मुलभूत सुविधाओं से वंचित हैं बैगाओं की बड़ी आबादी - पीने के लिये शुद्ध पानी नही, राशन के लिये 15 कि.मी. का सफर

Large population of Baigas are deprived of basic amenities - no pure water to drink
मुलभूत सुविधाओं से वंचित हैं बैगाओं की बड़ी आबादी - पीने के लिये शुद्ध पानी नही, राशन के लिये 15 कि.मी. का सफर
मुलभूत सुविधाओं से वंचित हैं बैगाओं की बड़ी आबादी - पीने के लिये शुद्ध पानी नही, राशन के लिये 15 कि.मी. का सफर

डिजिटल डेस्क बालाघाट । जिले के दक्षिण बैहर और लांजी क्षेत्र में निवास करने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति के बैगा आदिवासी अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं वह भी तब जब की सरकार ने इसके विकास के लिये विशेष रूप से एक प्राधिकरण का गठन भी कर रहा हैं। दूरस्थ वन ग्रामों में निवास करने वाले इस आदिवासियो के गांवो तक ना तो पहुंचने के लिये मार्ग है और ना ही गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं, लेकिन बात सिर्फ इतने तक ही होती तो भी कम था, जिले के कई हिस्सो में इन बैगाओं के पीने के लिये स्वच्छ पानी तक नही है। जिसके कारण मजबूरी में इस जनजाति के लोग झिरियां का पानी पीने मजबूर है।  ताजा मामला जिले की लांजी तहसील के देवरबेली के अडोरी के बोंदारी,उर्सेकाल, कोरका और चूकाटोला गांव  का हैं, जहां रहने वाली बैगा जनजाति के लोगों के पीने के पानी के लिये गांव में ना तो कोई हैड़पंप है और ना ही कोई नलजल योजना, यहां के बैगा परिवार बताते है कि उनके यहां पर कोई हैंडपप नही हैं जिसके कारण गांव से लगकर बहने वाली छोटी झिरियां के पानी से उन्हे अपनी प्यास बुझानी पड़ती है। 
प्राकृतिक जलस्रोतो पर निर्भर 
कुछ ऐसे ही हालात इस क्षेत्र के टेमनी, सायर संदूका या बिरसा विकासखंड के घुम्मुर, अडोरी, सोनगुड्डा, दुल्हापुर, लहंगाकन्हार, गिडोरी और भूतना के अधीन आने वाले दर्जनो गांवो में भी हैं, जहां इनके मूलभूत अधिकार, वनाधिकार और मानव अधिकार का रोजाना हनन हो रहा यहां या तो हैंडपंप है ही नही और अगर किसी बस्ती में है भी तो बंद पड़े है। ऐसे में आदिवासी बैगाओ को पानी जैसी मूलभूत सुविधा के लिये दर-बदर की ठोकरे खानी पडती है। इन्हे पेयजल के लिये प्राकृतिक जलस्त्रोतो और झिरिया पर निर्भर होना पड रहा है। ऐसे हालात अधिकांश बैगा आदिवासी गांवो में देखने मिलेगें। 
वनाधिकार पट्टे भी नही बने
देश में आदिवासियों की 72 जनजातियों में सबसे पिछडेपन का दंश भोग रहे बैगा जनजाति के लोगो के पास आज भी वनाधिकार के पट्टे नही है। , जबकि कई पीढिय़ों से बैगा जनजाति के लोग घने जंगलो में निवास कर रहे है। इनके सामने सबसे बडी विडम्बना यह हंै कि ये आज भी पारम्परिक खेती के तौर पर कोदो कुटकी का उत्पादन करते है। जिसके लिये उन्हे वन विभाग की भूमि पर ही कृषि करना पडता हंै। कई बार विभागीय अधिकारी इन्हे कृषि कार्य करने से रोक देते हंै, जिससे उनके सामने जीविका उपार्जन के लिये जरूरी भोजन को लेकर भी संघर्ष करने की नौबत आ जाती है। इन वनवासियों की प्रमुख मांग उनके गांवो में वनअधिकार पट्टो की है। 
यहां के आदिवासी राशन लेने तय करते है 15 कि.मी. का सफर
ग्राम पंचायत अडोरी के बोंदारी और कोरका के बैगा आदिवासीयों को आज भी जीवन उपार्जन के लिये शासकीय अनाज के लिये कोसो दूर पैदल चलना पडता हंै। लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित अडोरी में चलकर आने के बाद ही बमुश्किल उन्हे राशन मिल पाता है। कई कि.मी. कच्चे रास्ते से गुजरना पड़ता है।   जिसके कारण बारिश के दिनो में अक्सर नदी नाले उफान पर होते है तब इनकी समस्यायें और भी ज्यादा बढ जाती है। सबसे बडी समस्या तो इन बैगा समुदायो के जीवन मानक स्तर की हैं जिनके रहन सहन का तरीका आज भी पारंपरिक है। मैले कुचैले कपडो में, कभी नग्न, तो कभी अर्धनग्न अवस्था में नजर आते बैगा बच्चे जिनके लिये शिक्षा के साधन भी इस क्षेत्र में नही है। 
इनका कहना है. 
यह जानकारी आप के माध्यम से संज्ञान में आयी है मेरे द्वारा संबंधित गांव में अधिकारियों को भेज कर जांच करायी जाएगी। यदि  किसी बात की कमी होगी तो उसे भी दूर कराया जाएंगा।
दीपक आर्य, कलेक्टर बालाघाट

Created On :   28 Sep 2020 1:38 PM GMT

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