अहोई अष्टमी 2023: पुष्य और सर्वार्थ सिद्धि योग में करें पूजा, जानें मुहूर्त और पूजा विधि

पुष्य और सर्वार्थ सिद्धि योग में करें पूजा, जानें मुहूर्त और पूजा विधि
महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र करती हैं व्रत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, साल भर में कई सारे व्रत और त्यौहार आते हैं। इनमें अधिकांश व्रत महिलाएं अपने पति और संतान की सुख समृद्धि के लिए रखती हैं। वहीं कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को अहोई अष्टमी के नाम से जाना जाता है, जो कि इस वर्ष 05 नवंबर, रविवार को है।

ऐसा माना जाता है कि, इस व्रत को करने से अहोई माता प्रसन्न होकर संतान की सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार अहोई अष्टमी पर रवि पुष्य योग बन रहा है जो कि, सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।

शुभ मुहूर्त

तिथि आरंभ: 5 नवंबर, रविवार रात 12 बजकर 59 मिनट से

तिथि समाप्त: 6 नवंबर, सोमवार सुबह 3 बजकर 18 मिनट तक

पूजा का मुहूर्त: शाम 5 बजकर 33 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 52 मिनट तक

ये है व्रत व पूजन विधि

अहोई माता का स्वरूप स्थानीय परंपरा के अनुसार अलग-अलग होता है। व्रती महिलाएं इस दिन चांदी की अहोई बनवाती हैं। महिलाएं जमीन को गोबर से लीपकर कलश की स्थापना करती हैं। इस दिन गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली का चित्रांकन किया जाता है जो कि मां पार्वती का ही स्वरूप होता है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां भी उकेरी जाती हैं।

अहोई माता की पूजा में रोली, फूल, दीपक आदि सामग्री की जरूरत होती है। चांदी के दानों वाली माला, जल से भरा हुआ कलश (इस दिन करवा चौथ का कलश भी) रखा जाता है , दूध और भात, हलवा, आदि पूजा स्थल पर रखा जाता है। इसके बाद व्रती महिलायें हाथ में गेंहू के सात दाने और दक्षिणा लेकर व्रत कथा पढ़ती और सुनती हैं।

कथा के बाद माला को गले में पहना जाता है और गेंहू के दाने व दक्षिणा अपनी सास या आसपास की बुजुर्ग महिला को देकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। सायंकाल में तारों को अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है। दीपावली के दिन करवे के जल को पूरे घर में छिड़का जाता है और इसी दिन ही स्याहु की माला को पहना जाता है।

चांदी की अहोई

अहोई माता का स्वरूप स्थानीय परंपरा के अनुसार अलग-अलग होता है। व्रती महिलाएं इस दिन चांदी की अहोई बनवाती हैं। महिलाएं जमीन को गोबर से लीपकर कलश की स्थापना करती हैं। इस दिन गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली का चित्रांकन किया जाता है जो कि मां पार्वती का ही स्वरूप होता है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां भी उकेरी जाती हैं।

पूजा सामग्री

अहोई माता की पूजा में रोली, फूल, दीपक आदि सामग्री की जरूरत होती है। चांदी के दानों वाली माला, जल से भरा हुआ कलश (इस दिन करवा चौथ का कलश भी) रखा जाता है , दूध और भात, हलवा, आदि पूजा स्थल पर रखा जाता है। इसके बाद व्रती महिलायें हाथ में गेंहू के सात दाने और दक्षिणा लेकर व्रत कथा पढ़ती और सुनती हैं।

पूजा की विधि

सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र नदी में स्नान करें संभव ना हो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करे।

इसके बाद व्रत का संकल्प लें और इष्ट की पूजा करें।

इसके बाद सूर्य को अर्घ्य दें।

सूरज ढलने के बाद अहोई माता की विधि-विधान से पूजा करें।

जमीन पर चौक पूरकर पीले रंग से रंगे हुए कलश की स्थापना करें।

इसके बाद कच्ची रसोई बनाकर उसे भोग के लिए एक बड़े थाल में सजाएं।

कलश की पूजा अर्चना के बाद दीवार पर बनाई गई अहोई और स्याऊ माता की पूजा कर उन्हें दूध और भात का भोग लगाएं।

फिर शाम के वक्त चंद्रमा को अर्घ्य देकर कच्चा भोजन करें और इस व्रत की कथा सुनें।

पूजा के दौरान अहोई कैलेंडर और करवा लेकर भी शामिल करें।

कथा सुनने के बाद अहोई की माला दिवाली तक पहननी चाहिए।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   4 Nov 2023 6:30 AM GMT

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