संपत्ति कर वृध्दि के समय नागरिकों के बारे में नहीं सोचा, फिर क्या है भूखंडधारकों पर मेहरबानी का राज?

Not think about citizens at time of property tax hike, then what is the secret of mercy on the plot holders?
संपत्ति कर वृध्दि के समय नागरिकों के बारे में नहीं सोचा, फिर क्या है भूखंडधारकों पर मेहरबानी का राज?
अकोला संपत्ति कर वृध्दि के समय नागरिकों के बारे में नहीं सोचा, फिर क्या है भूखंडधारकों पर मेहरबानी का राज?

डिजिटल डेस्क, अकोला। नगर परिषद के दौर में वार्षिक किराया पट्‌टे पर वितरित भूखंडों का मुद्दा कई बार महानगरपालिका के दौर में गूंजा। तत्कालीन आयुक्तों ने संबंधित भूखंडधारकों को नोटिस जारी कर किराया बढ़ाने का प्रयास किया, किंतु जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप की वजह से हर बार महानगरपालिका का नुकसान होता रहा है। आज अकोला शहर में कहीं भी जगह खरीदनी हो तो 60 रूपए फीट के हिसाब से जगह नहीं मिलेगी, लेकिन अकोला महानगरपालिका ने 30 से 90 रूपए वार्षिक किराए पर 4-4 हजार स्क्वेअर फीट के भूखंड दे रखे है। महानगरपालिका के मालिकाना तथा किराए पट्‌टे पर दिए गए मनकर्णा प्लाट, शेलार फैल तथा नगर परिषद कालोनी के भूखंडों को नए से किराया पट्‌टे पर देने के लिए मनपा प्रशासन की ओर से ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू की गई थी। इस ई-नीलामी प्रक्रिया को रद्द करने का प्रस्ताव 30 सितंबर की सभा में मंजूर किया गया, लेकिन अभी तक प्रस्ताव अमल के लिए मनपा आयुक्त तक नहीं पहुंचा है। प्रस्ताव आयुक्त कविता द्विवेदी के पास पहुंचने के बाद वे क्या निर्णय लेती है, इसकी ओर सबकी निगाहें लगी हुई है। क्या मनपा का नुकसान टालने के लिए यह प्रस्ताव भी शासन की ओर भेजा जाएगा, क्योंकि तत्कालीन आयुक्त ने ऐसे लगभग चार प्रस्ताव विखंडन के लिए शासन की ओर भेजे थे।

जिनसे करार हुए उन्होंने बेच दिए भूखंड

नगर परिषद ने 1953 में मनकर्णा प्लाट परिसर के 4-4 हजार स्क्वेअर फीट के 50 भूखंड किराए पट्‌टे पर दिए थे। यह करार 1983 में खत्म हुआ। इस दौरान कई भूखंडों की अवैध तरीके से बिक्री हुई। शेलार फैल में भी 16 भूखंड है। यहां भी कई भूखंडों की बिक्री हुई। बड़े-बड़े अपार्टमेंट के निर्माण किए गए। सन 1974 में नगर परिषद कालोनी के भूखंड लीज पर वितरित किए गए थे। सन 2004 में करार खत्म हुआ, तब करार नूतनीकरण के लिए संबंधितों ने मनपा की ओर प्रस्ताव भेजा था। नगर परिषद में अधिकतर कर्मचारी महानगरपालिका के ही है। इसलिए स्थायी तौर पर कर्मचारियों को भूखंड देने का प्रस्ताव सन 2015 में शासन की ओर भेजा गया था। तीनों परिसरों में अधिकतर करारधारकों ने भूखंड बेच दिए है। इस कारण तत्कालीन आयुक्त के आदेश पर कइयों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराई गई। ऐसा होने पर भी भाजपा सत्तादल का ई-नीलामी रद्द करने का निर्णय कई सवाल खड़े कर रहा है। दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली होने की चर्चा मनपा गलियारों में चल रही है। 

तत्कालीन आयुक्त नीमा अरोरा ने मनपा के हो रहे नुकसान को गंभीरता से लेते हुए किराया बढ़ाने के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया आरंभ करवाई, लेकिन मनपा की 30 सितंबर की सर्वसाधारण सभा में भाजपा सत्तादल ने ई-नीलामी प्रक्रिया रद्द करने का प्रस्ताव मंजूर किया गया। इस प्रस्ताव को शिवसेना, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस का समर्थन मिला। उल्लेखनीय है कि भाजपा के ही सत्ताकाल में मनपा की आय बढ़ाने के लिए नागरिकों पर संपत्ति कर वृध्दि लादने का कड़ा निर्णय लिया। अब ऐसा क्या हुआ कि मनपा को हर साल किराए के रूप में प्राप्त होनेवाली 8 से 9 करोड़ की आय को ठोकर मारी गई। उल्लेखनीय है कि मनपा प्रशासन ने इस संदर्भ में कोई भी टिप्पणी सभागृह के समक्ष नहीं रखी थी, फिर यह विषय अजेंडे पर लिया गया था।

मनपा की नोटिस और कार्यवाही के बाद कुछ लोगों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इस पर न्यायालय ने महानगरपालिका को नियमानुसार पूरी प्रोसेस करने के आदेश दिए है। सीधे किसी को घर से नहीं निकाला जा सकेगा, लेकिन किराया वसूला जा सकता है। न्यायालय के इस निर्णय से जो करारधारक है उन्हें राहत जरूर मिली है, लेकिन अधिकतर भूखंडों पर वास्तविक करारधारक नहीं रह रहे है। 4 हजार स्क्वेअर फीट के भूखंड पर दो से अधिक परिवार बहुमंजिला मकान बनवाकर रह रहे है। 

 

Created On :   26 Oct 2021 7:04 PM IST

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