राजनीति: दिव्यांग बच्चों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की नई पहल, संवेदना और समानता पर जोर

लखनऊ, 4 जून (आईएएनएस)। क्या आपने कभी सोचा है कि वह बच्चा जो बोल नहीं सकता, सुन नहीं सकता या सामान्य बच्चों की तरह पढ़ने में कठिनाई महसूस करता है, क्या उसे वही प्यार, अधिकार और अवसर मिल पाते हैं जो बाकी बच्चों को मिलते हैं?
इसी सवाल का जवाब तलाशते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए एक ऐसा अभियान शुरू किया है, जो सिर्फ नीति की बात नहीं करता, बल्कि दिलों को छूने का प्रयास करता है। उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग की देखरेख में तैयार किए गए 15,92,592 पोस्टरों के माध्यम से एक राज्यव्यापी जन-जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
इसमें इन बच्चों के अधिकारों, आवश्यकताओं और समाज की भूमिका को केंद्र में रखा गया है। पोस्टर वितरण के साथ-साथ स्कूल शिक्षकों को प्रशिक्षण, अभिभावकों से संवाद और समुदाय स्तर पर जागरूकता गतिविधियों को भी प्राथमिकता दी गई है। अभियान की शुरुआत से अब तक 75 जिलों के सभी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों, पंचायत भवनों, सीएचसी/पीएचसी, बाल विकास केंद्रों और आशा केंद्रों पर पोस्टर लगाए जा रहे हैं। प्रदेश के 1,32,716 सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में ये पोस्टर वितरित किए जा रहे हैं।
प्रत्येक विद्यालय को एक सेट (6 पोस्टर) उपलब्ध कराया गया है, जिनमें समावेशी शिक्षा और दिव्यांगता के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने वाले संदेश शामिल हैं। दिव्यांग बच्चों की समावेशी शिक्षा हेतु दी जाने वाली सुविधाएं- सुनिश्चित करें कक्षा में दिव्यांग बच्चों की समान भागीदारी एवं अनुभूति, प्रत्येक दिव्यांग बच्चे को शिक्षित बनाएं, अपना सहयोग दिखाएं - गंभीर एवं बहु-दिव्यांग बच्चों को होम-बेस्ड एजुकेशन - खोले शिक्षा के दरवाजे, समावेशी विद्यालय के विकास में ग्राम पंचायत की भूमिका- सुरक्षित व असुरक्षित स्पर्श को समझना इन पोस्टरों की सबसे खास बात है, इनका भावनात्मक, सरल और व्यावहारिक होना। ये न केवल जानकारी देते हैं, बल्कि आत्ममंथन को प्रेरित करते हैं।
सवाल उठता है, 'वह बच्चा जो बोल नहीं सकता, लेकिन सुन सकता है, क्या आपने उसकी आंखों में भरोसा देखा है?' इन पोस्टरों से यह स्वीकारने की प्रेरणा मिलती है कि समावेशी शिक्षा केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के भविष्य के लिए आवश्यक है। यह भी समझ में आता है कि हर बच्चा खास है, लेकिन कुछ बच्चों को थोड़ा और खास समझे जाने की जरूरत है। इस अभियान में 'सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श' जैसे अति आवश्यक विषय पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। 2,65,432 सेट्स में उपलब्ध इन पोस्टरों में प्रत्येक सेट में 6 प्रकार के पोस्टर शामिल हैं, जो बच्चों को संवेदनशीलता, आत्म-सुरक्षा और आत्म-सम्मान के प्रति जागरूक करने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।
ये पोस्टर परिषदीय प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, कंपोजिट स्कूलों और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में लगाए जा रहे हैं। शेष पोस्टर पंचायत भवनों, पीएचसी/सीएचसी, आंगनबाड़ी और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लगाए जाएंगे ताकि यह संदेश हर वर्ग तक पहुंचे कि सुरक्षित बचपन ही सशक्त भविष्य की नींव है। समेकित शिक्षा का लक्ष्य है कि दिव्यांग बच्चे भी अपने साथियों के साथ समान वातावरण में पढ़ें, जिससे उनके सर्वांगीण विकास में सहायता मिले। इस मॉडल में दिव्यांगता को एक सामाजिक और प्राकृतिक विविधता के रूप में स्वीकार करते हुए बच्चों में सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने समेकित शिक्षा को अपनी नीति का एक अभिन्न हिस्सा बनाया है, जिससे प्रदेश के लगभग तीन लाख से अधिक विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे निरंतर सुधार का प्रमाण है। यूनिसेफ के सहयोग से जारी किए गए इन पोस्टरों के माध्यम से स्कूलों में दिव्यांगता को लेकर सही दृष्टिकोण और संवेदनशीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे न केवल इन बच्चों के अधिकारों की रक्षा होती है, बल्कि समाज में समानता और समावेशन की भावना भी मजबूत होती है।
बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा कि हम केवल स्कूलों में बेंच बढ़ाने की बात नहीं कर रहे, हम दायरे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। समावेशी शिक्षा बच्चों के साथ-साथ पूरे समाज को बेहतर बनाती है। शायद यह पहली बार है जब कोई सरकार पोस्टर को केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और संवाद की चिंगारी मान रही है। यह एक ऐसा प्रयास है, जो किसी बजट, टेंडर या स्कीम से आगे जाकर समाज की सोच में बदलाव लाने की क्षमता रखता है, क्योंकि असली समावेश वही है, जो सिर्फ नीति में नहीं, नजरिए में दिखे।
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Created On :   4 Jun 2025 2:25 PM IST