Nagpur News: तालाबों पर देखने मिल रहे पट्‌ट कदम हंस , संख्या हुई कम

तालाबों पर देखने मिल रहे पट्‌ट कदम हंस , संख्या हुई कम
  • इस बार विलंब से पहुंचे विदेशी पक्षी
  • जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियां हैं विलंब का कारण

Nagpur News महाराष्ट्र के नागपुर जिले में इस साल मंगोलिया और साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों का आगमन डेढ़ से दो महीने की देरी से हुआ है। ये पंख वाले मेहमान, जो हर सर्दियों में नागपुर के तालाबों और जलाशयों को जीवंत बना देते हैं, इस बार जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण विलंबित हुए हैं। साथ ही पहले की तुलना इनकी संख्या भी कम हुई है। पक्षीशास्त्रज्ञ और मानद वन्यजीव रक्षक अविनाश लोंढे ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि तत्काल संरक्षण उपाय नहीं अपनाए गए, तो आने वाले 1-2 वर्षों में यह समृद्ध जैव विविधता हमेशा के लिए खो सकती है। अच्छी बात यह है कि, इन दिनों नागपुर के तालाबों पर पट्‌ट कदम हंस पक्षी देखने मिल रहे हैं।

पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार प्रवासी पक्षियों के देरी से आने के प्रमुख कारणों में जलवायु परिवर्तन, प्रवास मार्गों में चक्रवात, लंबे समय तक हुई मूसलाधार बारिश और इससे प्रभावित पक्षियों के भोजन स्रोत (फोरेजिंग बेड्स) शामिल हैं। इन कारकों के चलते तालाबों में पानी का स्तर बढ़ गया, जिससे पक्षियों के लिए भोजन उपलब्धता प्रभावित हुई। साथ ही, सर्दी की देरी से शुरुआत ने भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षियों के प्रवास को बिखरा हुआ बना दिया। परिणामस्वरूप, इस मौसम में पक्षियों का आगमन विखंडित और अनियमित दिखाई दे रहा है। वर्तमान में नागपुर के विभिन्न तालाबों पर इन प्रवासी पक्षियों का आगमन देखा जा रहा है। बार-हेडेड गूस (पट्टकादंब), नॉर्दर्न पिनटेल (तलवार बदक), रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड (लालसरी), कॉटन पिग्मी गूस (नदी सुरी), लेसर व्हिसलिंग डक (शिटी बदक), फेरुगिनस डक (लोहसरी) जैसे जल पक्षी अब दाखिल हो चुके हैं। इनके अलावा, अन्य शीतकालीन प्रवासी पक्षी भी जिले के आसपास के क्षेत्रों में दिखाई दे रहे हैं। ये पक्षी न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि स्थानीय पर्यटन और जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं।

हालांकि, संरक्षण की दृष्टि से स्थिति चिंताजनक है। नागपुर जिले के प्रमुख तालाबों का पुनरुज्जीवन और प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए किसानों में फसल चक्रण (एक ही जमीन पर हर मोसम में अलग अलग बुआई करना) की जागरूकता फैलाना आवश्यक है। लोंढे और शासकीय विज्ञान संस्था, नागपुर के प्रोफेसर जगदीश बोरकर अपनी शोध टीम के साथ इस दिशा में पहल करने को तैयार हैं। वे महाराष्ट्र राज्य जैव विविधता मंडल और नागपुर वन विभाग से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। लोंढे ने बताया कि स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समिति (बीएमसी), जिसके अध्यक्ष महानगरपालिका आयुक्त होते हैं, की अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। पूर्व आयुक्त विमला राव ने पिछली बैठक में नागपुर वन विभाग के 14 रेंजों में से प्रत्येक में एक तालाब को पुनरुज्जीवित करने का निर्णय लिया था, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।

लोंढे ने चेतावनी देते हुए कहा, "यदि यह काम युद्ध स्तर पर नहीं किया गया, तो हम इन जलभूमियों की जैव विविधता खो देंगे। आने वाली पीढ़ियां इन पक्षियों को केवल किताबों के चित्रों और फोटो में ही देख पाएंगी।" वे और प्रो. बोरकर, जो बीएमसी के सदस्य भी हैं, सरकारी संस्थाओं से समर्थन मांग रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से प्रवासी पक्षियों की संख्या घट रही है, जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है। नागपुर जैसे शहरों में, जहां शहरीकरण तेजी से हो रहा है, तालाबों का संरक्षण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस मुद्दे पर स्थानीय पर्यावरण प्रेमी और पक्षी प्रेक्षक भी चिंतित हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार और स्थानीय प्रशासन तत्काल कदम उठाएं, जैसे तालाबों की सफाई, अवैध कब्जे हटाना और जागरूकता अभियान चलाना। यदि समय रहते कार्रवाई की गई, तो नागपुर की यह प्राकृतिक धरोहर बचाई जा सकती है। अन्यथा, सर्दियों के ये मेहमान हमेशा के लिए विदा हो सकते हैं।


Created On :   25 Dec 2025 2:38 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story