आसिफ बसरा ने छोटे-छोटे किरदारों से छोड़ी बॉलीवुड में छाप, दमदार अभिनय से पाई दर्शकों के दिलों में जगह
मुंबई, 11 नवंबर (आईएएनएस)। बॉलीवुड और थिएटर की दुनिया में कुछ ऐसे कलाकार होते हैं जिनकी उपस्थिति स्क्रीन पर हमेशा बड़ी लगती है, चाहे उनका रोल छोटा ही क्यों न हो। ऐसे ही एक कलाकार थे आसिफ बसरा। उन्हें बड़े पर्दे और टीवी पर कई यादगार किरदार निभाने का मौका मिला, और वे अपने छोटे-छोटे रोल से भी दर्शकों के दिलों में बस गए।
'काई पो चे', 'हिचकी', और 'वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई' जैसी फिल्मों में उनके रोल बहुत छोटे थे, लेकिन उनका अभिनय इतना असरदार था कि लोग उन्हें भूल नहीं पाए। यही खासियत उन्हें बाकी अभिनेताओं से अलग बनाती थी।
आसिफ बसरा का जन्म 27 जुलाई 1967 को महाराष्ट्र के अमरावती शहर में हुआ था। बचपन से ही उनमें पढ़ाई के साथ-साथ अभिनय में खास रुचि रही थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1989 में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई चले आए। मुंबई में उनका पहला कदम थिएटर की दुनिया में पड़ा। उन्होंने कॉलेज और स्थानीय मंच पर नाटक में काम करना शुरू किया। उनकी मेहनत और अभिनय की कला को देखकर लोग उन्हें सराहने लगे।
थिएटर में नाम बनाने के बाद बसरा ने धीरे-धीरे फिल्मों और टीवी की दुनिया में कदम रखा। उनका पहला टीवी शो 'वो' था, जिसने उन्हें पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने कई टीवी और वेब सीरीज में काम किया, लेकिन उनका असली जादू फिल्मों में छोटे-छोटे रोल में देखने को मिला। उन्होंने 'ब्लैक फ्राइडे', 'परजानिया', 'वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई', 'कृष 3', और 'हिचकी' जैसी फिल्मों में काम किया। इन फिल्मों में भले ही उनका स्क्रीन टाइम कम था, लेकिन उनका अभिनय इतना सटीक था कि दर्शक उन्हें देखने का बेसब्री से इंतजार करते थे।
'काई पो चे' में बसरा ने अली के पिता का रोल निभाया। यह रोल छोटा था, लेकिन उनके भाव और अभिनय ने इस किरदार को जीवंत बना दिया।
बसरा सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं थे। वे थिएटर के लिए भी प्रसिद्ध थे और पृथ्वी थिएटर में युवा कलाकारों को अभिनय की ट्रेनिंग देते थे। उनका मानना था कि अभिनय में भावना और स्वाभाविकता सबसे महत्वपूर्ण है। यही वजह थी कि उनके छोटे-छोटे रोल भी यादगार बन जाते थे। वे हमेशा नए रोल और नई भूमिकाओं को निभाने के लिए तैयार रहते थे।
आसिफ बसरा ने गुजराती फिल्म 'रॉन्ग साइड राजू' में भी अभिनय किया, जिसे 2016 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। यह उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि थी। इसके अलावा, उन्होंने 'सांझ' जैसी हिमाचली फिल्मों में भी काम किया, जो इस बात का सबूत है कि वे हमेशा नई भाषाओं और संस्कृति के साथ खुद को जोड़ना पसंद करते थे।
उनका निजी जीवन भी उनके व्यक्तित्व की तरह शांत और सरल था। आखिरी पांच साल वे हिमाचल प्रदेश के मैक्लोडगंज में रह रहे थे। वहां उन्होंने पहाड़ी संस्कृति से खुद को जोड़े रखा और गांव की जिंदगी का हिस्सा बन गए। उनका सपना था कि वे मैक्लोडगंज में अपना घर बनाएं और वहीं जीवन बिताएं, लेकिन 12 नवंबर 2020 को उनका निधन हो गया। महज 53 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत की वजह आत्महत्या बताई गई। शुरुआती जांच में पता चला कि वे डिप्रेशन के शिकार थे। उनकी मौत ने फिल्म और थिएटर की दुनिया को जोरदार झटका दिया।
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Created On :   11 Nov 2025 7:38 PM IST












