ताहिर हुसैन: अमरोहा के गरीब लड़के से लेकर दिल्ली के करोड़पति निगम पार्षद तक

Tahir Hussain: From poor boy of Amroha to millionaire corporator of Delhi (IANS investigation)
ताहिर हुसैन: अमरोहा के गरीब लड़के से लेकर दिल्ली के करोड़पति निगम पार्षद तक
ताहिर हुसैन: अमरोहा के गरीब लड़के से लेकर दिल्ली के करोड़पति निगम पार्षद तक
हाईलाइट
  • ताहिर हुसैन : अमरोहा के गरीब लड़के से लेकर दिल्ली के करोड़पति निगम पार्षद तक (आईएएनएस पड़ताल)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली (आईएएनएस)। दिल्ली की हिंसा में बेमौत मारे गए खुफिया एजेंसी के सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा के कत्ल के आरोप में जिस ताहिर हुसैन की तलाश में दिल्ली पुलिस अपराध शाखा खाक छान रही है, उसे कत्ल होने से भी दिल्ली पुलिस ने ही बचाया था। यह बात मंगलवार को खुद दिल्ली पुलिस अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त डॉ. अजित कुमार सिंगला ने मीडिया से कही। पुलिस ने फरार ताहिर हुसैन की अब तक जो कुंडली बनाई है, वो भी कम चौंकाने वाली नहीं है।

आईएएनएस की विशेष पड़ताल में ताहिर की निजी और व्यावसायिक जिंदगी से जुड़ी तमाम सनसनीखेज जानकारियां निकलकर सामने आ रही हैं। पता चला है कि ताहिर हुसैन मूलत: उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गांव पौरारा का रहने वाला है। पौरारा गांव थाना आदमपुर की पुलिस चौकी रैरा के इलाके में स्थित है। मंगलवार रात को आईएएनएस ने आदमपुर थाने के प्रभारी से बात की।

आईएएनएस जानना चाहती थी कि आखिर ताहिर की तलाश की दिल्ली पुलिस अपराध शाखा के अफसर जो बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, आखिर उनमें सत्यता कितनी है? आदमपुर थाना प्रभारी ने फोन पर बताया, दिल्ली पुलिस ने अभी तक हमसे ताहिर के बारे में कोई संपर्क नहीं साधा है। मेरे संज्ञान में दिल्ली पुलिस की टीम अभी तक हमारे इलाके में पहुंची भी नहीं है, क्योंकि अगर दिल्ली पुलिस की टीम ताहिर के पैतृक गांव पौरारा जाती, तो कानूनी रुप से वो स्थानीय थाने (आदमपुर) में आमद (लिखित इंट्री) और फिर गांव की रवानगी जरूर कराती।

थाना आदमपुर प्रभारी से बातचीत के बाद यह साबित हो गया है कि ताहिर हुसैन की तलाश में दिल्ली पुलिस अपराध शाखा की एसआईटी ने अभी तक उसके गांव को नहीं छुआ है। इसके पीछे वजह तमाम हो सकती है। संभव है कि ताहिर हुसैन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली पुलिस के लगातार संपर्क में हो। घर के आसपास के विपरीत हालात के चलते उसने खुद की जिंदगी महफूज रखने के लिए अपने गायब होने की अफवाह फैला दी हो, ताकि कहीं एक संप्रदाय विशेष उसके खिलाफ कोई खतरनाक कदम न उठा बैठे।

हालांकि दिल्ली पुलिस अपराध शाखा के अधिकारी मंगलवार को भी ताहिर हुसैन तक न पहुंच पाने के ही दावे हवा में फेंकते नजर आए।आईएएनएस की पड़ताल के मुताबिक, ताहिर हुसैन का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा। बदकिस्मती से बाकी बची-खुची दुश्वारियां सौतेली मां के अत्याचारों ने पूरी कर दी। लिहाजा, ताहिर के पास पैतृक गांव से भागने के सिवाय कुछ नहीं बचा था। कक्षा 8 तक पढ़ा ताहिर करीब 20 साल पहले गांव छोड़कर दिल्ली भाग आया। दिल्ली में सिर छिपाने के लिए उसने वो सब कुछ जलालत झेली जो किसी भी इंसान को शर्मसार करने के लिए काफी है।

दिल्ली में पांव रखने की जगह मिली तो उसने मौके देखकर फर्नीचर बनाने का हुनर सीख लिया। पांव रखने की जगह बनी तो छत भी बना ली। वक्त और मेहनत रंग लाई तो उसकी अपनी फर्नीचर फैक्टरी भी दिल्ली में लग गई। चूंकि खुद का बचपन बेहद दुश्वारियों में गुजरा था, इसलिए उसे गांव के कम पढ़े-लिखों का दर्द पता था। लिहाजा, उसने कसम खाई कि वो अपनी फर्नीचर फैक्टरी में सिर्फ-और-सिर्फ अपने गांव या फिर अन्य गांवों के गरीब और अशिक्षित या फिर कम शिक्षित युवाओं को ही रोजी-रोटी देगा।

जो चांद बाग 24-25 फरवरी को हिंसा की आग में तबाह हुआ, उसी का इलाके में ताहिर का चार मंजिला मकान है। रुपया जेब में आया तो रुतबे की ललक भी जेहन में आनी लाजिमी थी। सो साल 2017 में वह दिल्ली में हुए निगम पार्षद का चुनाव लड़ा आम आदमी पार्टी से। किस्मत चूंकि संग थी सो चुनाव जीत गया।

चुनाव से पूर्व आवेदन करते समय 20 साल पहले गांव से दिल्ली नंगे पांव पहुंचे ताहिर हुसैन ने अपनी दौलत कानूनी रूप से कागजों में दर्ज करवाई 17 करोड़। जमाने वालों की नजरों में वो पहला दिन रहा होगा, जब उन्हें पता चला कि गांव से दुश्वारियों में भूखे-फटे हाल 20 साल पहले दिल्ली पहुंचा ताहिर हुसैन तो करोड़पति है।

दिल्ली में जब शानदार जिंदगी गुजरने लगी, तो ताहिर हुसैन धीरे-धीरे गांव को भूलने लगा। लिहाजा, कुछ साल पहले वो गांव की पैतृक जमीन और पुश्तैनी मकान भी बेच आया। इस उम्मीद में कि अब दौलतमंदी में भला गांव की ओर क्यों पलटना होगा? शायद उसकी इसी बड़ी और अहम भरी सोच को नजर लग गई। लिहाजा, वो दिल्ली के दंगों की भेंट चढ़े खुफिया एजेंसी के सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा के कत्ल का आरोपी बन गया। जिस ताहिर को बलवा वाली रात (24 फरवरी) दिल्ली पुलिस ने कत्ल होने से बचाया, वही ताहिर वक्त पलटते अगले ही दिन यानी 25 फरवरी को अंकित शर्मा के कथित कातिल के बतौर बदनाम होकर दिल्ली पुलिस के दस्तावेजों में मुलजिम बन गया।

 

Created On :   3 March 2020 4:00 PM GMT

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