूमिका निभाता है। कई निजी सामान्य बीमाकर्ता व्यवसाय के अधिकतर हिस्से के जोखिम को पुनर्बीमाकर्ताओं को सौंप कर खुश हैं। इस क्षेत्र से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि परिणामस्वरूप पुनर्बीमा ब्रोकर्स की अहमियत बढ़ती जा रही है।
(आईएएनएस)
Created On :   19 Feb 2022 5:00 PM IST