जहां थीं दिहाड़ी श्रमिक, उसी मिल की बनीं मालिक, मन की बात में पीएम मोदी ने की सराहना

Where were daily wage workers, owners of the same mill, PM Modi appreciated in the matter of mind
जहां थीं दिहाड़ी श्रमिक, उसी मिल की बनीं मालिक, मन की बात में पीएम मोदी ने की सराहना
जहां थीं दिहाड़ी श्रमिक, उसी मिल की बनीं मालिक, मन की बात में पीएम मोदी ने की सराहना



डिजिटल डेस्क बालाघाट। हौसला यदि बुलंद हो तो काई भी राहें मुश्किल नहीं होतीं। ये साबित कर दिखाया है बालाघाट के बिरसा ब्लॉक की आदिवासी बाहुल्य चिचगांव की महिलाओं ने, जिन्होंने उसी राइस मिल को सरकार की आजीविका मिशन और अपनी निजी बचत से खरीदकर चलाना शुरू कर दिया, जिसमें वे लॉकडाउन के पहले दिहाड़ी मजदूरी करती थीं। महिलाओं की कहानी इतनी प्रेरणादायी है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम इन महिलाओं की तारीफ करने से खुद नहीं रोक पाए। इस कहानी की शुरुआत होती है बीते साल 2020 के मार्च के आखिरी महीने से जिसमें बिरसा में 2017 से सक्रिय एक योग्यता नाम के एक स्व-सहायता समूह से जुड़ीं कुछ महिलाओं ने एक बड़ा ही साहसिक निर्णय लिया। निर्णय था, कोरोना काल में जिस राइस मिल में वह दिहाड़ी में काम करती थीं, उस मिल के मजदूर से मालिक बनने का। संक्रमण काल में दूसरे रोजगारों की तरह ही उनकी गांव की ही राइस मिल भी, जहां वे काम करती थीं, बंद हो गई। महिलाओं का रोजगार छिन गया, समूह की अध्यक्ष मीना राहंगडाले ने हिम्मत दिखाई और अपने घर के पशु बांधने के बाड़े में ही राइस मिल शुरू करने का फैसला लिया। जिस मिल में ये महिलाएं काम करती थीं, उसका मालिक उसे बेचना चाहता था, महिलाओं ने आजीविका मिशन से मिली सहायता से और निजी बचत के जरिए मिल को खरीद लिया और समूह की महिलाओं ने ही इसे मिलकर चलाना शुरू कर दिया। थोड़े ही समय में मिल ने 3 लाख रुपए कमाकर लोगों का कर्जा चुकाना भी शुरू कर दिया। हम आज इस कहानी पर क्यों बात कर रहे हैं, इसकी एक बड़ी वजह रविवार को हुए मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी का इन महिलाओं से जुड़ा एक संबोधन भी है। इसमें मोदी ने इन महिलाओं के लिए क्या कहा, पढि़ए शब्दश:
इन साहसी महिलाओं के लिए ये कहा पीएम मोदी ने...
क्षेत्र कोई भी हो देश की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि देश या गांव में हो रहे बदलाव की उतनी चर्चा नहीं हो पाती है। इसलिए मैंने एक खबर मप्र के बालाघाट की देखी, तो मुझे लगा कि इसका जिक्र मन की बात में जरूर करना चाहिए। ये खबर बहुत प्रेरणा देने वाली है। बालाघाट के चिचगांव में कुछ आदिवासी महिलाएं एक राइस मिल में दिहाड़ी पर काम करती थीं। कोरोना वैश्विक महामारी ने जिस तरह दुनिया के हर व्यक्ति को प्रभावित किया, उसी तरह, ये महिलाएं भी प्रभावित हुईं। उनकी राइस मिल में काम रुक गया। स्वाभाविक है कि इससे आमदनी की भी दिक्कत आने लगी, लेकिन ये निराश नहीं हुईं, इन्होंने, हार नहीं मानी। इन्होंने तय किया, किए ये साथ मिलकर अपनी खुद की राइस मिल शुरू करेंगी। जिस मिल में ये काम करती थीं, वो अपनी मशीन भी बेचना चाहती थी। इनमें से मीना राहंगडाले जी ने सब महिलाओं को जोड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया, और सबने अपनी बचाई हुई पूंजी से पैसा जुटाया। जो पैसा कम पड़ा, उसके लिए आजीविका मिशनष् के तहत बैंक से कर्ज ले लिया, और अब देखिये, इन आदिवासी बहनों ने वही राइस मिल खरीद ली, जिसमें वो कभी काम किया करती थीं। आज वो अपनी खुद की राइस मिल चला रही हैं। इतने ही दिनों में इस मिल ने करीब तीन लाख रूपये का मुनाफा भी कमा लिया है। इस मुनाफे से मीना जी और उनकी साथी, सबसे पहले, बैंक का लोन चुकाने और फिर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए तैयारी कर रही हैं। कोरोना ने जो परिस्थितियां बनाईं, उससे मुकाबले के लिए देश के कोने.कोने में ऐसे अद्भुत काम हुए हैं।
2017 में बना था समूह 2020 में ऐसा रचा इतिहास
इस स्व-सहायता की प्रेरणादायी कहानी, जिसके पीएम भी मुरीद हैं, की शुरुआत 2017 में प्रदेशभर में चल रहे अन्य स्व सहायता के साथ हुई थी। समूह से जुड़ीं कुछ महिलाएं गांव में छोटे-मोटे रोजगार करती थीं, तो कुछ राइस मिल में दिहाड़ी मजदूर थीं। अचानक मार्च में मिल बंद हो गई और इन महिलाओं के सामने रोजगार का संकट आ गया। समिति की अध्यक्ष मीना राहंगडाले ने हिम्मत दिखाई। बालाघाट के प्रशासन कलेक्टर दीपक आर्य और आजीविका मिशन के प्रमुख ओमप्रकाश बेतवा ने इस समूह की महिलाओं की हौसलाअफजाई की और इसी साल इन महिलाओं ने एक लाख से अधिक की सरकारी सहायता, अपनी निजी बचत और गांव के लोगों से कर्जा लेकर लगभग 10 लाख रुपए में वही राइस मिल खरीद ली, जहां वे दिहाड़ी मजदूर थीं। अब इसे सफलता पूर्वक चलाकर ये महिलाएं न सिर्फ इतिहास रचने जा रही हैं बल्कि आत्मनिर्भर बन गई हैं।
इनका कहना है
कोविड ने हर आदमी को प्रभावित किया है। कई लोगों के रोजगार चले गए, लेकिन हमारे यहां के आदिवासी बाहुल्य बिरसा के चिचगांव की महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी बचत और आजीविका मिशन की मदद से उसी मिल को खरीद लिया, जिसमें वह मजदूर थीं। आज देश के आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा इस समूह का नाम लिया जाना, उनकी कहानी देश-दुनिया के सामने रखना न सिर्फ इस समूह के लिए बल्कि पूरी जिले के लिए गौरांवित करने वाला पल है।
दीपक आर्य, कलेक्टर, बालाघाट
कोरोना सबसे बुरा दौर था। हम समूह से जुड़कर छोटे-मोटे काम करते थे। हमने आजीविका मिशन, खुद की बचत और कर्जा लेकर राइस मिल खरीदने का फैसला लिया। ये मेहनत अब सफल हो रही है। अभी हमारी प्राथमिका कर्ज चुकाने की रहेगी। हालांकि इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
मीना राहंगडाले, अध्यक्ष, स्व-सहायता समूह

Created On :   31 Jan 2021 1:07 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story