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Mumbai News: प्रसिद्ध आर्टिस्ट बामबोट को राहत, टिक-टॉक एप को ट्रेडमार्क का दर्जा नहीं, पतंजलि फूड्स ने भी खटखटाया दरवाजा

- बॉलीवुड के प्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट चेराग बामबोट को बॉम्बे हाई कोर्ट से मिली राहत
- पुणे के स्कूल में 30 नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न के आरोपी शिक्षक को बॉम्बे हाई कोर्ट से भी मिली राहत
- टिक-टॉक एप को प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का दर्जा देने से हाई कोर्ट का इनकार
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामलों की सुनवाई के लिए 'हाई बोर्ड एवं फर्स्ट बोर्ड' पर रखने की प्रथा पर लगाई रोक
- बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स ने खालापुर में अपनी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से बॉलीवुड के मेकअप आर्टिस्ट चेराग बामबोट को राहत मिली है। अदालत ने उसे 50 लाख रुपए की धोखाधड़ी के मामले में अग्रिम जमानत दे दी। दिंडोशी सेशन कोर्ट ने बामबोट को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया था। ओशिवारा पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ के समक्ष चेराग बामबोट की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सिरम ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने 25 लाख रुपए शिकायतकर्ता को पहले ही दे दिया था। वह 25 लाख रुपए चार सप्ताह की अवधि के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमा कर दी जाएगी। पीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पिछले तीन वर्षों से अंतरिम संरक्षण दिया गया है। उसे अग्रिम जमानत दिए जाने का मामला बनता है। यदि ओशिवारा पुलिस याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी करती है, तो उसे याचिकाकर्ता को 1 लाख रुपए की राशि के पी.आर. बॉन्ड और समान राशि के एक या दो जमानतदार प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया जाता है। आरोप पत्र दाखिल होने तक प्रत्येक मंगलवार को सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच याचिकाकर्ता को संबंधित पुलिस स्टेशन में उपस्थित होगा और जांच में सहयोग करेगा।
क्या है पूरा मामला
शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता पिछले 17 से 18 वर्षों से मित्र हैं। मार्च 2021 में याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को फोन कर अपनी मां के इलाज के लिए 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता की मांग की। उसने पुरानी दोस्ती के कारण उसे 25 लाख रुपए का चेक और 25 लाख रुपए नकद दे दिया। उसने अपने दोस्त का पैसा वापस नहीं दिया और टाल-मटोल करने लगा। शिकायतकर्ता ने ओशिवरा पुलिस स्टेशन में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवा दी। चेराग गिरफ्तारी से बचने के लिए दिंडोशी सेशन कोर्ट में याचिका दायर की, तो सेशन कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पुणे के स्कूल में 30 नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न के आरोपी शिक्षक को बॉम्बे हाई कोर्ट से भी मिली राहत
इसके अलावा पुणे के स्कूल में 30 नाबालिग छात्राओं के यौन उत्पीड़न के आरोपी शिक्षक को हाई कोर्ट से भी राहत मिल गई है। अदालत ने राज्य सरकार की शिक्षक को रिहा करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है और विशेष पॉक्सो अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति अश्विन भोबे ने कहा कि विशेष पॉक्सो अदालत ने शिक्षक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन और पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं करने के कारण जमानत पर रिहा कर दिया था। पीठ ने प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (दिल्ली) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी के आधार और गिरफ्तारी के कारणों से संबंधित प्रावधानों पर विचार किया। पीठ ने कहा कि सरकारी वकील द्वारा जिस दस्तावेज का सहारा लिया गया है, वह गिरफ्तारी के कारणों से संबंधित है, न कि गिरफ्तारी के आधारों से। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्धारित कानून के मद्देनजर पुणे के विशेष पॉक्सो अदालत द्वारा इस साल 10 फरवरी के आदेश में कोई दोष नहीं पाया गया। इसलिए राज्य सरकारी की याचिका खारिज की जाती है। रंजनगांव एमआईडीसी पुलिस द्वारा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत गिरफ्तार 52 वर्षीय शिक्षक अनिल महादेव शेलके पर कथित तौर पर स्कूल में 30 नाबालिग छात्राओं के यौन उत्पीड़न का आरोप है। किया था। वह पुणे (ग्रामीण) के शिरूर तहसील के सोने सांगवी का निवासी है और करेगांव में स्थित जिला परिषद स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत था। उस स्कूल के प्रिंसिपल की शिकायत पर शेलके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस ने उसे उसकी गिरफ्तारी का कारण लिखित में नहीं बताया। इसलिए उसे विशेष पॉक्सो अदालत से रिहा कर दिया गया। आरोपी शेलके को रिहा करते हुए विशेष सत्र न्यायाधीश कविता शिरभाटे ने कहा था कि पुलिस ने अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया है। ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है, जिससे पता चले कि आरोपी को लिखित सूचना दी गई थी। आरोपी की हिरासत अवैध है और यह कानून के स्पष्ट आदेश का उल्लंघन है। उसे तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।
टिक-टॉक एप को प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का दर्जा देने से हाई कोर्ट का इनकार
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने टिक-टॉक एप को प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का दर्जा देने से इनकार कर दिया। अदालत ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते टिक-टॉक एप पर भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को प्रासंगिक कारक माना और ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार के टिक-टॉक एप को ट्रेडमार्क की सूची में शामिल नहीं करने के फैसले को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति मनीष पितले की पीठ ने टिक-टॉक लिमिटेड के वकील फहीम अहमद की याचिका पर फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि ये गंभीर मामले हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पीठ ने देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरे का हवाला देते हुए टिक-टॉक पर प्रतिबंध का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की। इस प्रकरण में टिक-टॉक ने रजिस्ट्रार के 31 अक्टूबर 2023 के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामलों की सुनवाई के लिए 'हाई बोर्ड एवं फर्स्ट बोर्ड' पर रखने की प्रथा पर लगाई रोक
बॉम्बे हाई कोर्ट ने दैनिक मामलों की सूची में कुछ मामलों की सुनवाई के लिए 'हाई बोर्ड एवं फर्स्ट बोर्ड' पर रखने की प्रथा पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं (वादियों) के बीच एक वर्ग का निर्माण नहीं करना चाहते हैं। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने कहा कि ऐसा याचिकाकर्ताओं (वादियों) के किसी भी वर्गीकरण से बचने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि लोगों में कोई गलत संदेश न जाए। हमने मामलों को हाई बोर्ड और फर्स्ट बोर्ड पर रखने की प्रथा को समाप्त कर दिया है। पीठ ने कहा कि हमें लगता है कि वादियों के भीतर एक तरह का वर्ग बना दिया गया है। जैसे कि जो लोग वहन कर सकते हैं, उन्हें हाई बोर्ड पर रखा जाता है। इसलिए हम गलत संदेश नहीं देना चाहते हैं। हम सभी लिस्ट (सूचीबद्ध) मामलों की सुनवाई करते हैं। अदालत का यह फैसला एक वकील के अनुरोध के जवाब में आया, जिसने अपनी याचिका की सुनवाई में स्थगन की मांग करते हुए पीठ से आग्रह किया कि उसके मामले को बोर्ड पर हाई कोर्ट में रखा जाए, जिससे स्थगित तिथि पर उस मामले पर सुनवाई की जा सके। बोर्ड पर हाई कोर्ट के मामले आमतौर पर वे होते हैं, जिन्हें सुनवाई के लिए दैनिक मामलों की (लिस्ट) सूची में 1 से 10 के बीच रखा जाता है।
बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स ने खालापुर में अपनी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
वहीं बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स ने अपनी जमीन से अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में राज्य सरकार और उसके अधिकारियों को रायगढ़ जिले के खालापुर में स्थित अपनी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। वकील अपूर्व श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि सरकारी अधिकारी पतंजलि फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के स्वामित्व वाली जमीनों को अवैध अतिक्रमणकारियों से बचाने और सुरक्षित रखने में विफल रहे हैं। उन्होंने इन जमीनों पर दुकानें खोल लीं हैं। याचिका में कहा गया है कि तीनों प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के स्वामित्व वाली विषयगत भूमि पर अतिक्रमण किया है। गुरुवार को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और डॉ.नीला गोखले की पीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए आया था, लेकिन इसे न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और आरिफ डॉक्टर की पीठ के समक्ष रखने का आदेश दिया गया।
Created On :   12 Jun 2025 10:00 PM IST