विश्वास और उम्मीद का नहीं मिल रहा इशारा, दिग्गजों की भी नहीं सुन रहा केंद्रीय नेतृत्व

विश्वास और उम्मीद का नहीं मिल रहा इशारा, दिग्गजों की भी नहीं सुन रहा केंद्रीय नेतृत्व
टिकट पाने दिल्ली की दौड़, दावेदार तलाश रहे ठोर

डिजिटल डेस्क,बालाघाट।

टिकट को लेकर भाजपा में जितनी दौड़-भाग चल रही है, उतनी कांग्रेस में नहीं। कांग्रेस में हर दावेदार अपने आकाओं से लेकर सहयोगियों के भरोसे टिकट पाने का रास्ता बना रहा है तो भाजपा में दावेदार दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं। अपना जनाधार बताकर दिग्गज भी अपने चहेतों की शिनाख्त कराने भोपाल-दिल्ली एक किये हुए हैं। इतना ही नहीं केंद्रीय नेतृत्व के सामने चुनाव की जीत का फार्मूला भी पेश कर रहे हैं। लेकिनयह बात दीगर है कि इनके दावे पर केंद्रीय नेतृत्व बदलाव के मूड में विश्वास नहीं जता पा रहा है। अिकट की इस दौड़ा-भागी में शीर्ष स्तर से भी कोई इशारा नहीं मिलने से, अब दिग्गजों को अपनी प्रतिष्ठा की चिंता सताने लगी है। सूत्रों के अनुसार, दोनों प्रमुख राजीतिक दल बालाघाट के मामले में बहुत ज्यादा बदलाव के मूड में नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि आर या पार के 2023 के इस चुनाव में वह कोई रिस्क लेने तैयार नहीं हैं।

भाजपा : हर सीट पर असमंजस, बालाघाट सबसे पेचीदा

जिले की सभी 6 सीटों पर प्रत्याशी का चयन करना भाजपा संगठन के लिए आसान नहीं रहेगा। बालाघाट तो सबसे ज्यादा पेचीदा है। यहां पार्टी के अंदर परिवारवाद के खिलाफ उठ रही आवाज और दिग्गजों की संगठन से आगे चलने की रीति-नीति संगठन को किसी भी नाम तक पहुंचने से रोक रही है। परसवाड़ा में महाकोशल के इकलौते मंत्री का एकल नाम होने से कई बड़े नेता इस क्षेत्र का रूख नहीं कर पा रहे हैं। लांजी में जरूर लगातार दो बार से हार रहे प्रत्याशी की दावेदारी के बीच संगठन यहां लोधी समाज से किसी नए चेहरे की तलाश कर रहा है। लांजी में दो बार से हार रहे प्रत्याशी को अवसर नहीं देने की राह में संगठन के आड़े बैहर आ रहा है क्योंकि यहां भी दो बार से पराजय का सामना कर रहा परिवार फिर टिकट की दौड़ में बढ़त बनाने में दिग्गजों के सहारे लगा है। यहां अन्य स्थानों की अपेक्षा दावेदारों की फेहरिस्त ज्यादा लंबी है। बचे कटंगी और वारासिवनी तो वहां संगठन जिन नये चेहरों को अवसर देना चाह रहा है, उनका कार्यकर्ताओं के बीच विरोध है। फिर बालाघाट विधायक की इन दोनों सीट पर सीधी दखलदाजी भी संगठन को किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने दे रही। क्योंकि संगठन उन्हें भी नाराज कर, अपनी जीत की संभावनाएं कम नहीं करना चाह रहा।

कांग्रेस : आंतरिक से ज्यादा बैनगगा के इस पार और उस पार की लड़ाई

कांग्रेस में टिकट को लेकर आंतरिक द्वंद अपनी जगह है लेकिन असल लड़ाई बैनगंगा नदी के इस पार की और उस पार के बीच है। नदी के दो पाटों की तरह कांग्रेस में हर सीट पर लकीर खिंची दिख रही है। बैनगंगा के इस पार की बैहर और लांजी कांग्रेस दो बार से जीत रही है। उस पार के वारासिवनी वाले भैया 2018 में ही टिकट न मिलने पर पार्टी का साथ छोड़ गए थे तो कटंगी कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली थी। कांग्रेस इन तीनों सीटों पर अपने को मजबूत मान रही है लेकिन कटंगी कांग्रेस के लिए चुनौती पूर्ण हो सकता है। कारण, दावेदारों की लंबी फौज। यही हाल परसवाड़ा व वारासिवनी में भी है। जीत का दावा हर दावेदार कर रहा लेकिन उनका दावा पीसीसी चीफ के गले नहीं उतर रहा। दावेदारी के चक्कर में कल तक साथ खड़े नजर आने वाले कांग्रेसी आज एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। बालाघाट सीट, भाजपा की तरह कांग्रेस के लिए भी पेचीदी हो गई है। यहां नये यानि बाहरी और पुराने यानि वर्षों से कांग्रेस के लिए काम रहे लोग टिकट के मुद्दे पर एक नहीं हो रहे। ऊपर प्रदेश संगठन में भी अंदर और बाहर के नाम पर एक राय नहीं बन पा रही है, क्योंकि जरा सी गफलत बना-बनाया समीकरण बिगाड़ सकती है।

Created On :   12 Aug 2023 8:33 AM GMT

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