बेमेतरा : किसानों को फसलों की सुरक्षा हेतु समसामयिक सलाह

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बेमेतरा : किसानों को फसलों की सुरक्षा हेतु समसामयिक सलाह

डिजिटल डेस्क, बेमेतरा। 14 अक्टूबर 2020 खरीफ सीजन के दौरान बेमेतरा जिले में इस बार पर्याप्त वर्षा होने के कारण धान की अच्छी फसल होने की संभावना है। कुछ क्षेत्रों में बेमौसम वर्षा एवं खराब मौसम होने के कारण कीट एवं बीमारियों के प्रकोप देखने को मिल रहे है। जिले में धान फसल का रकबा 01 लाख 83 हजार हेक्टेयर के लगभग है। वर्तमान मौसम की स्थिति को देखते हुए किसानों को विभिन्न कीट एवं बीमारियों के निरीक्षण एवं रोकथाम नियंत्रण करने की सलाह कृषि विभाग द्वारा दी गयी है। कृषि विभाग के अधिकारी ने बताया कि बारिश के बाद तेज धूप के बाद वाली मौसम में कम अवधि में पकने वाली किस्मों में निम्नलिखित कीट एवं बीमारियां देखने को मिल रही है। धान का झुलसा रोग (ब्लास्ट)- वर्तमान ब्लास्ट रोग से धान फसल में अधिक प्रकोप होने की शिकायत प्राप्त हुई है। इस रोग के कारण पौधे के निचली पत्तियों में आंख या नाव आकार के धब्बे बनते है। वातावरण में अधिक नमी तथा बादलों वाला मौसम रोग फैलाने में सहायक होते है यह रोग पत्तियों के अलावा धान की बालियों को भी प्रभावित करता है, जिससे बालियों की गर्दन पर भूरे काले रंग का संक्रमण होने से बाली कमजोर एवं टूटने लगती है। इसके रोकथाम के लिये ट्रायसायकलाजोल 120 ग्राम या आइसोप्रोथियोलेन 200 मि.ली. में से किसी एक दवा का 12 से 15 दिवस के अंतराल में 3 से 4 बार प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। शीथ ब्लाइट- यह एक फफूंद जनित रोग है। जिस खेत में अधिक दिनों तक लगातार पानी जमा रहने से नमी युक्त मौसम व मेड़ों पर उगे घास से धान में फैलती है। धीरे-धीरे बीमारी पूरे फसल में फैल जाती है। इस रोग के कारण तने व पत्तियों पर लंबे डंडाकार भूरे रंग के धब्बे बनते है, जिसके कारण बालियों के दाने पोचे एवं काले रंग के हो जाते है। शीथ ब्लाइट का प्रकोप सबसे पहले धान के तने में होता है तथा पूरे पौधे में फैल जाते है। इसके नियंत्रण के लिये किसान खेत से अतिरिक्त पानी का निकासी करें तथा हेक्साकोनाजोल 300 मि.ली. या प्रोफिकोनाजोल 30 मि.ली. में किसी का 12 से 15 दिन के अंतराल में 3 से 4 बार प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। बैक्टिरियल लीफ ब्लाइट-यह एक जीवाणु जनित रोग है। यह रोग धान में व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है। इस रोग में धान फसल के पत्ते पीले या पैरा के रंग के एवं एक या दोनों किनारों से ऊपर या नीचे बढ़ते है और अंत में सूख जाते है। अधिक प्रकोप होने पर पूरा का पूरा पौधा सूख जाता है। इस रोग के लक्षण प्रकट होने पर स्ट्रप्टोसाइक्लिन 200 ग्राम ़ कापरआक्सीक्लोराइड का 200 ग्राम या एग्रीमाईसिन 100 पी.पी.एम की 30 ग्राम ़ कापरआक्सीक्लोराइड 200 ग्राम का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार प्रति एकड़ छिड़काव करें। भूरा माहो-भूरा माहो की भी समस्या देखने को मिल रही है। भूरा माहो धान की बहुत की नुकसान दायक कीट है जो धान के तने से रस चूस कर बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाती है। वातावरण में उसम होने के कारण भूरा माहो का प्रकोप बढ़ जाता है, मध्यम से लंबी अवधि में पकने वाली किस्मों में अधिक नुकसान पहुंचाती है। भूरा माहो के प्रकोप वाले पौधें गोल घेरे में पीली या भूरे रंग के दिखाई देनी लगती है व सूख जाती हैं। यह कीट पानी के सतह के ऊपर पौधें से चिपककर रस चूसती है। भूरा माहो के नियंत्रण हेतु किसान नीम का तेल 2500 पी.पी.एम. वाला 1 लीटर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए या इमिडाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल. 25 मि.ली. प्रति एकड़ या डायनोटेफ्यूरोन 20 प्रतिशत एस.जी. 60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव फसल एवं मेड़ दोनों पर करें। किसानों से आग्रह है कि फसल का सतत निरीक्षण करते रहे एवं अनुशंसित मात्रा में ही दवाईयों का उपयोग करें। 

Created On :   14 Oct 2020 9:27 AM GMT

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