मनोरंजन: यादों में गुलशन हिंदी सिनेमा को दिया अमर गीतों का खजाना

यादों में गुलशन  हिंदी सिनेमा को दिया अमर गीतों का खजाना
गुलशन बावरा हिन्दी सिनेमा के एक प्रसिद्ध गीतकार थे। उन्होंने हिंदी सिनेमा को कम परंतु अमर गीतों का खजाना दिया। उनके लिखे गीत न केवल संगीतमय रचनाएं हैं, बल्कि भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी हैं। सादगी और गहराई से भरे उनके शब्द आज भी राष्ट्रीय पर्वों पर गूंजते हैं और हर दिल को छू लेते हैं। उनकी रचनाएं समय की सीमाओं को पार कर, हर पीढ़ी में राष्ट्र भावना की अलख जगा रही हैं।

नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। गुलशन बावरा हिन्दी सिनेमा के एक प्रसिद्ध गीतकार थे। उन्होंने हिंदी सिनेमा को कम परंतु अमर गीतों का खजाना दिया। उनके लिखे गीत न केवल संगीतमय रचनाएं हैं, बल्कि भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी हैं। सादगी और गहराई से भरे उनके शब्द आज भी राष्ट्रीय पर्वों पर गूंजते हैं और हर दिल को छू लेते हैं। उनकी रचनाएं समय की सीमाओं को पार कर, हर पीढ़ी में राष्ट्र भावना की अलख जगा रही हैं।

मशहूर गीतकार गुलशन बावरा से जुड़ा एक किस्सा आपको जानना जरूरी है कि वह सिर्फ गीतकार तक ही सीमित नहीं थे, उनके दौर में सुपरस्टार गायक मोहम्मद रफी से उनकी दोस्ती भी कमाल की थी।

फिल्म 'जंजीर' के गाने ‘दीवाने हैं दीवानों को’ की रिकॉर्डिंग से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत पहले ही रिकॉर्ड हो चुका था और संगीतकारों ने इसे ओके कर दिया था। लेकिन, लता मंगेशकर को लगता था कि उनके हिस्से में एक छोटी-सी गलती रह गई थी, और वह एक और टेक चाहती थीं। जब मोहम्मद रफी स्टूडियो से अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे थे, गुलशन बावरा ने उन्हें रोका और मजाक में कहा कि यह गाना स्क्रीन पर मैं खुद गा रहा हूं। इस बात ने रफी साहब को इतना प्रभावित किया कि वह रमजान के रोजे के बावजूद दोबारा टेक देने के लिए लौट आए।

गुलशन बावरा ने अपने करियर में “मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती”। जैसे देशभक्ति गीत दिए। उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक गीत लिखे। लेकिन, एक गीत जो उनके दिल के बेहद करीब था, उसके बोल हैं, “चांदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया। एक धनवान की बेटी ने निर्धन का दामन छोड़ दिया”।

गुलशन बावरा का जन्म 12 अप्रैल 1937 को पाकिस्तान के शेखुपुर में हुआ था। 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया। मुंबई में बसने के बाद, गुलशन ने वेस्टर्न रेलवे में क्लर्क की नौकरी शुरू की, जो उनकी आजीविका का साधन थी। लेकिन, उनका असली जुनून संगीत और गीत लेखन में था। मुंबई, जो उस समय हिंदी सिनेमा का गढ़ था, उनके सपनों का शहर बन गया।

1955 में मुंबई आने के बाद, गुलशन ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष किया। उनकी प्रतिभा को पहला मौका 23 अगस्त 1958 को मिला, जब संगीतकार जोड़ी कल्याण-आनंद ने उन्हें फिल्म 'चंद्रसेना' के लिए गीत लिखने का अवसर दिया। यह उनके करियर का पहला कदम था।

फिल्म 'सट्टा बाजार' के दौरान उनके दो गीतों को सुनकर डिस्ट्रीब्यूटर शांति भाई पटेल ने उन्हें गुलशन बावरा का नाम दिया। गुलशन बावरा के करियर में उनके 237 गाने मार्केट में आए। उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, अनु मलिक के साथ काम किया। उनकी गहरी दोस्ती आरडी बर्मन के साथ थी।

7 अगस्त 2009 को इस फनकार ने दुनिया से अलविदा कह दिया।

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Created On :   6 Aug 2025 1:45 PM IST

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