बिहार विधानसभा चुनाव भोरे में कांटे की टक्कर, लालू के गढ़ में जदयू की चुनौती

बिहार विधानसभा चुनाव भोरे में कांटे की टक्कर, लालू के गढ़ में जदयू की चुनौती
बिहार के गोपालगंज जिले का भोरे विधानसभा क्षेत्र राज्य की राजनीति में एक विशिष्ट पहचान रखता है। यह गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीट है। भौगोलिक रूप से यह इलाका बिहार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर स्थित है और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, जो इसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से एक खास रंग देता है।

पटना, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के गोपालगंज जिले का भोरे विधानसभा क्षेत्र राज्य की राजनीति में एक विशिष्ट पहचान रखता है। यह गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीट है। भौगोलिक रूप से यह इलाका बिहार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर स्थित है और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, जो इसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से एक खास रंग देता है।

भोरे प्रखंड मुख्यालय गोपालगंज शहर से लगभग 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले का पडरौना नगर यहां से करीब 40 किलोमीटर दूर है, जबकि सिवान, बेतिया और देवरिया जैसे प्रमुख शहर भी पास ही हैं। पटना यहां से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर है। भोरे गंडक नदी घाटी में स्थित है और उपजाऊ गंगा के मैदानों में आता है। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है।

धान, गेहूं, मक्का और गन्ना इसकी प्रमुख फसलें हैं। इलाके में कुछ चावल मिलें, ईंट भट्टे और छोटे कृषि-आधारित उद्योग मौजूद हैं, लेकिन औद्योगिक विकास लगभग नगण्य है।

इस विधानसभा सीट का गठन 1957 में हुआ था। इसमें भोरे, कटेया और विजयीपुर प्रखंड शामिल हैं। यह क्षेत्र न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी दिलचस्प है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, भोरे का नाम द्वापर युग के योद्धा राजा भूरीश्रवा से जुड़ा है, जो कौरवों की ओर से महाभारत के युद्ध में लड़े थे।

भोरे विधानसभा क्षेत्र में अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें सत्ता का संतुलन कई बार बदलता रहा है। कांग्रेस पार्टी ने यहां 8 बार जीत हासिल की। इसके अलावा, जनता दल, भाजपा और राजद ने 2-2 बार यहां जीत दर्ज की है, जबकि जनता पार्टी और जदयू को एक-एक बार सफलता मिली है।

इस क्षेत्र का वोटिंग का ट्रेंड यह दर्शाता है कि यहां की राजनीति अक्सर राज्यव्यापी माहौल और लहर के साथ बदलती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने यहां जीत दर्ज की थी, लेकिन जीत का अंतर 500 वोटों से भी कम था।

भोरे की राजनीतिक दिशा तय करने में जातीय समीकरणों की भूमिका बेहद अहम है। यहां अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, क्योंकि यह सीट आरक्षित है। यहां यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 12.5 फीसदी है, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 11.1 फीसदी हैं।

गोपालगंज लालू प्रसाद यादव का गृह जिला होने के कारण, यहां राजद का मजबूत प्रभाव माना जाता है। हालांकि, मुस्लिम समुदाय पर राजद और जदयू दोनों की पकड़ देखी जाती है। ऐसे में यह सीट हर चुनाव में राजद-जदयू के बीच सीधा संघर्ष का केंद्र रहती है, जबकि भाजपा का संगठनात्मक प्रभाव सीमांत इलाकों में महसूस किया जाता है।

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 6,04,058 है, जिसमें 3,08,476 पुरुष और 2,95,582 महिलाएं हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,62,491 है, जिसमें 1,83,726 पुरुष, 1,78,752 महिलाएं और 13 थर्ड जेंडर शामिल हैं। यहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर है, जो आने वाले चुनावों में महिला वोट बैंक की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

भोरे विधानसभा क्षेत्र इस समय जदयू के कब्जे में है, लेकिन मतदाताओं का मूड परिवर्तनशील है। यहां के लोग विकास, सड़क, सिंचाई, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं, लेकिन चुनाव के समय जातीय और सामाजिक समीकरण अक्सर निर्णायक साबित होते हैं। 2025 के चुनाव में मुकाबला फिर से जदयू-राजद के बीच कांटे का रहने की संभावना है।

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Created On :   12 Oct 2025 6:53 PM IST

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