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New Delhi News: भागवत बोले - तमाम विरोध के बाद भी मजबूती से खड़ा है आरएसएस

- स्वयंसेवकों के मन में सभी के लिए प्रेम
- हिंदुत्व का असली सार सत्य और प्रेम
- स्वदेशी मतलब जो देश में बनता है उसे ही प्राथमिकता दें
New Delhi News. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि किसी भी स्वयंसेवी संगठन का इतना विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ है। बावजूद, संघ आज भी मजबूती से खड़ा है और स्वयंसेवकों के मन में सभी के लिए प्रेम है। उन्होंने कहा कि संघ की नींव सात्विक प्रेम पर टिकी है। यही वजह है कि संघ में जो आता है उसे कुछ मिलता नहीं, जो है वह भी चला जाता है। यहां हिम्मत वालों का काम है। इसके बाद भी स्वयंसेवक काम कर रहे हैं, क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा करने के बाद उन्हें जो सार्थकता मिलती है उसका आनंद अलग होता है।
हिंदुत्व का असली सार सत्य और प्रेम
यहां विज्ञान भवन में "100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज” विषय पर आयोजित संवाद के दूसरे दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का असली सार सत्य और प्रेम है। ये दोनों दिखने में अलग हैं, लेकिन असल में एक ही हैं। भारत का लक्ष्य विश्व कल्याण है। स्वयंसेवक जानता है कि हम हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद कहते थे, भारत धर्म प्रधान देश है। दुनिया को समय-समय पर धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है। उसके लिए भारत को तैयार करना पड़ेगा।
स्वदेशी मतलब जो देश में बनता है उसे ही प्राथमिकता दें
अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद के बीच संघ प्रमुख ने कहा कि विकास जरूरी है और हर क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर होना चाहिए, लेकिन आत्मनिर्भरता का मतलब दुनिया से रिश्ते तोड़ना नहीं है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलता रहेगा, पर उसमें दबाव नहीं होना चाहिए। स्वदेशी का अर्थ है कि जो हमारे देश में बनता है, उसे ही प्राथमिकता दें। भागवत ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय संबंध ‘स्वेच्छा’ से हों, दबाव में नहीं। यही स्वदेशी का आधार है।
Created On :   27 Aug 2025 9:49 PM IST