वो महिलाएं, जिन्होंने लड़ी 'तीन तलाक' की लंबी लड़ाई

From Shah Bano to Shayara Bano The fight against Triple Talaq
वो महिलाएं, जिन्होंने लड़ी 'तीन तलाक' की लंबी लड़ाई
वो महिलाएं, जिन्होंने लड़ी 'तीन तलाक' की लंबी लड़ाई

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा में गुरुवार केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने "तीन तलाक" पर बिल पेश किया। इस बिल का कांग्रेस ने भी समर्थन किया है। अगर ये कानून बनता है, तो इसका सीधा-सीधा असर 8.5 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं पर होगा। देश में कई बार तीन तलाक के खिलाफ आवाजें उठी हैं, लेकिन जितनी तेजी से ये आवाजें उठीं, उतनी ही तेजी से इन्हें दबा भी दिया गया। यूं तो तीन तलाक सालों पुरानी प्रथा है, लेकिन भारत में इसके खिलाफ पहली बार "शाह बानो" केस में आवाज उठी थी। तब 1980 के दशक में शाह बानो नाम की एक मुस्लिम महिला ने तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। इसके बाद फरवरी 2016 में शायरा बानो नाम की एक और मुस्लिम महिला ने तीन तलाक के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। ये वहीं शायरा बानो है, जिनकी बदौलत आज तीन तलाक को लेकर बिल पेश किया गया। इस बिल के पेश होने से जहां एक तरफ मुस्लिम महिलाएं खुश है, वहीं मुस्लिम बोर्ड ने इसका विरोध किया है। तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए शाह बानो से लेकर शायरा बानो तक ने लंबी लड़ाई लड़ी है।


क्या था शाह बानो केस?

शाह बानो मध्यप्रदेश के इंदौर की रहने वालीं थीं। शाह बानो के पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। 5 बच्चों की मां 62 साल की शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून का दरवाजा खटखटाया। शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची। 7 साल तक इस केस में सुनवाई चली और 1985 में कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि "सीआरपीसी की धारा-125 हर किसी पर लागू होती है। फिर चाहे मामला किसी भी धर्म का क्यों न हो? लिहाजा कोर्ट ने मोहम्मद खान को शाह बानो को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।"

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मुस्लिम बोर्ड के आगे झुकी राजीव सरकार

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला तो शाह बानो के हक में था और इसमें जीत भी शाह बानो की ही हुई, लेकिन कथित मौलवियों ने इस जीत पर नजर लगा दी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जमकर विरोध किया और इसे इस्लाम के खिलाफ बताया। इसके कारण उस वक्त देश में बड़ा राजनीतिक बवाल मच गया। विरोध बढ़ता देख तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने कोर्ट के फैसले के एक साल के अंदर मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण कानून) बनाया। इस कानून के बनने के बाद मोहम्मद खान, शाह बानो को गुजारा भत्ता देने से मुक्त हो गया। ऐसा कहा भी जाता है कि राजीव गांधी ने ये फैसला मुस्लिम धर्मगुरुओं के दवाब में आकर लिया था। इस कानून के बाद शाह बानो को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद भी कोई गुजारा भत्ता नहीं मिल सका। राजीव गांधी के इस फैसले से देशभर में काफी किरकीरी भी हुई और इसके बाद से ही कांग्रेस पर "तुष्टीकरण की राजनीति" करने का आरोप लगा।

फिर शायरा बानो ने लड़ाई

शाह बानो इस लड़ाई को भी जीतकर हार गई। हालांकि शाह बानो की ये लड़ाई तीन तलाक के कानूनी या गैर-कानूनी पक्ष से नहीं बल्कि गुजारे भत्ते को लेकर थी। फिर भी इस लड़ाई ने "तीन तलाक" का मुद्दा उठा दिया था। शाह बानो के बाद उत्तराखंड के काशीपुर में रहने वाली शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ी। शायरा बानो की शादी 2002 में हुई थी और उसके बाद शायरा अपने पति के साथ इलाहाबाद में रहने लगीं। शायरा बानो को उनके पति ने 10 अक्टूबर 2015 को चिठ्ठी से तलाक दिया था। शायरा को ये तलाक की चिठ्ठी उस वक्त मिली जब वो उत्तराखंड में अपनी मां के घर गईं थीं। शायरा ने इसके बाद कई बार अपने पति और दो बच्चों से मिलने की गुहार भी लगाई, लेकिन उनके पति ने हमेशा उन्हें दरकिनार कर दिया। थक-हारकर शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए फरवरी 2016 में याचिका दायर की। शायरा बानो की याचिका पर सुनवाई के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद में कानून बनाने की बात कही थी।

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याचिका में क्या मांग की गई थी? 

पति से तीन तलाक मिलने के बाद शायरा बानो ने फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका में उन्होंने तीन तलाक पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की। साथ ही निकाह हलाला और बहु विवाह जैसी प्रथाओं को भी गैर-कानूनी ठहराए जाने की मांग शायरा बानो ने की थी। इस याचिका में शायरा बानो ने कहा कि "तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।" इस लड़ाई में शायरा बानो के साथ कई मुस्लिम महिलाएं भी थी। इसके अलावा "भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन" नाम की संस्था ने "मुस्लिम वुमेंस क्वेस्ट फॉर इक्वेलिटी" नाम से लेटर भी लिखा था। सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो की तरफ से एडवोकेट बालाजी श्रीनिवासन ने केस लड़ा, जबकि मुस्लिम बोर्ड की तरफ से कांग्रेस के सीनियर लीडर कपिल सिब्बल थे।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था फैसला? 

शायरा बानो की याचिका पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3:2 से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जहां एक तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया, वहीं मुस्लिम महिलाओं ने इसे ऐतिहासिक बताया। अगस्त महीने में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की प्रेसिडेंशियल वाली 5 जजों की बेंच ने इसे अवैध बताया। 5 में से जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने "तलाक-ए-बिद्दत" यानी तीन तलाक को अवैध करार दिया। जबकि चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने इस प्रथा पर 6 महीने तक रोक लगाने की बात करते हुए संसद से इस मसले पर कानून बनाने की बात कही।

क्या है तीन तलाक का कानून?

केंद्रीय कानून मंत्री ने लोकसभा में गुरुवार को तीन तलाक पर बिल पेश किया। मोदी सरकार ने "द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट" नाम से इस बिल को पेश किया है।कानून बनने के बाद यह सिर्फ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर लागू होगा। बिल में कहा गया है कि अगर कोई पति तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहकर डिवोर्स लेता है तो फिर इसे गैर जमानती अपराध माना जाएगा और आरोपी को तीन साल की जेल की सजा होगी। इसमे जुर्माने का प्रावधान भी है। मेजिस्ट्रेट इस बात को तय करेंगे की आरोपी पर कितना जुर्माना लगाना है।

Created On :   28 Dec 2017 8:53 AM GMT

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